20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

वन इलेक्शन पर सर्वसम्मति जरूरी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता में आने के बाद वन नेशन, वन इलेक्शन पर चर्चा कराने की बात कही थी. भाजपा के वर्ष 2014 के घोषणा पत्र में भी इसका जिक्र है. सरकार ने लॉ कमीशन, चुनाव आयोग और संसद की स्थायी समिति को इस मसले पर विचार करने के लिए कहा और इनकी ओर से सरकार को तीन सुझाव दिये गये.

एसवाई कुरैशी

देश में एक बार फिर वन नेशन, वन इलेक्शन यानी एक देश-एक चुनाव की चर्चा जोरों पर है. वैसे वन नेशन, वन इलेक्शन की चर्चा पहले भी होती रही है, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पायी, परहाल में सरकार द्वारा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन, वन इलेक्शन की गठित की गयी गयी उच्च स्तरीय समिति के बाद पूरे देश में इस पर चर्चा होने लगी है. इस उच्च स्तरीय समिति को लोकसभा और सभी विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने के हर पहलू की पड़ताल कर इसकी व्यावहारिकता को देश के सामने रखने का दायित्व सौंपा गया है. इस समिति की सिफारिशों के आधार पर ही वन नेशन, वन इलेक्शन की सोच धरातल पर उतर पायेगी. अच्छी बात है कि सरकार ने इस पहल की शुरुआत कर दी है. ऐसा नहीं है कि इससे पहले इस मसले पर किसी समिति का कोई सुझाव नहीं आया है.

वन नेशन, वन इलेक्शन पर लॉ कमीशन, नीति आयोग और संसद की स्थायी समिति भी चर्चा कर चुकी है, लेकिन इसे लागू करने का कोई ठोस समाधान पेश करने में विफल रही. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि मौजूदा समिति कैसे वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर ठोस आधार तैयार करती है. इस समिति के सदस्यों में कानून के जानकार और संविधान विशेषज्ञ भी शामिल किये गये हैं. वन नेशन, वन इलेक्शन का मुद्दा काफी जटिल है और आम राय बनाने के लिए सभी राजनीतिक दलों और हितधारकों की राय को ध्यान में रखना होगा. साथ ही कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों की सलाह भी लेनी होगी और व्यापक विचार-विमर्श के बाद ही एक सर्वसम्मत फैसला लेना होगा.

वन नेशन, वन इलेक्शन की अवधारणा वैसे देखने और सुनने में तो अच्छी है, लेकिन भारत जैसे देश में इसे लागू करने में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. भारत के राज्यों में कई तरह की विविधताएं हैं और राज्यों में अलग-अलग राजनीतिक स्थितियां हैं. किसी राज्य में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, तो किसी राज्य में मुकाबला राष्ट्रीय दलों के बीच है और किसी में गठबंधन की सरकार है. ऐसे में अगर किसी राज्य में गठबंधन की सरकार बने और वह कुछ महीने में गिर जाए, तो फिर लोकसभा के साथ चुनाव कराने के लिए राज्य का शासन कौन चलायेगा? क्या चुनाव साथ होने तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा रहेगा? किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की समयसीमा निर्धारित है.

इन सभी सवालों पर गौर करना होगा. इसके अलावा जिन राज्यों में सरकार को बने कम समय हुआ है, वहां क्या एक साथ चुनाव कराने के लिए उस सरकार को भंग कर दिया जायेगा? क्या राज्य में सत्ता पर काबिज दल इसके लिए राजी होंगे? ऐसे ही, लोकसभा और विधानसभा में किसी दल को बहुमत नहीं मिलने, दल-बदल के कारण सरकार के गिरने और किसी भी दल द्वारा सरकार बनाने के लिए दावा पेश नहीं करने जैसी स्थितियां आ सकती हैं. बहुमत वाली सरकार को विधानसभा या लोकसभा भंग करने की सिफारिश का अधिकार होगा या नहीं, ऐसे मसलों पर गंभीरता से विचार करना होगा.

वन नेशन, वन इलेक्शन को लागू करने के लिए संविधान में कई संशोधन करने होंगे. इन संशोधनों को संसद में पारित होने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने के लिए देश के आधे राज्यों की विधानसभाओं से भी पारित कराना होगा. इसके बाद ही यह कानून बन पायेगा. इस सोच को लागू करने के लिए एकतरफा निर्णय लेना संभव नहीं है और यह फैसला सर्वसम्मति के आधार पर ही संभव है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की सत्ता आने के बाद वन नेशन, वन इलेक्शन पर चर्चा कराने की बात कही थी. भाजपा के वर्ष 2014 के घोषणा पत्र में भी इसका जिक्र है. सरकार ने लॉ कमीशन, चुनाव आयोग और संसद की स्थायी समिति को इस मसले पर विचार करने के लिए कहा और इनकी ओर से सरकार को तीन सुझाव दिये गये.

पहला, अलग-अलग चुनाव कराने से काफी खर्च होता है. दूसरा, बार-बार चुनाव होने के कारण आचार संहिता लगती है और सरकारी काम प्रभावित होता है और तीसरा, चुनाव के दौरान जरूरी वस्तुओं के आवागमन पर असर पड़ता है. यह सही है कि अलग-अलग चुनाव होने से खर्च अधिक होता है. सरकारी खर्च के अलावा राजनीतिक दलों द्वारा किया जाने वाला खर्च भी शामिल है. आचार संहिता लगने के बाद सरकार नयी घोषणा नहीं कर सकती है, लेकिन पुरानी योजनाओं पर कोई रोक नहीं होती है और जनहित के फैसले सरकार चुनाव आयोग की मंजूरी से लागू कर सकती है. ऐसे में चुनाव के दौरान सरकार का काम-काज प्रभावित होने की बात सही नहीं है. यह सही है कि चुनाव के दौरान जिला प्रशासन की प्राथमिकता निष्पक्ष चुनाव कराना होती है और चुनाव के काम में शिक्षकों एवं अन्य कर्मचारियों को लगाया जाता है. इससे स्कूलों में शिक्षा प्रभावित होती है और सरकारी दफ्तरों के कामकाज पर असर पड़ता है. ऐसे में केवल इन सुझावों के आधार पर वन नेशन, वन इलेक्शन की बात करना सही नहीं है.

यह बात सही है चुनाव के दौरान सुरक्षाकर्मियों की बड़े पैमाने पर तैनाती करनी होती है. एक साथ चुनाव होने पर एक बार ही चुनाव के लिए सुरक्षाकर्मियों की तैनाती करनी होगी. इसके अलावा सभी चुनाव के लिए अलग-अलग मतदाता सूची तैयार करनी होती है. चुनाव के दौरान पर्यवेक्षकों की तैनाती होती है और एक साथ चुनाव कराने से इन खर्चों में कमी आयेगी, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि चुनाव के दौरान कई लोगों को रोजगार के अवसर मिलते हैं और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी आती है. साथ ही जनप्रतिनिधि को अगर लगेगा कि अब चुनाव पांच साल बाद ही होगा, तो वह मतदाता के प्रति उतना जवाबदेह नहीं रह पायेगा. ऐसे में वन नेशन, वन इलेक्शन की कई खामियां हैं. अगर एक साथ चुनाव होगा, तो चुनाव आयोग को बड़े पैमाने पर इवीएम और वीवीपैट मशीन की जरूरत होगी. मौजूदा समय में चुनाव आयोग के पास एक साथ सभी चुनाव कराने के लिए इवीएम उपलब्ध नहीं है. वैसे चुनाव आयोग एक साथ सभी चुनाव कराने में सक्षम है, लेकिन वन नेशन, वन इलेक्शन से जुड़े सभी मसलों पर सरकार द्वारा गठित उच्च-स्तरीय समिति को विचार करना होगा. सभी को इस समिति की रिपोर्ट का इंतजार करना चाहिए. फिलहाल इस मामले में कोई राय देना उचित नहीं होगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

(बातचीत पर आधारित)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें