गर्म होती धरती
भारत ने स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करने का संकल्प लिया है तथा इस दिशा में कुछ प्रयास भी हुए हैं, किंतु उनकी गति धीमी है.
जलवायु परिवर्तन और धरती के बढ़ते तापमान की समस्या विकराल होती जा रही है. रिकॉर्ड के अनुसार, 2016 के साथ वैश्विक महामारी से जूझता 2020 का साल सबसे गर्म साल रहा है. बीते सात साल भी अब तक के सबसे गर्म साल रहे हैं. साल 2020 के तापमान का इतना अधिक होना अचरज की बात है क्योंकि पिछले साल महीनों तक भारत समेत कई देशों में लॉकडाउन की वजह से औद्योगिक व कारोबारी गतिविधियां लगभग बंद थीं तथा यातायात भी न के बराबर था.
नासा के अध्ययन के मुताबिक, 19वीं सदी से अब तक धरती के तापमान में दो डिग्री फॉरेनहाइट (1.2 डिग्री सेल्सियस) की बढ़त हो चुकी है. ऐसे में बीते छह दशकों से अधिक समय में भारत में जनवरी का सबसे गर्म महीना होना बेहद चिंताजनक है. दक्षिण भारत में तो 121 सालों में यह महीना सबसे अधिक गर्म रहा है. पृथ्वी के तपते जाने की वजह से समुद्री बर्फ और ग्लेशियर पिघल रहे हैं, गर्म हवाएं चल रही हैं तथा पौधों व पशुओं के प्राकृतिक ठौर-ठिकानों में बदलाव हो रहा है. भारत समेत अनेक एशियाई देशों में बाढ़ और सूखे की बढ़ती बारंबारता और बेमौसम की बारिश का कारण भी तापमान का बढ़ना है.
इसी वजह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, समुद्री जल-स्तर ऊपर उठ रहा है तथा तटीय इलाकों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है. उत्तराखंड की हालिया त्रासदी का सीधा संबंध भी बढ़ते तापमान से है. वर्ष 2015 में हुई पेरिस जलवायु समझौते से उम्मीद बंधी थी कि जल्दी ही इन चुनौतियों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस कदम उठाये जायेंगे, लेकिन पांच सालों में कोई संतोषजनक पहल नहीं हो सकी है. हालांकि भारत ने स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग बढ़ाने और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता को कम करने का संकल्प लिया है तथा इस दिशा में कुछ प्रयास भी हुए हैं, किंतु उनकी गति धीमी है.
परंपरागत ईंधनों से जहां कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण बढ़ रहा है, वहीं इसकी वजह से लोगों की जानें भी जा रही हैं तथा गंभीर बीमारियां पैदा हो रही हैं. एक ताजा शोध में बताया गया है कि 2018 में दुनियाभर में 87 लाख लोग ऐसे ईंधनों के प्रदूषण से मरे थे. इस कारण हमारे देश में औसतन लगभग पांच मौतें रोज होती हैं. साल 2018 में यह आंकड़ा 24.6 लाख रहा था. भारत में सभी मौतों में से करीब एक-तिहाई मौतें प्रदूषण से होती हैं.
कम प्रदूषण की स्थिति में कई कोरोना संक्रमितों की जान बचायी जा सकती थी. पिछले साल प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित 30 शहरों में 21 भारत में हैं. हमारी नदियों में भी प्रदूषण बढ़ रहा है और वन क्षेत्र सिमट रहे हैं. हमें विकास के साथ प्रकृति और पर्यावरण के साथ संतुलन स्थापित कर धरती के तापमान को कम रखने के वैश्विक प्रयासों को तेज करना होगा. यह समस्या मनुष्य ने पैदा की है और अगर मानव जाति के अस्तित्व को बचाना है तथा भावी पीढ़ियों को सुरक्षित जीवन देना है, तो सभी को इसके समाधान के लिए तत्पर होना होगा.
Posted By : Sameer Oraon