साबित हो सकता है चीन का दोष
मोबाइल और लैंडलाइन उपभोक्ताओं की इतनी कम हो गयी संख्या को कोरोना से हुई मौतों से ही जोड़ा जा रहा है. अगले कुछ दिनों में ये फोन दोबारा चालू नहीं होते हैं, तो फिर आरोपों की पुष्टि हो जायेगी.
अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
awadheshkum@gmail.com
मोबाइल और लैंडलाइन उपभोक्ताओं की इतनी कम हो गयी संख्या को कोरोना से हुई मौतों से ही जोड़ा जा रहा है. अगले कुछ दिनों में ये फोन दोबारा चालू नहीं होते हैं, तो फिर आरोपों की पुष्टि हो जायेगी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की बैठक में जिस तरह 123 देशों की मांग के आगे कोविड 19 के उद्भव एवं प्रसार की जांच का प्रस्ताव पारित हुआ, उससे साफ है कि ज्यादातर देश चीन को दोषी मानते हैं. हालांकि, चीन अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग खारिज कर चुका है. उसने डब्ल्यूएचओ द्वारा कोविड-19 की समीक्षा से असहमति व्यक्त नहीं की थी, लेकिन उसे जांच स्वीकार नहीं है. सही जांच हो, तो पूरा सच सामने आ सकता है. चीन का तर्क है कि 2009 में मेक्सिको से एच1एन1 फ्लू फैला था, तो क्या इसे ‘मेक्सिको वायरस’ कह दें? चीन का कहना है कि जहां कोविड-19 वायरस पैदा हुआ हो, वहां उसका संक्रमण फैला ही न हो, इस तर्क से कोई देश सहमत होने को तैयार नहीं है. क्यों?
वस्तुतः इसके पीछे ठोस तथ्य आ गये हैं. हांगकांग के शोधकर्ताओं के मुताबिक, चीन में फरवरी तक 2,32,000 लोग संक्रमण का शिकार बने थे. चीन ने फरवरी तक 55,000 मामलों की जानकरी दी थी. चीन ने बताया है कि कोविड-19 के 82,954 मामले थे, जिसमें 4632 लोग मारे गये. चीन ने पहले मरनेवालों की संख्या 3300 ही कहा था. अखबार ‘द गार्जियन’ के अनुसार चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने 15 जनवरी से लेकर 3 मार्च तक कोविड-19 की परिभाषा के सात वर्जन जारी किये. इन बदलावों की वजह से मामले दर्ज होने की संख्या पर असर पड़ा. हॉन्गकांग के अनुसंधानकर्ताओं की केस स्टडी में 20 फरवरी तक के आंकड़े का विश्लेषण कर कहा गया है कि पहले चार वर्जन से पाये गये मामलों में 2.8 से लेकर 7.1 गुना बढ़ोतरी हुई होगी. अगर टेस्टिंग क्षमता बढ़ायी गयी होती, तो फरवरी तक 2,32,000 मामले सामने आये होते. वास्तव में चीन ने महामारी की जानकारी छिपाने की कोशिश की. दुनिया को देर से जानकारी मिली, इसलिए वायरस इतना विकराल रूप धारण कर रहा है.
आरोप है कि वुहान स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी की लैब से कोरोनावायरस लीक हुआ. जनवरी के पहले हफ्ते में जानकारी आयी कि इंसानों में कोरोना का वायरस चमगादड़ से आया. इस इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों ने यून्नान प्रांत की एक अंधेरी गुफा से इन चमगादड़ों को पकड़ा था. वैज्ञानिक इन पर सूक्ष्मजीवों की मौजूदगी और उनके जीनोम को लेकर कई तरह के प्रयोग कर रहे थे. वुहान इंस्टिट्यूट वेट मार्केट (जहां पर जंगली जीवों का व्यापार होता है) से सिर्फ 30 किलोमीटर की दूरी पर है. इसी बाजार में झींगा बेचनेवाली एक 53 वर्षीय महिला के जरिये पहली बार कोरोना ने इंसानों में प्रवेश किया. इलाज के बाद ये महिला जनवरी में स्वस्थ हो गयी थी, लेकिन तब तक वुहान में वायरस फैल चुका था. साउथ चाइना एग्रिकल्चरल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता शेन योंगी और जिओ लिहुआ के मुताबिक, वायरस पैंगोलिन से चमगादड़ और फिर इससे इंसान में पहुंचा. डेली मेल के मुताबिक वुहान की इस चीनी लैब को अमेरिकी सरकार ने 3.7 मिलियन डॉलर की आर्थिक मदद दी.
‘साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट’ ने खुलासा किया था कि हुबेई प्रांत में 17 नवंबर को ही कोरोना का पहला मरीज सामने आ गया था. दिसंबर, 2019 तक कोरोना के 266 मरीजों की पहचान कर ली गयी थी. मेडिकल जर्नल द लैंसेट के मुताबिक वुहान के एक झिंयिंतान अस्पताल में कोरोनावायरस का पहला पुष्ट मामला एक दिसंबर को रिपोर्ट किया गया. इसके बारे में सबसे पहले बतानेवाले चीनी डॉक्टर ली वेनलियांग पर अफवाहें फैलाने का आरोप लगाया गया. बाद में ली की मौत भी कोरोना की वजह से हो गयी. चीन ने जनवरी में कोरोनावायरस के बारे में दुनिया को बताया. ब्रिटेन की साउथैंपटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर चीन तीन हफ्ते पहले बता देता, तो संक्रमण में 95 प्रतिशत तक की कमी आ सकती थी. वेबसाइट ‘नेशनल रिव्यू’ के मुताबिक वुहान के दो अस्पतालों के डॉक्टरों में वायरल निमोनिया के लक्षण मिले थे, जिसके बाद डॉक्टरों ने खुद को क्वारंटाइन कर लिया. 15 जनवरी को जापान में कोरोना का पहला मरीज मिला. वहां के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि मरीज कभी वुहान के सीफूड मार्केट में नहीं गया, लेकिन हो सकता है कि वह किसी कोरोना संक्रमित के संपर्क में आया हो. इसके बाद भी चीन ने मनुष्य से मनुष्य से संक्रमण की बात नहीं मानी. इस बीच अंतरराष्ट्रीय उड़ानें चालू रहीं. ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने लिखा कि पहला मामला आने के करीब सात सप्ताह बाद यानी 23 जनवरी को चीन ने वुहान को लॉकडाउन किया.
चीन संक्रमितों तथा मृतकों के बारे में झूठ बोलता रहा. ब्लूमबर्ग के मुताबिक बड़ी संख्या में लोग शवदाह गृहों में राख लेने पहुंच रहे थे. वुहान के एक शवगृह में दो दिनों में पांच हजार अस्थि कलश मंगाये गये. चीन की मोबाइल कंपनियों के मुताबिक, पिछले दो-तीन महीनों में 2.1 करोड़ से अधिक मोबाइल फोन डिएक्टिवेट हो गये हैं. चीन के 60 प्रतिशत मोबाइल मार्केट पर नियंत्रण रखनेवाली कंपनी चाइना मोबाइल का कहना है कि देश में फेसियल स्कैन अनिवार्य होने के बाद दिसंबर में 30.73 लाख नये उपभोक्ता जुड़े थे, लेकिन जनवरी में 8,62,000 और फरवरी में 72,00,000 उपभोक्ता कम हो गये. चाइना टेलीकॉम ने जनवरी में 4,30,000 और फरवरी में 56,00,000 उपभोक्ता घटने की जानकारी दी. लैंडलाइन उपयोगकर्ताओं की संख्या 19.83 करोड़ से 18.99 करोड़ हो गयी. वे कौन लोग हैं, जिनके फोन बंद हुए हैं और क्यों? एक तर्क यह दिया जा रहा है कि जो प्रवासी मजदूर गांव चले गये, उन्होंने अपने शहर वाले नंबर का उपयोग बंद कर दिया. दूसरे, मोबाइल और लैंडलाइन उपभोक्ताओं की इतनी कम हो गयी संख्या को कोरोना से हुई मौतों से ही जोड़ा जा रहा है. अब कंपनियों में काम शुरू हो गया है. अगले कुछ दिनों में ये फोन दोबारा चालू नहीं होते हैं, तो फिर आरोपों की पुष्टि हो जायेगी. तो चीन चाहे जितना झूठ बोले वह दुनिया के कोरोना अपराधी के कठघरे में खड़ा है. अगर वह दोषी नहीं है, तो जांच होने दे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)