नये साल में हम प्रकृति से और अधिक जुड़ें
New Year 2025 : मेरी यही कामना है कि नव वर्ष में प्रकृति के साथ सबके संबंध बने रहें. लोग प्रकृति से दूर न जाएं, उसके नजदीक ही बन रहें. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि धीरे-धीरे समाज में लोग प्रकृति से, कला से विमुख हो रहे हैं.
New Year 2025 : नव वर्ष में, इसी रूप में जीवन को, दुनिया को देखना चाहता हूं कि हम सब हर तरह की कलाओं की ओर बढ़ें. अभी तक कला को आत्मसात करते हुए, कला में अपने जीवन को रमाये हुए ही मैंने अपना जीवन बिताया है. इसलिए इस बात का बोध मुझे है कि यही है इस जीवन का, मनुष्य होने का मर्म. आप देखिए, सारी दुनिया सुबह उठती है, नहाती-धोती है, नाश्ता करती है, खाना खाती है, काम पर जाती है. फिर शाम को भी वही क्रम चलता है. ऐसा जीवन अत्यंत नीरस, सारहीन व मर्महीन है. तो ऐसा जीवन क्यों कोई जिये. मैं तो अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं कि बहुत कम उम्र में मैं ‘कल्पना’ जैसी पत्रिका में आ गया था. इस पत्रिका में काम करते हुए मुझे यह सीख मिल गयी थी कि कला की दुनिया की ओर बढ़ना और इसमें रमना ही जीवन है. नव वर्ष में भी मैं अपने जीवन में यही प्रवाह चाहता हूं. यह बात मैं दुनिया के लोगों से, विशेषकर युवाओं से कहना चाहता हूं कि वे भी कला में अपने आपको रमने दें, यही जीवन है.
देखिए, मेरा प्रकृति से जो संबंध पहले था, वह आज भी बना हुआ है. मेरी यही कामना है कि नव वर्ष में प्रकृति के साथ सबके संबंध बने रहें. लोग प्रकृति से दूर न जाएं, उसके नजदीक ही बन रहें. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि धीरे-धीरे समाज में लोग प्रकृति से, कला से विमुख हो रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इनसे प्रेम करने वाले लोग नहीं रह गये हैं. पर यदि वे विमुख न हुए होते तो ये युद्ध, हिंसा, घृणा दुनिया में न होती, जितनी अभी हो चुकी है. नये वर्ष में मैं चाहता हूं कि यह सब घट जाए. दुनिया में हिंसा-घृणा के लिए कोई स्थान न रह जाए, क्योंकि यह हमारे जीवन को ही लील रही है.
मैं हमेशा प्रसन्न रहने की कोशिश करता हूं. मैं यात्रा बहुत करता हूं और नव वर्ष में चाहता हूं कि यात्रा सुख और बढ़े. मैं अपने जैसा ही प्रवाहमान व गतिमान जीवन सबके लिए चाहता हूं. मेरी इच्छा है कि कि पूरे भारत के लोग नये वर्ष में सब कुछ भुला कर प्रसन्न रहने की कोशिश करें, वे खूब यात्रा करें. नयी-नयी चीजों को देखें-सीखें-जानें. उनमें निरंतरता बनी रही, वे गतिमान बने रहें. लोग सुंदर-सुंदर फिल्में देखें, नाटक देखें, अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ें, अर्थपूर्ण, भावपूर्ण कविता पढ़ें. संगीत सुनें, नृत्य देखें, कला की दुनिया के खूब काम देखें.
मैंने इसे अनुभव किया है. कुछ सोच कर, किसी बोध के सहारे ये सारी बातें कह रहा हूं. हमें अपने हृदय को प्रशांत बनाना है, आकाश को बड़ा करना है. अपने जीवन को क्षुद्रताओं में- हिंसा में, ईर्ष्या में- नहीं डालना है. ये सुंदर जीवन नष्ट नहीं करना है. ऐसी बातें सबके मन में आये और सभी इस ओर कदम बढ़ाएं, तो यह दुनिया बहुत सुंदर हो जायेगी. हमें इसके लिए कुछ नहीं करना है, बस अपने जीवन को क्षुद्रताओं से बाहर निकाल अपना समय दूसरी ओर लगाना है. स्वच्छ हवा में, हरियाली के निकट रहने का प्रयास करना है. अभी भी अपने यहां सब कुछ नष्ट नहीं हुआ है, लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, बातें करते हैं. यह मिलना-जुलना, बातचीत और बढ़े नये वर्ष में.
हमारे देश में इस समय प्रतिभाशाली युवा पीढ़ी बड़ी संख्या में है. लड़के-लड़कियां बहुत सुंदर काम कर रहे हैं, उनको सहारा मिले, उनको गति मिले, उनको रास्ते मिले. कला को बढ़ावा देने वाली जो जगहें हैं, उन्हें और विस्तार मिले. हमें नव वर्ष में युवाओं को अन्य चीजों में उलझाने से बचना चाहिए. ऐसा न हो कि हम नये के विरोध में खड़े हो जाएं कि तुम ऐसी ही रचना का सृजन करो, ऐसी ही बातें करो. युवाओं को उनके मन-मुताबिक काम करने दें, उनकी कल्पना को उड़ान भरने दें. हम नये लोगों के साथ खड़े हों, क्योंकि दो पीढ़ियों के बीच का अंतराल बढ़ रहा है. बुजुर्गों से मेरा आग्रह है कि वे जाति-धर्म की बातों से ऊपर उठें. युवा पीढ़ी संकुचित नहीं है, वह काफी खुली है, उस पर दबाव मत बनाइए. देश में कला ग्राम का विस्तार हो, ऐसी जगहें बढ़ें. फ्लैट बना-बना कर हमने आंगन वाला जीवन तो खत्म ही कर दिया है. सामने वाले फ्लैट में कौन रह रहा है, इससे भी किसी को मतलब नहीं रह गया है. ऐसे जीवन से निकल कर हम दूसरा विकल्प ढूंढें. लोग छोटी जगहों में- अपने गांवों में घर बनायें, प्रकृति के समीप रहने का आनंद उठाएं.
आइए, नये साल में हम फिर से अपने आकाश को मुक्त करें. यह देश इतना सुंदर है. इसकी विविधता, बोली-वाणी, वेशभूषा का सम्मान करें. यह विविधता ऐसी ही बनी रहे, हम इसके लिए सदैव प्रयासरत रहें. अपने देश को देखने और उसे जानने का प्रयत्न करें. ग्रामीण जीवन को देखने का प्रयत्न करें. देश का विकास अत्यंत जरूरी है, सड़कों की जरूरत है, पर यह आवश्यकता भर ही हो, उससे अधिक न हो. खेत-खलिहान बने रहें, गांव बने रहें, वे शहरों में न बदलें, यह भी कामना है मेरी, नहीं तो हम अनाज कहां से लायेंगे. इन सब पर विचार करना जरूरी है. अंत में, आजकल सब कुछ डिजिटल हो गया है. सब कुछ मोबाइल पर आश्रित हो गया है. नयी चीजें आयेंगी हीं और उनके बारे में हमें जानना चाहिए, नहीं तो हम पीछे रह जायेंगे. पर हमें इन माध्यमों को निर्मल व स्वच्छ बनाये रखा रखना होगा, यह हमारी जिम्मेदारी है.
(बातचीत पर आधारित)