वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले महीने से जारी चीन की आक्रामक गतिविधियों से उत्पन्न तनाव को दूर करने के लिए भारत और चीन के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के बीच बातचीत का सिलसिला चल रहा है. रिपोर्टों के मुताबिक, शनिवार को हुई बैठक से मिल रहे संकेत उत्साहवर्धक हैं तथा दोनों पक्षों का परस्पर संवाद आगे भी जारी रहेगा. परंतु मौजूदा तनाव के बहुत जल्दी दूर होने की उम्मीद रखना भी ठीक नहीं है क्योंकि सैनिकों की हरकतों के साथ सीमावर्ती क्षेत्रों में निर्माण का मुद्दा भी इन चर्चाओं में है.
भारत के लिए चीन की बेतुकी शर्तों को मानना संभव नहीं होगा क्योंकि कोई भी आपसी समझदारी बराबरी के मानकों पर ही बन सकती है. बीते दिनों में चीन की सैन्य टुकड़ियों ने कोई आपत्तिजनक सक्रियता नहीं दिखायी है और चीनी जमावड़े की प्रतिक्रिया में भारतीय सेना ने भी अधिक संख्या में सैनिकों को तैनात करने के साथ पूर्वी लद्दाख के तनावग्रस्त इलाके में जरूरी साजो-सामान भी पहुंचा दिया है. निश्चित रूप से इन सबका असर चीन के रवैये पर पड़ा है. साल 2017 के दोकलाम में भारतीय सेना ने दृढ़ता का परिचय देते हुए चीनी हरकतों का सामना किया था और अंतत: चीन को यथास्थिति बहाल करने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
मौजूदा तनातनी में भारत का साफ कहना है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल, 2020 की स्थिति को बरकरार रखना होगा. भले ही कई दशकों से चीन और भारत के बीच सशस्त्र संघर्ष की नौबत नहीं आयी है, लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन द्वारा लगातार अतिक्रमण और घुसपैठ की घटनाएं होती रही हैं. कुछ समय से इन घटनाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. चीन ने अपनी थलीय और समुद्री सीमाओं पर हाल के सालों में जो आक्रामता दिखायी है तथा सामरिक गतिविधियों को जिस प्रकार से उसने व्यापारिक उद्देश्यों से जोड़ा है, उनका संज्ञान लेते हुए स्पष्ट समझा जा सकता है कि चीनी सेना की कार्रवाइयां साधारण घुसपैठ या शरारत नहीं कही जा सकती हैं.
इन उकसावों के बावजूद भारत ने न केवल धैर्य का परिचय दिया है, बल्कि दोनों देशों के बीच विवादों को निपटाने तथा संवाद रखने की व्यवस्थाओं का भी पूरा सम्मान किया. दोनों देश कूटनीतिक संबंधों की बहाली के सात दशक पूरे होने के उपलक्ष्य में 70 कार्यक्रम आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में चीन को किसी भी ऐसी कोशिश से परहेज करना चाहिए, जिससे आपसी भरोसा बनने की प्रक्रिया को चोट पहुंचे. कोरोना वायरस के संक्रमण तथा उससे पैदा हुए वैश्विक आर्थिक संकट से दोनों देशों का सामना है. एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं होने के साथ भारत और चीन विश्व में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं भी हैं. कूटनीति से विवादों का समाधान दोनों देशों के हित में हैं.