अनुचित है पश्चिमी देशों की टीका-टिप्पणी
पश्चिम को मालूम होना चाहिए कि मुस्लिम आबादी के लिहाज से भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. यहां मुस्लिम आबादी लगभग उतनी ही है, जितनी पाकिस्तान में. अल कायदा, इस्लामिक स्टेट आदि आतंकी गिरोहों में आप भारत के गिने-चुने लोग पायेंगे. उन समूहों को देश में कोई समर्थन नहीं मिल सका.
भारत समेत अनेक देशों के आंतरिक मामलों के बारे में अनावश्यक टिप्पणी करने की पश्चिम की आदत बहुत पुरानी है. यह स्वागतयोग्य है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस आदत के लिए पश्चिमी देशों को आड़े हाथों लिया है. यह रवैया पश्चिम के मिशन का हिस्सा है. मानवाधिकार और लोकतंत्र के बहाने अन्य देशों पर दबाव बनाना उनकी विदेश नीति की एक रणनीति है. वे हस्तक्षेपकारी रवैये की तरह इनका इस्तेमाल करते हैं. जबकि असलियत यह है कि उनके अपने देशों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले बड़ी संख्या में होते रहते हैं. वहां लोकतंत्र का क्या स्तर है, यह भी दुनिया से छुपा हुआ नहीं है. ह्यूमन राइट्स काउंसिल, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल आदि जैसे कई उनके सिविल सोसायटी संगठन हैं, जिनका उपयोग इस रणनीति के लिए किया जाता है. ऐसे ज्यादातर संगठन पश्चिम के ही हैं. उनके रिपोर्ट में कई बार पश्चिमी देशों के बारे में भी लिखा होता है, पर न तो उन्हें पढ़ा जाता है और न ही उन पर चर्चा होती है. दूसरी अहम बात यह है कि इस तरह की रिपोर्ट तैयार करने वाले दूसरे देशों की आंतरिक स्थिति, सामाजिक ताना-बाना, बदलाव आदि के बारे में ठीक से जानते-समझते नहीं हैं. तो, जब रिपोर्टों को लेकर मीडिया में सनसनीखेज बातें कहीं जाती हैं, तो उन्हें एकत्र कर पश्चिमी देश मानवाधिकार और लोकतंत्र की दुहाई देने लगते हैं.
मुख्य बात यह है कि पश्चिमी देश अपने को दूसरे देशों से श्रेष्ठ दिखाना चाहते हैं. सच यह है कि अमेरिका और यूरोप के देशों के संबंध जिन देशों से सबसे मजबूत हैं, वहां अलोकतांत्रिक व्यवस्थाएं हैं. यह भी विडंबना ही है कि कई रिपोर्ट ऐसे होते हैं, जो मानवाधिकार और लोकतंत्र के पैमाने पर भारत से ऊपर पाकिस्तान को रख देते हैं. कोई भी समझदार व्यक्ति या समूह ऐसी हरकत नहीं कर सकता. लेकिन उनका इरादा एक राजनीतिक संदेश देने का होता है. अब सवाल यह उठता है कि अभी ऐसा क्यों किया जा रहा है. भारत एक ऐसे देश के रूप में उभरा है, जिसकी नीतियां स्वतंत्र हैं, जिसकी विदेश नीति स्वतंत्र है, जो दुनिया के बारे में सोचता है, जिसकी बड़े वैश्विक मुद्दों- जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था आदि- पर पैठ बढ़ी है तथा जो दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और 2027 तक उसके तीसरे स्थान पर आने की आशा है. फिलहाल भारत जी-20 समूह के साथ शंघाई सहयोग संगठन का भी अध्यक्ष है. कुछ समय पहले ग्लोबल साउथ की शिखर बैठक हुई, जिसमें 120 देशों की भागीदारी रही थी. इन उपलब्धियों से पश्चिम को यह संकेत मिल चुका है कि भारत उनके द्वारा इंगित राह पर नहीं चल सकता है, तो वे दबाव बनाने के लिए हथकंडे अपना रहे हैं. यह तब हो रहा है, जब उन्हें यह अच्छी तरह पता है कि भारत सभी देशों के साथ मित्रता और सहकार के संबंध का आकांक्षी है. अनेक पश्चिमी देशों के साथ आर्थिक के अलावा रणनीतिक भागीदारी भी भारत की है.
रूस-यूक्रेन का युद्ध हो या कोरोना महामारी हो, भारत ने बड़ी सकारात्मक भूमिका निभायी है. जब पश्चिमी देश टीकों की जमाखोरी कर रहे थे, भारत ने कई देशों को वैक्सीन की आपूर्ति की. हाल में तुर्किये और सीरिया में आये भूकंप के बाद वहां तुरंत सहायता भेजी गयी. भारत ने अपना जो अलग स्थान बनाया है, उसे पश्चिम स्वीकार नहीं कर पा रहा है. कुछ दिन पहले हुए जी-20 समूह के विदेश मंत्रियों की बैठक में रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले के चलते साझा बयान पारित नहीं हो सका. वह एक भू-राजनीतिक प्रकरण है, जिसमें पश्चिमी देश भारत को भी उलझाना चाहते हैं. जो मसले दुनिया के हित में हैं, उन पर उनका ध्यान नहीं है, पर इस पर उनका ध्यान जरूर है कि दूसरे देशों को कैसे नियंत्रित किया जाए. पश्चिम को मालूम होना चाहिए कि मुस्लिम आबादी के लिहाज से भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. यहां मुस्लिम आबादी लगभग उतनी ही है, जितनी पाकिस्तान में. अल कायदा, इस्लामिक स्टेट आदि आतंकी गिरोहों में आप भारत के गिने-चुने लोग पायेंगे. उन समूहों को देश में कोई समर्थन नहीं मिल सका. मुस्लिम एवं अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोग हमारे देश के शीर्षस्थ पदों पर रहे हैं तथा राष्ट्रीय जीवन में उनकी बड़ी भागीदारी है. इन बातों को हमें दुनिया के सामने पहले से रखना चाहिए था. कई देश और उनके नागरिक इन तथ्यों को नहीं जानते हैं. हमारे देश के भीतर अगर समस्याएं पैदा होती हैं, घटनाएं होती हैं, उन्हें तुरंत सुलझाना चाहिए. यह हमारी जिम्मेदारी है. यह भी समझा जाना चाहिए कि पश्चिम के देशों में भी सामाजिक और सामुदायिक तनाव होते रहते हैं. साथ ही, हमें पश्चिम के नकारात्मक नैरेटिव बनाने की कोशिशों का प्रभावी प्रतिकार करना चाहिए, जैसा कि विदेश मंत्री और वित्त मंत्री ने किया है.
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आम तौर पर किसी भी देश को दूसरे देश के आंतरिक मसलों में दखल नहीं देना चाहिए. दो देशों के बीच अच्छे कूटनीतिक संबंध का यह एक आधार होता है. लेकिन पश्चिमी देश इस आचरण का पालन नहीं करते हैं. वे दबाव के औजार के रूप में अन्य देशों के मामलों पर टीका-टिप्पणी करते हैं. इसका अर्थ यह नहीं है कि हम या कोई देश अपनी सीमा में मानवाधिकार का उल्लंघन करें. मानवाधिकार के मामले में भारत का ऐतिहासिक रूप से शानदार रिकॉर्ड रहा है. बाहर से आकर यहां कई समुदाय बसते रहे और राष्ट्रीय जीवन का हिस्सा बनते गये. विविधता के मामले में कोई भी देश भारत के समकक्ष नहीं है. यूरोप और अरब में ईसाईयत और इस्लाम के प्रसार से पहले ये धर्म भारत पहुंच चुके थे. यहूदी और पारसी यहां जमाने से रह रहे हैं. शांतिपूर्ण चुनाव और सत्ता हस्तांतरण के मामले में भारत का रिकॉर्ड भी उल्लेखनीय रहा है. चुनाव परिणाम आते हैं, सरकारें बदल जाती हैं, सब कुछ सामान्य तरीके से चलता रहता है. हमें तो पश्चिमी देशों से पूछना चाहिए कि उनके साथ हमारे रणनीतिक संबंध है, मित्रता है, फिर भी उन्होंने खालिस्तानी तत्वों को न केवल जगह दी है, बल्कि हमारे दूतावासों और मंदिरों पर हमले भी हुए. प्रवासी भारतीय समुदायों में विभाजन की कोशिशें हुईं. इन गतिविधियों पर पश्चिमी देश क्यों नहीं रोक लगाते. पश्चिमी देशों में हमारे कूटनीतिक मिशनों को भारत के बारे में सही जानकारी मुहैया कराना चाहिए तथा सरकार को भी यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि वह दबाव में नहीं आ सकती है.
(बातचीत पर आधारित) (ये लेखक के निजी विचार हैं.)