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स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत

महामारी पर काबू पाने के लिए कोरोना वायरसकी वैक्सीन को विकसित करने के लिए दुनियाभर में अभूतपूर्व तरीके से कोशिशकी जा रही है.

निशिकांत दुबे, लोकसभा सांसद, गोड्डा

delhi@prabhatkhabar.in

कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए हमारे देश में चल रहा लॉकडाउन, जो कि दुनिया में सबसे बड़ा है, को 17 मई को यानी अगलेसप्ताह बहुत हद तक खत्म किया जा सकता है. हालांकि, अब तक भारत में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की कुल संख्या 70 हजार को पार कर चुकी है. शुरूमें ही सावधानी बरतते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को बंद कर लॉकडाउन लागूकर दिया था. इस निर्णय की पूरी दुनिया में प्रशंसा हुई और विश्वस्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) जैसे संस्थानों ने भी सरकार की तारीफ की.अब आगे हम लॉकडाउन खोलने के उपायों और आर्थिक गतिविधियों को फिर से शुरूकरने पर विचार कर रहे हैं. साथ ही, हम इस महामारी के दुष्प्रभावों को कमकरने की कोशिश भी कर रहे हैं. महामारी पर काबू पाने के लिए कोरोना वायरसकी वैक्सीन को विकसित करने के लिए दुनियाभर में अभूतपूर्व तरीके से कोशिशकी जा रही है. लेकिन हमें सभी संभावित परिणामों के लिए पहले से ही तैयाररहना चाहिए. अगर इस साल दिसंबर तक कोई कारगर दवाई नहीं आ जाती है, तोहमें क्या करना होगा? अगर हम कामयाब भी हो जाते हैं, तो दुनियाभर मेंसामान्य जनता तक इसे पहुंचाने में कितना वक्त लगेगा?

विभिन्न आकलनों और तथ्यों से यह इंगित होता है कि भारत को अधिक डॉक्टरों की आवश्यकता है. भारत में डॉक्टर की उपलब्धता और आबादी का अनुपात विश्वस्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों से बहुत कम है. अगर आंकड़ों कोदेखें, तो भारत में एक डॉक्टर पर 1445 नागरिकों का अनुपात बैठता है, यानीकुल मिलाकर देश में लगभग 11.59 लाख डॉक्टर ही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठनका कहना है कि डॉक्टर और आबादी का आदर्श अनुपात एक हजार की आबादी पर एकडॉक्टर की उपलब्धता है. भारत की जनसंख्या के मद्देनजर इस अनुपात परपहुंचने के लिए देश में लगभग 16.74 लाख डॉक्टरों की आवश्यकता होगी.सेंट्रल ब्यूरो ऑफ हेल्थ इंटेेलिजेंस के राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल,2019 के अनुसार, अगर केवल सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों को ही शामिल कियाजाये, तो भारत में 10,926 लोगों पर केवल एक एलोपैथिक सरकारी डॉक्टर है.

एक अन्य आकलन के अनुसार, हमारे देश में करीब छह लाख डॉक्टरों और 20 लाखनर्सों की कमी है. सहयोगी मेडिकल स्टाफ की तो बहुत ज्यादा कमी है.अगरअन्य पश्चिमी देशों से तुलना करें, तो भारत कोविड-19 महामारी सेउल्लेखनीय तरीके से निपट रहा है. हालांकि, संक्रमण के बढ़ते मामलों कोदेखते हुए भारत में अधिक मेडिकल स्टाफ और स्वास्थ्य सुविधाओं को अत्यधिकजरूरत है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भारत में केवल 9.50 लाख सक्रियडॉक्टर ही हैं. इसे देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने अनुमान लगाया था किपीक पर करीब 8.26 लाख मामले होंगे, ऐसे में इलाज के लिए डॉक्टरों कीसंख्या बहुत कम होगी. हालांकि, डॉक्टरों की कमी भारत सरकार की गलती कीवजह से नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में डॉक्टरों कीसंख्या में लगभग 40 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. इस समस्या की जड़कांग्रेस के शासन से जुड़ी हुई है. मेडिकल संस्थानों और स्वास्थ्यसुविधाओं पर कभी समुचित ध्यान ही नहीं दिया गया. अगर सरकार कोविड-19महामारी की लड़ाई में कामयाब होना चाहती है, तो देशभर में तेजी से मेडिकलसंस्थानों को बनाने और डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने पर जोर देना होगा.कांग्रेस शासन में की गयी गलतियों को दूर करने और किसी आपात कालीन स्थितिसे निपटने के लिए प्रभावी मेडिकल तंत्र बनाने के लिए सरकार के पास कई तरहसे रास्ते हैं.

अगर भारत एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर की उपलब्धता के अनुपात को हासिलकरना चाहता है, तो 2030 तक 20.07 लाख अतिरिक्त डॉक्टरों की जरूरत होगी.इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य परअपने खर्च को बढ़ाना होगा. सरकार को नये मेडिकल संस्थानों के निर्माण परजोर देना होगा. यह व्यवस्था अर्द्ध निजी या निजी साझेदारी के माध्यम कीजा सकती है. भारत को डॉक्टर उपलब्ध करानेवाले संस्थानों में निजी क्षेत्रके लाभ को बढ़ावा देने से दो प्रकार से फायदे हो सकते हैं- देश मेंडॉक्टरों की कमी की समस्या का हल हो जायेगा और अर्थव्यवस्था को लगभगअप्रयुक्त बाजार से जरूरी बढ़ावा भी मिलेगा. स्वास्थ्य मंत्रालय का वर्षके लिए बजट लगभग नौ अरब डॉलर का था.

कोविड-19 की महामारी और डॉक्टरों कीकमी को देखते हुए यह जरूरी है कि अन्य मंत्रालयों के बजट से कटौती करइसका आवंटन स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए किया जाये. अगर भारत सरकारस्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े कर्मियों का देश की आबादी के सापेक्ष आदर्शअनुपात हासिल करना चाहती है और नागरिकों की बेहतरी के लिए अस्पतालों काप्रभावी ढांचा खड़ा करना चाहती है, तो इसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआइ) को बढ़ावा देना होगा. इसके साथ प्रत्येक वर्ष स्थ्यमंत्रालय को आवंटित बजट में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए. जब इस तरह कीपरिस्थितियां हमारे दरवाजे पर दस्तक देंगी, तो हम उससे लड़ाई के लिएपूर्ण रूप से तैयार होंगे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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