खेत-खलिहानों से विकास की राह
राज्य सरकार ने कृषि एवं किसानों के हितों का ध्यान रखा है और आनेवाले वर्षों में इससे भी बेहतर प्रयासों की उम्मीद है.
रबींद्र नाथ महतो
स्पीकर, झारखंड विधानसभा
एक लोक कल्याणकारी सरकार की नीतियों का मूल आधार संरचना निर्माण नहीं, बल्कि ‘व्यक्ति-विकास’ होना चाहिए. झारखंड की 70 प्रतिशत आबादी जीवन-यापन के लिए कृषि पर निर्भर है. ऐसे में कृषि का समुचित विकास आवश्यक है. कोरोना महामारी के कठिन दौर में जब खरीफ फसल का प्रथम अनुमान आया, तो निश्चय ही यह उत्साहवर्धक था. इस वर्ष लगभग 70 लाख टन धान के उत्पादन की उम्मीद है. इस वर्ष करीब 17.50 लाख हेक्टेयर से अधिक धान लगाया गया था, जो कि राज्य गठन के बाद सर्वाधिक है.
राज्य में कृषि के समुचित विकास की राह लंबी है और इसके लिए पूरी तैयारी की आवश्यकता है. झारखंड में खेती योग्य कुल भूमि 38 लाख हेक्टेयर है, जबकि 25.6 लाख हेक्टेयर पर खेती होती है और मात्र 12 प्रतिशत पर ही सिंचाई की सुविधा है. कृषि योग्य भूमि राज्य के कुल क्षेत्रफल का 52 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत 55 प्रतिशत के निकट है. परंतु, इसका मात्र 43 प्रतिशत क्षेत्र वास्तविक खेती के अंतर्गत है, जो कि राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. इस प्रकार कृषि के समुचित विकास के लिए पहली चुनौती खेती के क्षेत्रफल को बढ़ाना है. यह तभी संभव हो पायेगा, जब सिंचाई की व्यवस्था सुलभ हो.
इस संबंध में सरकार द्वारा सदन में प्रस्तुत किये नीतिगत दस्तावेजों पर मैंने नजर डाली. राज्य सरकार द्वारा देवघर जिले के पुनासी जलाशय योजना को वर्ष 2021-22 में पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. साहेबगंज जिला अंतर्गत गुमानी बैराज परियोजना द्वारा अगले वर्ष सिंचाई प्रारंभ करने का लक्ष्य है. रख-रखाव तथा मरम्मत के अभाव में राज्य की कुल 102 पुरानी वृहद एवं मध्यम सिंचाई योजनाओं की सिंचाई क्षमता में लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट आयी है.
सिंचाई प्राप्त करने हेतु इनका पुनरुद्धार किया जा रहा है. इसके अंतर्गत 66 योजनाओं का कार्य प्रगति पर है, जिसे अगले वर्ष पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है. राज्य में छोटे-छोटे नदी नाले के प्रवाह को चेक डेम के माध्यम से रोक कर सिंचाई एवं दैनिक उपयोग में लाया जाता है. पूर्व से चली आ रही 300 चेक डेम की योजनाओं को अगले वित्तीय वर्ष में पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है. पूर्व से स्वीकृत योजनाओं में से 50 मध्यम सिंचाई योजनाओं के पुनःस्थापन का कार्य आगामी वित्तीय वर्ष में पूर्ण करने का लक्ष्य है.
कृषि की बदहाली का एक महत्वपूर्ण कारण किसान भाइयों का ऋण के बोझ तले दबा होना भी है. राज्य सरकार ने अपने पहले बजट में अल्पकालीन कृषि ऋण राहत योजना प्रारंभ करने का निर्णय लिया है और 2020-21 में इस निमित्त 2,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. सरकार द्वारा 50,000 रुपये तक के कृषि ऋण को माफ करने की घोषणा की गयी है. इससे राज्य के 70 प्रतिशत किसान लाभान्वित होंगे. उत्पादन की अधिकता के बावजूद प्रायः किसानों को फसल का सही मूल्य नहीं मिल पाता.
इसे ध्यान में रखते हुए धान उत्पादन एवं बाजार सुलभता नाम की एक नयी योजना शुरू की गयी है. इसके लिए 2,000 करोड़ रुपये का प्रावधान है. मौसम से संभावित क्षति से बचाव के लिए राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के स्वरूप में बदलाव करते हुए 2020 के खरीफ मौसम से झारखंड राज्य किसान राहत कोष सृजित करने का निर्णय लिया है.
इसके लिए 100 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है. फसल बर्बादी पर क्षतिपूर्ति का भुगतान सीधा किसानों को देने का निर्णय लिया गया है न कि बीमा कंपनियों को. वर्ष 2016 में सरकार ने बीमा कंपनियों को 153 करोड़ रुपये के प्रीमियम का भुगतान किया, जबकि बीमा कंपनियों द्वारा मात्र 29 करोड़ रुपये का भुगतान किसानों को किया गया. इसी प्रकार वर्ष 2017 में 114 करोड़ का भुगतान और 36 करोड़ रुपये किसानों तक पहुंचे. वर्ष 2018 में 225 करोड़ के भुगतान के सापेक्ष मात्र 13 करोड़ रुपये किसानों तक पहुंचे.
कृषक/महिला स्वयं सहायता समूह आदि के लिए कृषि यंत्र वितरण की योजना राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रही है. झारखंड में सब्जी की खेती की प्रचुर संभावना है. टमाटर के उत्पादन में राज्य का देश भर में दूसरा स्थान है. मटर एवं बीन के उत्पादन में झारखंड का पांचवां और बंद गोभी के उत्पादन में छठा स्थान है. सब्जियों की खेती में परिश्रम के अनुरूप लाभ मिल पाये इसके लिए पर्याप्त शीतगृह की आवश्यकता है.
राज्य में वर्तमान में 24 शीतगृह हैं, जबकि कम-से-कम 50 शीतगृहों की आवश्यकता है. राज्य सरकार ने 2020-21 में 30 करोड़ रुपये की लागत से दो शीतगृहों के निर्माण का लक्ष्य रखा है. कृषि के अलावा पशुपालन से न केवल किसानों के लाभ में बढ़ोतरी हो सकती है, बल्कि बेरोजगारी का समाधान भी निकल सकता है. पशु उत्पादों में राज्य का उत्पादन खपत से कम है. अंडा के उत्पादन और खपत में 77 प्रतिशत, मांस उत्पादन और खपत में 71 प्रतिशत, मछली के उत्पादन और खपत में 32 प्रतिशत, दूध के उत्पादन और खपत में 38 प्रतिशत का अंतर है.
पशुओं के लिए एंबुलेंस सुविधा के साथ उन्नत डायग्नोस्टिक एवं अन्य परीक्षण प्रयोगशाला के अधिष्ठापन की तैयारी है. महिलाओं के आर्थिक उन्नयन हेतु 90 प्रतिशत अनुदान पर दुधारू गाय वितरण योजना से अब गरीबी रेखा से ऊपर के परिवारों को भी जोड़ा जायेगा. कामधेनु डेयरी फार्मिंग योजना के तहत प्रगतिशील दुग्ध उत्पादक परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने, अनुदानित दरों पर चारा काटने की मशीन एवं संतुलित पशु आहार उपलब्ध कराने की भी योजना है.
राज्य सरकार ने कृषि एवं किसानों के हितों का ध्यान रखा है और आनेवाले वर्षों में इससे भी बेहतर प्रयासों के लिए उम्मीद है. अन्नदाताओं के स्थिति में बेहतरी एवं उनकी आय में सुधार के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबद्धता आवश्यक है. दो महीने से किसान, केंद्र सरकार की नीतियों के विरुद्ध लामबंद हैं.
केंद्र कृषि नीति को किसानों के बदले बड़े उद्योगपतियों की आवश्यकताओं के आधार पर बनाने के लिए प्रयासरत है. ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति के विकास की अपनी प्रतिबद्धता को मुक्त रूप प्रदान करने के लिए राज्य सरकार को अपने सीमित संसाधनों का बेहतर प्रयोग करना होगा. नवाचारों को अपनाते हुए राज्य के कृषि एवं किसानों की स्थिति को बेहतर करना होगा.
Posted By : Sameer Oraon