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आपदाओं का कहर

Climate change : एक अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि पिछले साल ऐसा एक दिन भी नहीं गुजरा, जब देश के किसी न किसी हिस्से में कोई आपदा नहीं आयी. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति के अनुसार, धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर पर रोकने के लिए 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 43 फीसदी तक कटौती करनी होगी

Climate change : भारत उन देशों में है, जो जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न समस्याओं से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं. हमारे देश में अत्यधिक लू वाले दिनों की संख्या 30 वर्षों में 15 गुना बढ़ चुकी है. बीते दशक में ही यह बढ़ोतरी 19 गुना रही है. मानसून के मौसम में गर्मी जैसी स्थिति में भी वृद्धि हो रही है. आइपीइ ग्लोबल एवं एसरी इंडिया द्वारा किये गये नये अध्ययन में बताया गया है कि देश के 84 प्रतिशत से अधिक जिले अत्यधिक लू से प्रभावित हो सकते हैं तथा इनमें से 70 प्रतिशत जिलों में बहुत अधिक बरसात की तीव्रता और आवृत्ति भी बढ़ रही है.

प्रकृति के ऐसे कहर का कारण बीती सदी में तापमान में 0.6 प्रतिशत की वृद्धि है. अत्यधिक बरसात से एक ओर शहरी क्षेत्रों में बाढ़ की समस्या आम होती जा रही है, तो दूसरी ओर भूस्खलन जैसी खतरनाक आपदाएं बढ़ रही हैं. कुछ दिन पहले केरल के वायनाड में हुए भूस्खलन से कई लोगों की मौत हुई तथा अनेक इलाकों का पूरी तरह विनाश हो गया. दिल्ली और आसपास के शहरों में बहुत अधिक बारिश से आयी बाढ़ जानलेवा साबित हुई. हमारे देश में अच्छे मानसून की बड़ी अहमियत है क्योंकि यह पानी का प्रमुख स्रोत है. लेकिन बरसात के मौसम में गर्मी का बढ़ता प्रकोप एक गंभीर चिंता की वजह बनता जा रहा है. इससे खेती के साथ-साथ इंफ्रास्ट्रक्चर और लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है.

कुछ वर्षों से जाड़े के मौसम में औसत तापमान बढ़ने से रबी फसलों के उत्पादन में कमी आयी है. औचक बारिश और अधिक तापमान खरीफ फसलों के लिए नुकसानदेह साबित हो रहे हैं. हीटवेव से भी लोग मर रहे हैं और स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. इससे कार्यक्षमता में भी कमी आ रही है तथा स्वास्थ्य सेवा पर दबाव बढ़ रहा है. स्थिति की गंभीरता का अनुमान अध्ययन के इस निष्कर्ष से लगाया जा सकता है कि 2036 तक हर 10 में से आठ भारतीय प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में होगा.

एक अन्य अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि पिछले साल ऐसा एक दिन भी नहीं गुजरा, जब देश के किसी न किसी हिस्से में कोई आपदा नहीं आयी. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति के अनुसार, धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर पर रोकने के लिए 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 43 फीसदी तक कटौती करनी होगी. धरती के गर्म होने की गति पहले के आकलनों से कहीं अधिक है. आज धरती 1.7 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है. इस वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण में सुझाव दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के हिसाब से हमें अपने को ढालने के उपाय करने चाहिए. विभिन्न आंकड़ों और अध्ययनों की सहायता से ऐसा किया जा सकता है.

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