बदलाव की सिर्फ बात करती है कांग्रेस, पढ़ें राशिद किदवई का खास लेख

कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने संगठन में बदलाव लाने और जवाबदेही की बात कही. लेकिन मानना मुश्किल है कि इन पर अमल भी होगा.

By राशिद किदवई | December 2, 2024 7:32 AM

वर्ष 1849 में फ्रांसीसी लेखक जीन-बैप्टिस्ट अल्फोंस कार ने लिखा था, ‘जितना अधिक बदलाव किया जाता है, उतनी ही अधिक यथास्थिति बनी रहती है’. आज के हालात में यह कथन कांग्रेस पर पूरी शिद्दत के साथ लागू होता है- बदलाव की जितनी अधिक बातें, यथास्थिति के प्रति उतना ही अधिक दुराग्रह. और यही यथास्थितिवाद कांग्रेस की मौजूदा समस्याओं की जड़ बना हुआ है. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पार्टी की पराजय के कारणों पर चर्चा करने के लिए 29 नवंबर को आयोजित कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में एक बार फिर से उन्हीं बातों को दोहराया गया है, जो पार्टी हर चुनाव में पराजय के बाद दोहराती आयी है. हालांकि इस बैठक में पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दो बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए. एक, संगठन में फेरबदल का और दूसरा, जवाबदेही का. जवाबदेही की बात राहुल गांधी भी लगातार करते आये हैं. जब वह पार्टी अध्यक्ष थे, तब भी उन्होंने जवाबदेही का मसला उठाया था. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने स्वयं तो अध्यक्ष पद छोड़ दिया था, पर बाकी की जवाबदेही कभी तय नहीं की जा सकी.

खरगे ने यह कहकर, कि राज्यों के चुनाव में हम जो राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे उठाते हैं, वे इतने प्रभावी नहीं होते, एक तरह से राहुल गांधी के आस-पास की उस मंडली पर सवाल उठाया है, जो उन्हें परामर्श देती आयी है. हालांकि राहुल गांधी के प्रति खरगे के मन में असीम सम्मान है, लेकिन उन्होंने उन्हें यह संकेत देने में कोताही नहीं बरती कि अब पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका है और खासकर रणनीतिकारों की जवाबदेही तय करने का वक्त आ चुका है. इन रणनीतिकारों में सबसे प्रमुख हैं कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल. पर एक के बाद दूसरे चुनावों में पराजय के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व उन्हें हटा नहीं पा रहा. कांग्रेस के कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के जयराम रमेश, पवन खेड़ा तथा सुप्रिया श्रीनेत के बीच तालमेल का अभाव भी बार-बार नजर आता है. पर इसको लेकर भी कांग्रेस नेतृत्व कुछ नहीं कर पा रहा. कांग्रेस की समस्या यह है कि चुनावी हार या विषम परिस्थितियों के बाद कदम उठाने के बजाय समितियां गठित कर दी जाती हैं. शुक्रवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के बाद भी वेणुगोपाल ने मीडिया से कहा, ‘सीडब्ल्यूसी ने चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन और ब्लॉक एवं जिला स्तर पर संगठनात्मक मुद्दों को लेकर आंतरिक समितियां गठित करने का फैसला लिया है’.

समस्या कमेटियों का गठन करने की भी नहीं है. बड़ी समस्या यह है कि उन कमेटियों की रिपोर्ट पर कभी बात नहीं होती और न ही उनकी अनुशंसाओं पर कोई कदम उठाये जाते हैं. आज खरगे कह रहे हैं कि हमें जिस भी राज्य में चुनाव हो, वहां एक साल पहले से तैयारियां शुरू कर देनी चाहिए और चुनाव मैदान में हमारी चुनाव मशीनरी समय से पहले सक्रिय हो जानी चाहिए. यही बात 2007 में प्रणब मुखर्जी की अगुवाई वाली कमेटी भी कर चुकी है. उसके बाद से लोकसभा के चार और विधानसभाओं के ढेर सारे चुनाव हो चुके हैं. मई, 2022 में जब सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष थीं, तब उन्होंने 2024 के चुनाव से पहले पार्टी की राजनीतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए एक हाई-प्रोफाइल ‘एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप’ का गठन किया था. पर 2022 और 2024 के बीच इस समूह की कोई बैठक हुई भी या नहीं, इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है. उससे पहले अप्रैल, 2020 में सोनिया गांधी ने समकालीन मुद्दों पर पार्टी की लाइन तय करने के लिए 11 सदस्यीय परामर्श समूह गठित किया था. इस समूह की भी शायद ही कभी कोई बैठक हुई. इसी तरह सितंबर, 2020 में सोनिया गांधी ने संगठनात्मक फेरबदल करते हुए संगठन और संचालन मामलों में उनकी मदद करने के लिए छह सदस्यीय स्पेशल कमेटी गठित की थी, जिसमें ए.के. एंटनी, अहमद पटेल (अब दिवंगत), अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक और रणदीप सिंह सुरजेवाला थे. अहमद पटेल के स्थान पर किसी और को नियुक्त नहीं किया गया और फिर इस पूरी समिति को ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया गया.

इससे पूर्व में भी बनीं कई समितियों की रिपोर्टें 24, अकबर रोड में धूल खा रही हैं. इनमें रामनिवास मिर्धा की संगठनात्मक चुनावों पर, मनमोहन सिंह की पार्टी फंड पर, पीए संगमा और सैम पित्रोदा की संगठन के आधुनिकीकरण पर और प्रणब मुखर्जी की संगठनात्मक मामलों पर रिपोर्ट शामिल हैं. इनके अलावा फ्यूचर चैलेंजेस ग्रुप (जिसमें एक सदस्य बतौर स्वयं राहुल गांधी शामिल थे) और एआईसीसी के डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिसी एंड प्लानिंग के दस्तावेज भी वहीं किसी ताक पर जमुहाइयां लेते मिल जायेंगे. वर्ष 2014 से 2019 के बीच विभिन्न चुनावों में पार्टी की पराजयों पर एके एंटनी की तीन रिपोर्टों पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गयी. मई, 2022 में उदयपुर में चिंतन शिविर हुआ था. उसमें कांग्रेस के करीब 150 नेताओं ने बड़ी अच्छी-अच्छी बातें की थीं, लेकिन वह रिपोर्ट भी जयराम रमेश के लैपटॉप से कभी बाहर नहीं निकल पायी.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे लगातार चिंता जताते आ रहे हैं. लेकिन अगर उनकी बातों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो हो सकता है पार्टी अध्यक्ष पद पर बने रहने के औचित्य पर उनके भीतर से ही सवाल उठने लगे. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो वह अपने पद पर लंबे समय तक शायद ही रहें. इन हालात में गांधी त्रयी को यह सुनिश्चित करना होगा कि आज खरगे जो कह रहे हैं, उस पर अमल होना ही चाहिए. ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ के मिशन मोड पर आकर कदम उठाने चाहिए.

इस बीच, कांग्रेस के लिए एक अकेली अच्छी खबर यह आयी है कि अब प्रियंका गांधी वाड्रा भी चुनाव जीतकर संसद में आ गयी हैं. वर्ष 2019 में प्रियंका ने जब से सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया है, तब से काफी काम किया है. उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने अकेले ही 200 से ज्यादा बैठकें की थीं. लोकसभा चुनाव में अगर भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया, तो इसमें प्रियंका की कैंपेनिंग को भी श्रेय जाता है. लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस नेतृत्व उनका इस्तेमाल किस तरह से कर पायेगा. क्या वह कांग्रेस की रणनीतिकार होंगी या अहमद पटेल की तरह पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच सेतु का काम करेंगी? अभी तक उनकी कोई भूमिका तय नहीं की गयी है, जबकि उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका में लाने का यही सबसे मुनासिब वक्त है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version