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आंध्र के एलुरु शहर के सबक

आंध्र के एलुरु शहर के सबक

यह गंभीर चिंता का विषय है कि देश का कोई-न-कोई हिस्सा हर साल किसी रहस्यमय बीमारी की गिरफ्त में आ जाता है. एक ओर कोरोना का कहर जारी है. इसी बीच आंध्र प्रदेश के एलुरु इलाके में रहस्यमय बीमारी की खबरें आयी हैं. बीमारी का पता लगाने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस की टीम पहुंची. उसने प्रारंभिक जांच से जो निष्कर्ष निकाला है, उसके अनुसार एलुरु शहर में पीने के पानी में निकल और सीसा जैसे भारी तत्वों की मौजूदगी रहस्यमय बीमारी का कारण है.

एम्स के विशेषज्ञों का मानना है कि सीसा और निकल जैसी भारी धातुओं की मौजूदगी के कारण न्यूरोलॉजिकल इश्यू उभर कर सामने आ रहे हैं. लोगों में मिरगी जैसे लक्षणों वाली बेहोशी, घबराहट, उल्टी और पीठ दर्द जैसी समस्याएं होने लगी हैं. प्रारंभिक जांच के अनुसार निकल और सीसा जैसे घातक रासायनिक तत्व कीटनाशकों के माध्यम से लोगों के खून तक जा पहुंचे हैं.

हालांकि ठोस नतीजे पर पहुंचने से पहले कुछ और रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. सीएम जगनमोहन रेड्डी ने अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि वे मरीजों के शरीर में भारी धातु तत्वों की मौजूदगी को लेकर गहन जांच करें और इलाज की प्रक्रिया पर नजर रखें. विशेषज्ञों का मानना है कि पीने के पानी, चावल, सब्जियों और मछलियों के जरिये ये धातु लोगों के शरीर तक जा पहुंची हैं. बीमारी की चपेट में अब तक 505 लोग आये हैं, जिनमें से 370 से अधिक लोग ठीक हो गये हैं.

सूचनाओं के अनुसार, इस शहर से परस्पर जुड़ी दो नहरें हैं, जिनमें खेती में इस्तेमाल होनेवाले कीटनाशक और सब्जियों व मछलियों को ताजा रखनेवाले रसायन अलग-अलग इलाकों से बह कर आते हैं. अनेक गांवों व एलुरु शहर के लोगों के लिए पेयजल का स्रोत भी ये नहरें ही हैं. एलुरु के लोगों के खून में घातक रसायन और भारी धातुओं की मौजूदगी बेहद चिंताजनक है.

देखने में आया है कि अनेक राज्यों में घातक कीटनाशकों का इस्तेमाल धड़ल्ले से होता है. इनको लेकर जागरूकता का भारी अभाव है, जबकि इनके दुष्प्रभावों के बारे में व्यापक जानकारियां उपलब्ध हैं. कीटनाशक कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का कारण बन सकते हैं. ये पानी को दूषित करने के साथ-साथ भूमि का क्षरण भी करते हैं. समय-समय पर देश के अलग-अलग हिस्सों से इन कीटनाशकों की वजह से किसानों की मौत की भी सामने खबरें आती रहती हैं.

देश में अनेक रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल पर रोक है, लेकिन पाबंदी को कड़ाई से लागू नहीं किया जाता है. विशेषज्ञ कहते हैं कि शरीर में सबसे अधिक कीटनाशक सब्जियों और पेयजल के माध्यम से पहुंचते हैं. यह तथ्य छुपा हुआ नहीं है कि कई राज्यों के खेती में कीटनाशकों का अनियंत्रित इस्तेमाल हो रहा है. कीटनाशक के जहरीले तत्व सिंचाई जल के जरिये अनाज, सब्जियों और फलों तक जा पहुंचता है. ये कीटनाशक जमीन में रिस कर भू-जल को भी जहरीला बना देते हैं. साथ ही नदियों, तालाबों और अन्य जल स्रोतों के पानी को भी जहरीला बनाते हैं.

जब भी कृषि में आत्मनिर्भरता का जिक्र आता है, तो हरित क्रांति की चर्चा जरूर होती है. हरित क्रांति खेती का पश्चिमी देशों का मॉडल था, जिसमें कृषि पैदावार बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का जम कर इस्तेमाल किया जाता था. हमने बिना सोच समझे अधिक पैदावार बढ़ाने के लालच में इस व्यवस्था को अपना लिया, लेकिन जल्द ही हमें समझ में आया कि इसके अनेक गंभीर दुष्परिणाम हैं.

हमने इस प्रणाली को तो अपना लिया, लेकिन इसकी कमियों की अनदेखी कर दी. इसमें पानी की खपत भी बढ़ गयी. साथ ही किसानों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ा. पंजाब के किसानों ने इस व्यवस्था को सबसे अधिक अपनाया, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में पंजाब के बठिंडा, फरीदकोट, मोगा, मुक्तसर, फिरोजपुर और संगरूर जिलों से बड़ी संख्या में किसान कैंसर मरीज के रूप में सामने आये हैं.

पंजाब के बठिंडा से चल कर राजस्थान के बीकानेर जाने वाली ट्रेन का नाम अबोहर-जोधपुर एक्सप्रेस है, लेकिन इसे कैंसर एक्सप्रेस के नाम से भी जाना जाता है. कैंसर एक्सप्रेस सैकड़ों कैंसर मरीजों को बठिंडा से बीकानेर के आचार्य तुलसी कैंसर संस्थान तक पहुंचाती है. हर रोज पूरे उत्तर भारत से सैकड़ों लोग यहां इलाज कराने आते है. हालांकि बठिंडा में कैंसर संस्थान स्थापित कर दिया गया है, लेकिन लोग अब भी इलाज के लिए बीकानेर जाते हैं.

मीडिया के अनुसार, राष्‍ट्रीय कैंसर संस्‍थान, झज्जर की प्राथमिक रिपोर्ट में वर्ष 2019 में आठ लाख से अधिक लोगों की मौत हुई है. राष्ट्रीय कैंसर संस्थान हर साल देश में कैंसर की स्थिति को लेकर एक रिपोर्ट जारी करता है, लेकिन इस बार कोरोना काल के कारण यह रिपोर्ट जारी नहीं की गयी है. राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के आंकड़ों के मुताबिक 2014 से लेकर 2019 तक के बीच छह वर्षों में 45,10,188 लोगों की कैंसर से मौत हुई है.

भारतीय चिकित्‍सा अनुसंधान परिषद के राष्‍ट्रीय कैंसर रजिस्‍ट्री कार्यक्रम के अनुसार जहरीले आहार और तंबाकू उत्‍पादों के इस्तेमाल के कारण मुंह, प्रोस्‍टेट, फेफड़े, स्‍तन, गर्भाशय, सर्वाइकल और ब्‍लड कैंसर हो रहा है. कैंसर के मामले में सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में हुई हैं. यहां कैंसर बढ़ने और इससे होने वाली मौत, दोनों राष्‍ट्रीय औसत से अधिक हैं.

उत्तर प्रदेश में साल 2016 से लेकर अब तक 4.93 फीसदी की दर से कैंसर मरीजों की संख्‍या बढ़ रही है, जबकि मौत 4.95 फीसदी की दर से बढ़ी है. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के हमारे अन्य अनेक शहरों की स्थिति भी कोई बहुत अच्छी नहीं है.

देश में एक अन्य बड़ा खतरा पॉलिथीन और प्लास्टिक से भी है. बिहार, झारखंड समेत कई राज्यों में पॉलिथीन पर प्रतिबंध तो है, लेकिन इसका इस्तेमाल अब भी जारी है. जान लीजिए कि सामान्य-सी दिखने वाली पॉलिथीन और प्लास्टिक बहुत बड़ा जंजाल है. यह पूरे पर्यावरण में वह जहर घोल रही है. इसने इंसान, जानवर और पेड़ पौधों, किसी को नहीं छोड़ा है. प्रकृति के लिए यह अत्यंत घातक है. माना जाता है कि प्लास्टिक अजर अमर है और इसको नष्ट होने में एक हजार साल लग जाते हैं.

इसके नुकसान की लंबी चौड़ी सूची है. जलाने पर यह ऐसी गैसें छोड़ती है जो जानलेवा होती हैं. यह जल चक्र में बाधक बनकर बारिश को प्रभावित करती है. नदी नालों को अवरुद्ध करती है. खेती की उर्वरा शक्ति को प्रभावित करती है. हम लोग अक्सर खाने की वस्तुएं प्लास्टिक में रख लेते हैं, जिससे कैंसर की आशंका बढ़ जाती है. अपने देश में प्रदूषण और पर्यावरण का परिदृश्य वर्षों से निराशाजनक रहा है. इसको लेकर समाज में जैसी चेतना होनी चाहिए, वैसी नहीं है, लेकिन अब समय आ गया है कि जब हम इस विषय में संजीदा हों.

posted by : sameer oraon

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