तरुण विजय, वरिष्ठ नेता, भाजपा
यदि नयन बोल पाते और कलम देख पाती, तो यह स्तंभ लिखते समय जो दृश्य मनमें कोलाहल कर रहे थे, वे कागज पर उतर आते. एक श्रमिक महिला को कोरोनाकाल में पैदल अपने गांव जाते हुए प्रसव पीड़ा हुई और उसने मार्ग में हीशिशु को जन्म दे दिया. नवजात शिशु का प्रथम रुदन अश्रु में छुपा, उसेगोदी में संभाल उस मां ने एक सौ साठ किलोमीटर की यात्रा पूरी की.पति-पत्नी और दो बच्चे का एक परिवार बैलगाड़ी से अपने गांव जा रहा था किरास्ते में ही एक बैल की मृत्यु हो गयी. संकट की इस घड़ी में किसानपति-पत्नी दूसरे बैल की जगह जुए में बारी-बारी से खुद ही जुतते और गाड़ीखींचते रहे. वीडियो क्लिप में साफ दिख रहा था कि किस तरह गाड़ी के पहियेटेढ़े-मेढ़े होकर अलग हुए जा रहे हैं. इस कारण दंपत्ति को गाड़ी खींचनाऔर ज्यादा कठिन हुआ होगा. हमने सदियों विदेशी हमले और अपमान झेला है.किंतु यह आज का भारत है. आजादी के सात दशक बाद भी गरीबी के भयावह हृदयविदारक दृश्य पीड़ादायी हैं.
सड़क पर जो मजदूर विषम परिस्थितियों में घरों की ओर चलते देखे गये, उनकोनेताओं, अधिकारियों, मीडिया के पांच सितारा बड़बोले पत्रकारों ने क्योंनहीं देखा? उनकी व्यथा कवर करनेवाले मीडियाकर्मियों ने अपनी रिपोर्टदाखिल करने के बाद अपने प्रभाव और संपर्कों का इस्तेमाल कर इन मजदूरों कीमदद करना क्यों जरूरी नहीं समझा? किस मीडिया घराने ने इन गरीब मजदूरों केलिए अपने धन को अर्पित करने का साहस दिखाया? हम एक निर्मम, निर्दयी,अहंकारी, प्रचार के भूखे समाज में रह रहे हैं. विपक्ष का रुदन खोखला औरमजदूरों के घावों पर नमक छिड़कने जैसा है, ठीक वैसे ही जैसे गिद्ध भोजहोता है. विपक्ष का कौन नेता इनकी सहायता के लिए सामने आया? यह सच है किगरीब का कोई नहीं होता, सब केवल धनी, शहरी आबादी तक अपना देश, अपना विश्वमानते हैं. पर एक बात सत्य है, मजदूरों की हाय व्यर्थ नहीं जायेगी.गरीबों की हाय बड़े-बड़े दुर्ग ढहा देती है, कीर्ति नष्ट कर देती है.
भारत की प्रगति इस मार्मिक सत्य को ढक नहीं सकती कि शहरी और ग्रामीणअंचलों में भयानक गरीबी और शोषण है. कोरोना ने एक नयी विश्व रचना प्रारंभकी है और भारत भी उससे अछूता नहीं है. अदृश्य, अजनबी शत्रु कोरोना धनी,निर्धन, प्रभावशाली, प्रभावहीन सबको एक नजर से देखता है. ऐसे में भारतजैसा देश, जहां सामाजिक-आर्थिक विषमताएं अपार हैं, इस काल में अपनाराजधर्म कैसे निभाये? अब एक ही राजधर्म दिखता है. सेवा और नागरिकों कीजीवन रक्षा को सर्वोच्च महत्व देते हुए यथासंभव एकजुटता बनाये रखकरआर्थिक सहायता की प्राणवाहिनी जीवित रखना.सौभाग्य से ऐसे संकट काल में भारत के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व है.भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार, यदि भारत ने समय रहतेलाॅकडाउन घोषित न किया होता, तो आठ लाख भारतीयों की मृत्यु हो सकती थी.
मोदी सरकार ने भारतीयों का जीवन अन्य सभी बिंदुओं से ऊपर रखा और उसेप्रमुखता दी.इसी कड़ी में प्रधानमंत्री के दृष्टि-पत्र में शामिल बिंदुओं ने देश मेंप्राणदायिनी ऊर्जा का संचार किया है. भारत के सकल घरेलू उत्पाद का दसप्रतिशत यानी बीस लाख करोड़ रुपये अर्थव्यवस्था, ढांचागत विकास, मांग वआपूर्ति, श्रमिकों, मध्यम वर्ग, लघु और मध्यम कुटीर उद्योग को आर्थिकसहारा देने के लिए निवेश किये जायेंगे. विश्व में कोरोना के कारण आर्थिकसंकट से उबरने के लिए उठाया गया यह सबसे बड़ा कदम है. प्रधानमंत्री गरीबकल्याण पैकेज में 1.70 लाख करोड़ दिये गये हैं, जिसमें प्रत्येकस्वास्थ्यकर्मी को 50 लाख का बीमा रक्षा कवच मिलेगा. अगले तीन महीने तक80 करोड़ गरीब भारतीयों को पांच किलो गेहूं या चावल हर माह निःशुल्क दियाजायेगा. जन-धन खाताधारक 20 करोड़ महिलाओं को तीन माह तक निःशुल्क गैससिलिंडर और तीन करोड़ वृद्ध, दिव्यांग व गरीब विधवा महिलाओं को एक-एकहजार रुपये का राहत अनुदान दिया जायेगा.
पीएम किसान योजना में 8.7 करोड़ किसानों को दो-दो हजार रुपये राहत के औरतीन करोड़ किसानों को चार लाख करोड़ रुपये आसान ऋण के रूप में देने काप्रावधान है. पंद्रह हजार करोड़ रुपये आपातकालीन स्वास्थ्य व चिकित्सासंबंधी आवश्यकताओं के लिए दिये गये हैं. ‘आभा’ (आत्मनिर्भर भारत)संकटग्रस्त देश के पुनरोदय का मंत्र बना है. बीस लाख करोड़ रुपये केभारत-पुनरोदय का अनुष्ठान दुनिया में विशेष और प्रथम है. आर्थिकपुनरुज्जीवन की जो तैयारी भारत ने दिखायी है, वह भी दुनिया में सबसेबेहतर और प्रभावी है. इन बीस लाख करोड़ से ज्यादा महत्व का है मोदीद्वारा देश के लोगों में भरा गया आत्मविश्वास.
वीर सावरकर ने हर ऐसेचुनौती काल को राष्ट्र और समाज के लिए स्वर्णिम काल कहा था, क्योंकि ऐसेही संकट काल में पता चलता है कि समाज के घटकों के रक्त का रंग लाल है यासफेद. वस्तुतः कोरोना के कालधर्म को राजसत्ता का उत्तर है सेवाधर्म.कालधर्म के सापेक्ष सेवा का राजधर्म एक नवीन भारत की पुनः सर्जना, नवीनसृष्टि ही है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)