शहादत दिवस : जन मुद्दों की राजनीति की धारदार आवाज थे महेंद्र सिंह

Comrade Mahendra Singh : महेंद्र सिंह जिस लोकतांत्रिक राजनीति के पथ पर पूरी बुलंदी व सक्रियता के साथ स्वयं सक्रिय रहे, उसी रास्ते पर जनता को भी सक्रिय बनाते रहे. राजनीति के सरोकारों को पूरी तरह से आम जन और गरीबों-वंचितों के अधिकारों-सवालों पर लाकर केंद्रित कर दिया.

By अनिल अंशुमन | January 16, 2025 10:53 AM

Comrade Mahendra Singh : आपकी जिंदगी के सारे सवाल हल कर देंगे, हम इसकी गारंटी आपको नहीं देते हैं. लेकिन एक बात हम आपको अवश्य बता देना चाहते हैं कि हम जनता के साथ हैं. जूते की तरह पार्टी नहीं बदलते हैं हम. वोट भी नहीं बेचेंगे हम और न ऐसी-वैसी चीज करके आपको शर्मिंदा करने का अवसर देंगे. हमारे लोग मारे जा सकते हैं, जेल जा सकते हैं, लेकिन आपकी लड़ाइयों के साथ कभी दगा नहीं कर सकते हैं. हम इतनी-सी बात का भरोसा आपको दे सकते हैं. ये बेबाक कथन कॉमरेड महेंद्र सिंह ने अपनी शहादत से चंद रोज पहले बगोदर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहे थे.


अब आप जरा मौजूदा सियासी माहौल पर नजर दौड़ाइए. गौर करने पर आप यही पायेंगे कि संभवतः कुछ अपवाद को छोड़कर बाकी सब केवल और केवल ‘पावर पॉलिटिक्स की धींगामुश्ती’ में चैंपियन बनना ही अपने अस्तित्व का पर्याय बनाये हुए हैं. राजनीतिक दलों व नेताओं के लिए, जनता से रिश्ता और महत्व केवल येन-केन-प्रकारेण वोट देने-लेने तक का ही बन कर रह गया है. राजनीति में पारदर्शिता-नैतिकता व शुचिता जैसे शब्दों का तो कोई मायने-मतलब नहीं रहने दिया गया है आज. और तो और, जनता के लिए जनप्रतिनिधि वापसी का अधिकार जैसे लोकतांत्रिक मुद्दों की चर्चा न होने देने पर तो विराट साझी सहमति दिखती हैं. इसके ठीक उलट, महेंद्र सिंह जिस लोकतांत्रिक राजनीति के पथ पर पूरी बुलंदी व सक्रियता के साथ स्वयं सक्रिय रहे, उसी रास्ते पर जनता को भी सक्रिय बनाते रहे. राजनीति के सरोकारों को पूरी तरह से आम जन और गरीबों-वंचितों के अधिकारों-सवालों पर लाकर केंद्रित कर दिया. स्वयं भी इसी पर केंद्रित होते हुए विधानसभा पटल से लेकर सड़कों तक जन अभियानों में जीवन पर्यंत अडिग बने रहे.


लोकतंत्र के आखिरी पायदान पर धकेल दिये गये बहुसंख्य आम जन को अपने अधिकारों-सवालों के लिए स्वयं खड़े होने की सक्रियता के अनेक नये रूप गढ़ कर समकालीन समस्याओं से जूझने का सलीका भी रचा. ‘हादसों से राजनीति नहीं, बल्कि हादसे हों ही नहीं, इसकी राजनीति की.’ ऐसा इसलिए था, क्योंकि महेंद्र सिंह अच्छी तरह से इस बात को जानते और समझते थे कि बिना सार्थक जन बदलाव के, जिसमें आम जन की स्व-भागीदारी और संगठित सक्रियता सुनिश्चित हो सके, बेहतर भविष्य के निर्माण को संभव नहीं बनाया जा सकता है. इन्हीं संदर्भों को तार्किक आधार देते हुए उनके सहकर्मी रहे वरिष्ठ एक्टिविस्ट व पत्रकार के अनुसार, भारतीय राजनीति में, जहां ‘डिक्लास व डीकास्ट’ होने की पहले से ही अवरुद्ध प्रक्रिया है, जो अब भयावह नफरती व हिंसायुक्त बनती जा रही है, ऐसी स्थिति में भी महेंद्र सिंह मुद्दों के वर्गीय चरित्र की सटीक व्याख्या कर पक्ष में खड़े हो जाते थे.


यह मार्क्सवाद की ठोस देसी समझ का ही परिणाम था कि किसानों और मेहनतकशों के साथ-साथ जल-जंगल-जमीन से वृहत्तर संदर्भ में जीवंत मार्क्सवादी दर्शन को जोड़ते थे. इसलिए वे जनता के इंकलाब की प्रक्रिया के सतत विकास की धारा अन्वेषित करते थे, जिसके केंद्र में जनतंत्र, जन एकता-सक्रियता और जन मुद्दों की राजनीति ही रही. इन सबकी वे ऐसी मुखर आवाज बने, जिसे कभी दबाया नहीं जा सकता. यदि हम उन्हें आधुनिक कबीर कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. क्योंकि उनकी रगों में जनतंत्र और आदर्श कम्युनिस्ट नैतिकता का जीवन-व्यवहार रचा-बसा था, और वही उन्हें विशिष्ट बनाता गया. वे बेबाक थे, क्योंकि उनका राजनीतिक जीवन पारदर्शी था.

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