यह आशंका बहुत पहले से थी कि कश्मीर में कोई ऐसा आतंकी हमला हो सकता है. पाकिस्तान में जो आर्थिक, राजनीतिक और संवैधानिक संकट है, उसे देखते हुए यह मान लेना ठीक नहीं था कि उसकी ओर से कोई हिमाकत नहीं होगी. ऐसा सोचना खामख्याली थी, खुशफहमी थी. पाकिस्तान के लिए एक तरह से यह जरूरी हो गया था कि भारत को जताया जाए कि पाकिस्तान ऐसे हमले करने में सक्षम है.
स्वाभाविक रूप से वे युद्ध तो नहीं चाहेंगे क्योंकि उसके लिए अर्थव्यवस्था और अन्य स्थितियां ठीक-ठाक होनी चाहिए, पर वे यह भी नहीं चाहते कि भारत यह सोचे कि अब पाकिस्तान की ऐसी औकात नहीं रही कि वह भारत के अंदर कुछ कर सके. तो, वे हमें जलते हुए रखेंगे, भले आग की आंच धीमी रहे. एक तरह से पुंछ में हुए हमले को इस नजरिये से देखना चाहिए.
दूसरी बात यह है कि आगे भी ऐसे हमलों की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है. भले हम वैसे हमलों को जी-20 की बैठकों के संदर्भ में देखें या शंघाई सहयोग संगठन की बैठक (जिसमें विदेश मंत्री समेत पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के आने की बात हो रही है) से जोड़ कर देखें, पर ऐसी घटनाओं को सामरिक दृष्टि से देखना होगा, जिसका उल्लेख मैंने पहले किया है. पाकिस्तान कुछ न कुछ करता रहेगा. उसके मायने क्या निकाले जायेंगे, वह बहस अलग है.
जहां तक पुंछ हमलों में इस्तेमाल हथियारों या हमले के तरीके की बात है, तो ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. कहा जा रहा है कि बख्तरबंद गाड़ी को भेदने वाली गोलियों का इस्तेमाल हुआ है. ऐसा पहले भी हुआ है. यह भी कहा जा रहा है कि ऐसी गोलियां चलायी गयी हैं, जो स्टील को भेदने के साथ आग भी लगा देती हैं. विस्तृत जांच रिपोर्ट आने के बाद ही हमें ठीक से पता चल सकेगा कि असल में इस घटना में क्या क्या हुआ है.
जहां तक ऐसे हथियारों और गोली-बारूद की बात है, तो आरडीएक्स की तरह ये भी मिलिटरी ग्रेड हथियार हैं. इसे आधार बना कर अगर हम पाकिस्तान पर आरोप लगायें, तो वह बहुत आसानी से इससे मुकरते हुए कह देगा कि वे क्या कर सकते हैं, अमेरिका ने अफगानिस्तान में ढेर सारा असलहा और बारूद रख छोड़ा है, जो किसी तरह आतंकियों के हाथ लग गये हैं.
वे यह भी कह सकते हैं कि पाकिस्तान खुद ऐसे हमलों का भुक्तभोगी है और उनके यहां भी कई दहशतगर्द गुट सक्रिय हैं. ऐसे कई मामले हैं, जिनमें इस्तेमाल आरडीएक्स का स्रोत पाकिस्तान था, पर उसने इसे नहीं माना. यह हमला घात लगाकर किया गया है. जब भी किसी सैनिक वाहन का मूवमेंट होता है, तो उसका एक प्रोटोकॉल होता है.
इस मामले में शायद इसका ठीक से ध्यान नहीं रखा गया. इसे नजरअंदाज भी कर दें, तो कई बार ऐसा होता है कि जब घात लगाकर हमला होता है, तो सैनिक भी पलट कर जवाब देते हैं. यह सब कुछ मिनटों में खत्म हो जाता है. ऐसे हमलों में कुछ सैनिक शहीद हो सकते हैं या घायल हो सकते हैं तथा दहशतगर्द भाग निकलते हैं. कई बार यह भी होता है कि मंशा न होने के बावजूद नुकसान अधिक हो जाता है.
मैं यह नहीं कह रहा हूं कि इस मामले में ऐसा हुआ है क्योंकि अभी कुछ कह पाना संभव नहीं है. बताया जा रहा है कि ट्रक पर दहशतगर्दों ने ग्रेनेड फेंका, जिससे आग लग गयी. हो सकता है कि ट्रक के भीतर ऐसी कोई चीज हो, जिससे आग भड़क गयी और वह इतनी तेजी से भड़की हो कि सैनिक उसकी चपेट में आ गये हों. अभी हम संभावनाओं पर ही बात कर रहे हैं. पर इसे भी हम मद्देनजर ना रखें और रखना भी नहीं चाहिए, क्योंकि अहम बात यह है कि एक हमला हुआ है और उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी.
जहां पर यह घटना हुई है, वह नियंत्रण रेखा के करीब है. ऐसे में संभव है कि हमलावर उस पार भाग चुके हों. इसका मतलब यह है कि अगर उनकी खोजबीन स्थानीय स्तर पर होगी, तो बहुत संभव है कि वे लोग हाथ ना आयें. हां, यह जरूर है कि आप उनके नेटवर्क का पता कर सकते हैं. स्थानीय स्तर पर किसने मदद की, किसने पनाह दी, यह जाना जा सकता है. लेकिन इसके बाद जो करने के लिए बचता है, वह यही है कि आप सरहद पार, जहां से यह हमला नियंत्रित हुआ है, वहां पर कोई कार्रवाई करें.
लेकिन वैसा करने में कुछ कूटनीतिक और राजनीतिक अड़चनें आ जाती हैं. ऐसे में अब सरकार को सोचना है कि इस आतंकी हमले की जो प्रतिक्रिया होगी, वह कैसी होगी, कब होगी और किस तरह की होगी. पर हमें यह बात समझनी होगी कि वैसी प्रतिक्रिया हुई भी, तब भी इस तरह के हमले होते रहेंगे. इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान भारत को परेशान करने के अपने रवैये में सुधार नहीं करेगा.
यह भी रेखांकित करना जरूरी है कि कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था काफी पुख्ता है. जब मैं यह कह रहा हूं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वहां हमले नहीं होंगे. ऐसे हमले होंगे, पर वहां स्थिति बहुत हद तक सामान्य है. देश में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता समेत ऐसी कई जगहें हैं, जहां सुरक्षा के इंतजाम शायद उतना पुख्ता नहीं हैं, जितना कश्मीर में हैं. कश्मीर की तुलना में इन जगहों पर अधिक हादसे होते हैं. लेकिन चूंकि कश्मीर में आतंकवाद और विदेश से पोषित आतंकवाद का मसला है, तो उसका स्वरूप और चरित्र बिल्कुल बदल जाता है क्योंकि वे हमले आपराधिक नहीं रह जाते.
ऐसे हमले एक तरह के थोपे हुए युद्ध का हिस्सा हैं. यह अंतर है, पर फिर भी देखा जाए, कश्मीर में हालात सामान्य हैं. यह जरूर हो सकता है कि किसी निहत्थे व्यक्ति पर घात लगाकर हमला हो जाए. इस तरह की वारदातों को रोक पाना मुश्किल होता है. जब भी पुंछ जैसी घटना होती है, तो हमारे यहां कश्मीर को लेकर हाय-तौबा मच जाती है, पर वास्तविक स्थिति इससे भिन्न है.
मुख्य बात यह है कि जब इस तरह के आतंकी हमले होते हैं और जिनमें साफ तौर पर विदेशी हाथ है, तो हमारी प्रतिक्रिया क्या और किस तरह की होती है. मेरे ख्याल से यह तय करना सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए अभी सबसे जरूरी है. साथ ही, हमें इस तरह की किसी गफलत में नहीं रहना है कि पाकिस्तान आतंकियों को संरक्षण देने और हमले कराने से बाज आयेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)