बीते साल अप्रैल-मई में लद्दाख क्षेत्र में चीन द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिशों के बाद पैदा हुए तनाव में कमी के आसार नहीं हैं. वैसे तो दोनों देशों के सैन्य अधिकारी कई चरणों में बातचीत कर चुके हैं और यह सिलसिला अभी भी जारी है, लेकिन चीन एक ओर बातचीत से समाधान निकालने पर जोर देता रहता है, तो दूसरी तरफ वह लद्दाख क्षेत्र में सैनिकों और हथियारों का भारी जमावड़ा कर रहा है.
भारतीय सेना ने न केवल घुसपैठ की कोशिशों को रोकने में कामयाबी हासिल की है, बल्कि चीनी जमावड़े के जवाब में समुचित संख्या में सैनिकों के साथ अत्याधुनिक हथियारों की तैनाती भी की है. लेकिन चीन की आक्रामकता को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह तनातनी देर तक बरकरार रह सकती है. अनेक रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती की वजह से कोई छोटी घटना भी बड़े संघर्ष में बदल सकती है.
लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा की लंबाई 1597 किलोमीटर है. जानकारों की मानें, तो चीनी सेना की तैनाती में बढ़ोतरी से इंगित होता है कि चीन दीर्घकालिक जमावड़े की कोशिश कर रहा है. कुछ अन्य क्षेत्रों में भी चीनी सेना की गतिविधियां तेज हुई हैं. भारत, चीन और भूटान की साझा सीमा पर तैनाती बढ़ना भी चिंताजनक है.
इससे स्पष्ट है कि चीन सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सभी क्षेत्रों में आक्रामक रवैये का प्रदर्शन कर रहा है. निश्चित रूप से भारतीय सेना चीन का मुकाबला करने में सक्षम है और उम्मीद है कि जल्दी ही वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना की गतिविधियों को देखते हुए समुचित कदम उठाये जायेंगे. समूची दुनिया चीन की आक्रामकता से परिचित है.
आर्थिक मदद और निवेश की आड़ में कई देशों में चीन आंतरिक राजनीति में भी दखल देने की कोशिश कर रहा है. चीन के वर्चस्व का विस्तार अंतरराष्ट्रीय शांति एवं स्थिरता के लिए खतरा है. भारत में हिंसा और आतंक बढ़ाने पर आमादा पाकिस्तान की मदद और उसके कारनामों को संरक्षण भी चीन दे रहा है.
यह ठीक है कि अनेक पश्चिमी देशों ने समय-समय पर चीन की कड़ी आलोचना की है, लेकिन चीन पर अंकुश लगाने के लिए कोई भी असरदार कोशिश नहीं की गयी है. भारत ने लगातार कहा है कि अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बहुपक्षीय सहयोग के नियमों के अनुसार संचालित होनी चाहिए.
चीन पड़ोसी देशों को अपनी सैनिक और आर्थिक ताकत की धौंस दिखा ही रहा है, वह तकनीक के माध्यम से भी डाटा चुराने से लेकर संवेदनशील सूचनाओं को हासिल करने की कोशिश कर रहा है. इसी वजह से भारत ने कई मोबाइल एप पर पाबंदी लगायी है. मानवाधिकारों के उल्लंघन और पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक व्यवहार करने जैसे चीनी रवैये के खिलाफ अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साझा मंच बनाकर उस पर कूटनीटिक दबाव डालने का समय आ गया है.
Posted By : Sameer Oraon