भारतीय समाज में ‘चौधरी’ सम्मानसूचक
संपूर्ण दक्षिण एशियाई महाद्वीप में बांग्लादेश, भारत, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तक चौधरी खानदान मिलेंगे. इनमें अनेक चौधरी परिवार बहुत प्रतिष्ठित हैं और अपने-अपने देशों के प्रतिष्ठित पदों पर रहे हैं. सुदूर फिजी में भी भारतीय मूल के महेंद्र पाल चौधरी प्रधानमंत्री बने थे.
हमारे समाज में चौधरी शब्द बहुप्रचलित है, इतना प्रचलित कि अपने बीस मित्रों व परिचितों को याद करें, तो बहुत संभव है कि उनमें एक न एक चौधरी हो. यह कहीं जातिसूचक है, कहीं पदसूचक और कहीं सम्मानसूचक उपाधि है. लाक्षणिक अर्थ में व्यंग्य में भी कहा जाता है, ‘जानता कुछ नहीं, चौधरी बना फिरता है.’ चौधरी शब्द के प्रयोग की एक विशेषता यह भी है कि इसको नाम से पहले विशेषण के रूप में भी जोड़ा जा सकता है और नाम के बाद सरनेम/जातिसूचक शब्द के रूप में भी. चौधरी शब्द एक और दृष्टि से रोचक है.
यह धर्म, वर्ण आदि पहचानों से निरपेक्ष है. हिंदू या मुसलमान, कोई भी चौधरी हो सकता है. हिंदुओं में भी पंडित, खत्री, कायस्थ, बनिया, जाट, गूजर, अहीर, भूमिहार आदि सभी में चौधरी मिलते हैं. संपूर्ण दक्षिण एशियाई महाद्वीप में बांग्लादेश, भारत, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान तक चौधरी खानदान मिलेंगे. इनमें अनेक चौधरी परिवार बहुत प्रतिष्ठित हैं और अपने-अपने देशों के प्रतिष्ठित पदों पर रहे हैं. सुदूर फिजी में भी भारतीय मूल के महेंद्र पाल चौधरी प्रधानमंत्री बने थे.
जहां तक चौधरी शब्द की व्युत्पत्ति की बात है, इसमें अनेक मत हैं. यूं ‘चतुर’ का मुख्य अर्थ चालाक, प्रवीण, धूर्त आदि है, किंतु संस्कृत में ‘चतुर’ गोल तकिये को भी कहा जाता है. इसलिए कुछ विद्वानों ने माना है- चतुर धारी (धारण करने वाला) > चौ धरी > चौधरी. सीधे शब्दों में कहें, तो जिसके पास गोल तकिया है, वह चौधरी है. तर्क यह है कि गांव-बस्ती का प्रधान, सयाना अपनी चौकी या गद्दी पर गाव तकिया लगाकर आराम से बैठता होगा और लोगों की बातें सुनता, झगड़े आदि निपटाता और परामर्श देता होगा.
इसलिए प्रधान जी समाज के सम्मानित चौधरी हो गये. आगे चलकर चौधरी पद वंशानुगत हो जाने से यह शब्द जातिसूचक भी हो गया. कुछ विद्वान मानते हैं कि चौधरी की व्युत्पत्ति चतुर (=तकिया) से संबद्ध न होकर, चतुरंग यानी चार प्रकार के सैन्यबल से जुड़ी है. चतुर्धर उन लोगों को कहा गया, जिनके पास सेना के चारों अंग: हाथी, रथ, घुड़सवार और पदाति (पैदल) सेना हो. कालांतर में यही शब्द मुखिया का समानार्थी बन गया. इतिहासकार वीके रजवाड़े और मराठी कोशकार कुलकर्णी चौधरी को संस्कृत चक्रधारी (> चकरधारी > चअरधारी = > चवधारी > चौधरी) से व्युत्पन्न बताते हैं. बंगाली कोशों में भी चक्रधारी वाली व्युत्पत्ति मिलती है.
संस्कृत कोशों में ‘चतुर्धर’ शब्द का उल्लेख केवल मोनियर विलियम्स करता है और उसका संबंध चतुरंग सेना से नहीं, किसी जाति या परिवार के नाम से बताता है. यूं भी किसी गांव का प्रधान चाहे कितना ही प्रभावशाली शक्तिशाली क्यों न हो, उसके पास चतुरंग सेना होना कुछ अतिरंजना-सा लगता है. अपने कुल की बड़ाई करने के लिए ऐसी अतिरंजनाओं का सहारा प्रायः लिया जाता है. दूसरी ओर, तकिया या गद्दी विश्राम करने या आश्रय लेने का स्थान, आश्रम, सहारे के लिए भी कहा गया है.
राजगद्दी, महंत की गद्दी में भी यह भाव है. इसलिए भी यह लगता है कि गांव के मुखिया की चौकी/बैठक का तकिया उसके अधिकार और सम्मान का प्रतीक और कालांतर में चौधरी का समानार्थक हो गया. मध्य युग में कुछ बादशाहों, राजाओं के काल में चौधरी, मलिक आदि जागीरदारों की उपाधियां भी हुआ करती थीं. अभिषेक अवतंस का मानना है कि चतुर्धर शब्द चौधरी का ही पश्च संरचना (बैक-फॉर्मेशन) है, अर्थात चौधरी शब्द के प्रचलन के पश्चात उसे किसी मनचाहे संस्कृत शब्द से व्युत्पन्न मान लिया गया. यह प्रवृत्ति प्रायः देखी जाती है कि लोकप्रचलित शब्द को अधिक प्रतिष्ठा देने के लिए उसका संबंध किसी अच्छी कहानी या व्युत्पत्ति से जोड़ लिया जाता है.
अजित वडनेरकर चौधरी को चक्रधर से व्युत्पन्न मानते हैं. चक्रधर, चक्रधारी भगवान विष्णु के नाम हैं. इस शब्द के पहले घटक चक्र का अर्थ विस्तार ग्राम, क्षेत्र, राज्य आदि के लिए भी है, इसलिए उनके अनुसार ग्राम, प्रांत को संभालने वाला चक्रधर हुआ, जिसका अर्थ विस्तार वे ‘राज्यपाल, शासक, प्रांत पाल’ तक ले जाते हैं और प्रभु विष्णु के समान ही इसे सम्मानजनक भी मानते हैं. विचार करने पर चतुर्धर के समान ही चक्रधर वाली व्युत्पत्ति भी अतिरंजना पूर्ण लगती है और प्रशंसा के लिए गढ़ी गयी पश्च रचना भी.
इसमें संदेह नहीं कि हिंदी में संख्यावाची //चौ-// रूपिम संस्कृत के चतुर् (चार) से विकसित हुआ है. प्राकृत में भी यह चौ हो गया था. चौकोर, चौबीस, चौराहा, चौमुहा जैसे बीसियों शब्दों में यह देखा जा सकता है. इसलिए यह माना जा सकता है कि चौधरी का चौ भी चार का द्योतक है. इस आधार पर चौधरी की एक और व्युत्पत्ति संभव है,
जिसमें चतुर (तकिया) नहीं, चतुर् (चार) से संबंध हो सकता है. संस्कृत में एक शब्द है धुरीण अर्थात महत्वपूर्ण कार्यों में नियुक्त, प्रधान, अग्रणी, बोझ संभालने योग्य, प्रमुख. इन्हीं अर्थों में धुर्य भी है, धुरंधर भी. इसलिए यह व्युत्पत्ति भी संगत प्रतीत होती है- चतुस् > चतुर् > चौ + धुर्य > धुरी > धरी = चौधुरी, चौधरी. व्युत्पत्ति की चर्चा करना तो वस्तुतः भाषा का रूखा विषय है. शब्द की रचना चाहे जैसे भी हुई हो, इसमें संदेह नहीं कि चौधरी समाज में सम्मानित और प्रतिष्ठित रहे हैं.