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चीन सीमा पर सकारात्मक शुरुआत

भारत की तरफ से यह कहना स्वाभाविक है कि सीमा पर शांति बरकरार रखने की जिम्मेदारी चीन की अधिक है. चीन को जिम्मेदारी लेनी होगी और ईमानदारी दिखानी होगी.

डॉ संजीव कुमार रिसर्च फेलो

इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स

jnu.sanjeev@gmail.com

वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर बीते कई महीनों से जारी तनाव के मद्देनजर भारत और चीन के बीच नौ दौर की वार्ता हुई और अब दोनों पक्षों की सहमति के बाद सैनिकों को पीछे हटाने की कवायद शुरू हुई है. संसद में रक्षामंत्री ने चीनी सेना की वापसी के बारे में बयान दिया था. अभी 21 तारीख को 10वें दौर की वार्ता संपन्न हुई है. नौ दौर की वार्ता के बाद जो आपसी सहमति बनी, उससे एक अच्छी शुरुआत की बुनियाद तैयार हुई.

सैनिकों को पीछे हटाने के बारे जो आधिकारिक तौर पर शुरुआती जानकारी मिल रही है, उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि दोनों पक्ष अप्रैल, 2020 के पूर्व वाली स्थिति में जायेंगे. हालांकि, यह सकारात्मक शुरुआत है और दोनों पक्षों के बीच पैंगोंग सो इलाके में सहमति बनी है. दोनों तरफ से कुछ समय के लिए सैन्य अधिस्थगन की घोषणा हुई है, वहां एक विसैन्यीकृत जोन (डिमिलिट्राइज्ड जोन) बन रहा है. लेकिन, एलएसी पर कई इलाकों में विवाद की स्थिति है. उन सभी इलाकों के लिए बातचीत जारी है. उनमें से कई बारे में अभी सार्वजनिक तौर पर जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन, पश्चिमी क्षेत्र में विवाद को देखते हुए यह अच्छी शुरुआत है. आगे की स्थिति अभी चल रही वार्ता पर निर्भर करेगी.

चीन की तरफ से ही एलएसी की स्थिति में परिवर्तन की कोशिश की गयी थी. उसने एलएसी पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी थी. चीन का यह कदम भारत तथा चीन के बीच पूर्व में हुए समझौतों के खिलाफ था. अभी जिस तरह से सैनिकों को पीछे हटाने के लिए चीन तैयार हुआ है, उस मामले में हम कह सकते हैं कि भारत की तरफ से जरूरी दबाव बनाया गया. अगस्त में भारत के विशेष सीमा बल ने कैलाश रेंज में कुछ स्थानों पर कब्जा किया, उससे चीन पर एक दबाव बना. इससे पहले चीन की तरफ से जो संकेत मिल रहे थे, वे भारत-चीन संबंधों के लिए अच्छे नहीं थे.

मौजूदा घटनाक्रम के बाद भारत-चीन संबंधों का अब एक नया दौर शुरू होनेवाला है. अप्रैल, 2020 में चीन ने जो कदम उठाया, उससे दोनों देशों के बीच वर्षों में चली आ रही जो सहमति थी, वह प्रभावित हुई. दोनों के बीच कई समझौते थे, मसलन दोनों पक्ष एलएसी के मसले पर हुए समझौतों का सम्मान करेंगे, दोनों देश विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ायेंगे.

इसकी शुरुआत 1987 में हुई थी. साल 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का ऐतिहासिक दौरा किया था. उनके दौरे से पहले पीएन हक्सर चीन के दौरे पर गये थे. उन्होंने यह सुझाव दिया था कि दोनों देशों को अलग-अलग क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाना चाहिए. आपसी सहयोग की जो शुरुआत उस दौर में हुई थी, वह अभी तक चली आ रही थी. वर्ष 2013 के बाद से चीन की तरफ से सीमा की स्थिति में परिवर्तन की कोशिशें की गयीं. हालांकि, समय-समय पर उत्पन्न तनावों का दोनों ने हल निकाल लिया. यह सहमति बनी हुई थी कि हम सीमा को शांतिपूर्ण रखेंगे, समझौतों का सम्मान करेंगे और बाकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ायेंगे,

यह फ्रेमवर्क अब टूट चुका है. अब नये सिरे से आपसी सहमति पर वार्ता होगी. सीमा समस्या से निजात पाने के बाद दोनों देश, खास कर भारत इस पर गंभीरता से विचार करेगा. नये दौर में चीन की चुनौतियों से कैसे निबटा जाए, भारत इसे लेकर गंभीर है. दूसरी बात, सीमा का मुद्दा द्विपक्षीय है, लिहाजा आपसी सहमति के आधार पर ही किसी समस्या का समाधान निकाला जायेगा.

बहुपक्षीय मंचों पर जब दोनों देशों के प्रमुख मिलते हैं, उस दौरान अलग-अलग मुद्दों पर वार्ता होती है. वर्तमान सीमा मुद्दे पर कोर कमांडर स्तर की वार्ता होती रही है और समय-समय पर विदेश मंत्रालय की तरफ से बयान आता रहा है. हाल में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और जी-20 का वर्चुअल सम्मेलन हुआ है. भारत का रुख स्पष्ट है कि वह इस मुद्दे का हल आपसी बातचीत से करना चाहता है. भारत और चीन कई बहुपक्षीय मंचों ब्रिक्स, एससीओ, जी-20 और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एआइआइबी) में सदस्य हैं. बहुपक्षीय मंचों का अलग एजेंडा होता है.

ब्रिक्स में दोनों ही देशों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है. इसमें भारत की तरफ से सक्रिय भूमिका अदा की जाती है. इसकी सफलता के लिए दोनों देशों के साथ-साथ अन्य सदस्य देश भी सक्रियता से काम करते हैं. यह उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का एक अहम संगठन है. कई क्षेत्रों में ब्रिक्स देश वर्ष भर चलनेवाले कार्यक्रमों में अपनी भागीदारी तय करते हैं. कोरोना महामारी के चलते बीते एक वर्ष में थोड़ा ठहराव की स्थिति रही है. हालांकि, उसमें भी कई वर्चुअल इंवेंट आयोजित किये गये हैं. इसमें आर्थिकी, वैज्ञानिक शोध, कृषि समेत अनेक क्षेत्रों में पारस्परिक भागीदारी होती है. इससे सभी देशों को फायदा मिलता है.

अभी भारत और चीन के संबंधों में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी है, उसमें चीन की बड़ी जिम्मेदारी और जवाबदेही है. सीमा पर तनाव की स्थिति चीन द्वारा ही उत्पन्न की गयी है. चीन ने बड़ी संख्या में सैनिकों की सीमा पर तैनाती बढ़ायी और उसने सीमा की स्थिति में परिवर्तन की कोशिश की. हालांकि, सवाल है कि आखिर चीन की इसके पीछे मंशा क्या थी और उसने ऐसा क्यों किया. कुछ दिन पहले विदेश मंत्री ने भी बयान दिया था कि चीन के इस कदम की पीछे क्या कारण थे, वह स्पष्ट नहीं हो पाया है. चीन द्वारा सैनिकों की तैनाती बढ़ाना ही पूर्व में हुए सभी समझौतों का स्पष्ट उल्लंघन है. सीमा पर शांति बरकरार रखने के लिए 1993,1996 में समझौते हुए थे. इसके बाद दोनों के बीच 2005 और 2013 के समझौते हुए थे. इन सभी समझौतों का चीन ने उल्लंघन किया.

चीन ने ऐसा क्यों किया, इसका जवाब देना मुश्किल है. इसलिए, भारत की तरफ से यह कहना स्वाभाविक है कि सीमा पर शांति बरकरार रखने की जिम्मेदारी चीन की अधिक है. चीन को एक जिम्मेदारी लेनी होगी और ईमानदारी दिखानी होगी. खास कर ऐसे मौके पर जब दोनों देशों ने फिर से आपसी संबंधों की बेहतरी की दिशा में आगे बढ़ना शुरू किया है. वास्तव में स्थिति को सामान्य तथा इस वार्ता प्रक्रिया को सफल तभी माना जायेगा, जब दोनों ही पक्ष अप्रैल, 2020 की स्थिति में वापस जाएं. हो सकता है कि अभी उस स्थिति में आने में समय लगे, लेकिन जो शुरुआत हुई है, वह स्वागतयोग्य है.

Posted By : Sameer Oraon

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