बढ़ती महंगाई
आपूर्ति बाधित होने से कीमतों को बढ़ाने का मौका मिल जाता है. महामारी की वजह से आपूर्ति बाधित हुई, जिसका सबसे अधिक नुकसान छोटे उद्यमों को हुआ.
महामारी के बाद आर्थिक गतिविधियों में सुधार के संकेत स्पष्ट िदखने लगे हैं. लेकिन, आमदनी और बचत के लिए आमजन का संघर्ष अभी भी जारी है. बीते दिनों घरेलू एलपीजी सिलेंडर के दाम में 50 रुपये की बढ़ोतरी और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में जारी उछाल चिंता को बढ़ानेवाला है. देश के कई शहरों में पेट्रोल की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई को पार कर शतक के करीब पहुंच रही है. पिछले एक वर्ष में पेट्रोल की कीमतों में प्रति लीटर लगभग 18 रुपये तक की बढ़ोतरी हो चुकी है.
ईंधन की ऊंची कीमतों का असर महंगाई पर पड़ेगा, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग सबसे अधिक प्रभावित होगा. मोदी सरकार के लिए यह संतोषजनक है कि महंगाई अभी भी निर्धारित लक्ष्य सीमा के अंदर ही है. हालांकि, करों में कटौती कर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी लाने की मांग विपक्ष द्वारा की जा रही है. ईंधन की कीमतों में जारी बढ़त का असर थोक और खुदरा बाजार पर होगा, जिससे उपभोक्ताओं को आवश्यक वस्तुओं की महंगाई का सामना करना पड़ सकता है. वर्तमान महीने में घरेलू गैस की कीमतों में दो बार बढ़ोतरी हो चुकी है.
हालांकि, कीमतों में बढ़ोतरी या कमी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत और डॉलर एक्सचेंज के रेट पर भी निर्भर करती है. महामारी के बाद से उपभोक्ता मांग पूरी तरह से पटरी पर नहीं लौटी है, फिर भी कोर इन्फ्लेशन (इसमें खाद्य और ईंधन शामिल नहीं) बढ़ रही है. हालांकि, पिछले महीने के आंकड़ों के मुताबिक हेडलाइन इन्फ्लेशन में गिरावट की प्रवृत्ति जारी रही.
गैर-खाद्य मुद्रास्फीति का दबाव आगे की चुनौतियों को और बड़ा कर सकता है. कीमतों में बढ़त, महामारी की वजह से कारोबार पर पड़े दुष्प्रभाव को मामूली तौर पर कमतर कर सकती है. वस्तुओं की तरह सेवाओं की लागत को आयात जैसे विकल्पों के माध्यम से कम नहीं किया जा सकता है. सैद्धांतिक तौर पर मांग में कमी का असर कीमतों में गिरावट के तौर पर दिखता है, लेकिन बाजार की आंतरिक जटिलताओं के कारण यह पूरी तरह से सच नहीं होता.
इसी वजह से बड़े और छोटे उद्यमों के बीच अंतर स्पष्ट होता है. कीमतों को नियंत्रित करने की ताकत की वजह से कोर इन्फ्लेशन बढ़ जाता है. आपूर्ति बाधित होने से कीमतों को बढ़ाने का मौका मिल जाता है. महामारी की वजह से आपूर्ति बाधित हुई, जिसका सबसे अधिक नुकसान छोटे उद्यमों को हुआ. छोटे और मझोले कारोबारों के दोबारा पटरी पर लौटने पर ही आपूर्ति के इस मसले का समाधान हो सकता है.
कोर इन्फ्लेशन के दबाव का अनुमान भारतीय रिजर्व बैंक को है. ऐसे में केंद्रीय बैंक वित्त वर्ष 2022 में हेडलाइन इन्फ्लेशन पांच प्रतिशत से थोड़ा ऊपर रहने की उम्मीद कर सकता है. यह आंकड़ा लचीले मुद्रास्फीति लक्ष्य सीमा के अंतर्गत ही रहेगा. अर्थव्यवस्था में जारी सुधार और कोर इन्फ्लेशन में बढ़त के रुख के समानांतर पूंजी प्रवाह के मद्देनजर आरबीआइ को नीतिगत फैसलों में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा. आगामी महीनों में आर्थिक वृद्धि को बनाये रखने के साथ-साथ महंगाई को नियंत्रण में रखने की चुनौती भी आरबीआइ के लिए परीक्षा होगी.
Posted By : Sameer Oraon