आर्थिक समृद्धि में महाकुंभ का योगदान
Mahakumbh : यह दुनिया का सबसे बड़ा समागम है, जिसमें लगभग 40 करोड़ लोग हिस्सा लेने वाले हैं. महाकुंभ के पहले ही दिन ,13 जनवरी, 2025 को, पौष पूर्णिमा स्नान के अवसर पर 1.5 करोड़ लोगों ने संगम में डुबकी लगायी, तो 14 जनवरी, 2025 को मकर संक्रांति के अवसर पर 3.5 करोड़ लोगों ने.
Mahakumbh : हर 12 वर्ष में एक बार लगने वाला महाकुंभ मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में शुरू हो चुका है. इस वर्ष तेरह जनवरी से शुरू हुआ महाकुंभ मेला आध्यात्मिक ही नहीं, अपनी विशालता और श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए दुनिया के लिए एक अद्भुत आयोजन भी है. यह पवित्र समागम सदियों पुरानी परंपराओं और सांस्कृतिक भव्यता को भी दर्शाता है. इस महोत्सव की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं में निहित है. इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है, जिनके अनुसार समुद्र मंथन के पश्चात कुंभ मेले का आयोजन शुरू हुआ. मान्यता है कि समुद्र मंथन से जो अमृत का पात्र निकला था, उसे लेकर जब देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ, तो अमृत की चार बूंदें भारत के चार स्थानों पर गिरीं- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक. तभी से ये स्थल कुंभ मेले के पवित्र स्थल बन गये.
यह दुनिया का सबसे बड़ा समागम है, जिसमें लगभग 40 करोड़ लोग हिस्सा लेने वाले हैं. महाकुंभ के पहले ही दिन ,13 जनवरी, 2025 को, पौष पूर्णिमा स्नान के अवसर पर 1.5 करोड़ लोगों ने संगम में डुबकी लगायी, तो 14 जनवरी, 2025 को मकर संक्रांति के अवसर पर 3.5 करोड़ लोगों ने. माना जा रहा है कि मौनी अमावस्या स्नान, जो 29 जनवरी को होगा, उसमें कम से कम 10 करोड़ लोग भाग लेंगे. तीन फरवरी को बसंत पंचमी स्नान, 12 फरवरी को माघी पूर्णिमा स्नान और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि स्नान को मिलाकर कुल छह अमृत स्नान हैं.
दुनिया के लिए यह किसी अचंभे से कम नहीं है कि एक ही स्थान पर 40 करोड़ श्रद्धालु आयेंगे. इसके लिए प्रशासन ने प्रयागराज में मेला स्थान को 3,200 हेक्टेयर से बढ़ाकर 4,000 हेक्टेयर कर दिया है. घाटों की लंबाई 12 किलोमीटर कर दी गयी है जो 2009 में मात्र आठ किलोमीटर ही थी. विदित हो कि कुंभ मेला एक स्थान पर नहीं, बल्कि ज्योतिषीय गणना के आधार पर चार अलग-अलग स्थानों पर लगता है. कुंभ मेले में 12 वर्ष के अंतराल का कारण यह है कि बृहस्पति को सूर्य के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में 12 वर्ष लगते हैं.
कुंभ मेला वेबसाइट के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं और सूर्य तथा चंद्रमा क्रमशः मेष व धनु राशि में होते हैं तो हरिद्वार में कुंभ आयोजित किया जाता है. जब बृहस्पति वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य व चंद्रमा मकर राशि में होते हैं, तो कुंभ प्रयागराज में आयोजित किया जाता है. जब बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं, सूर्य और चंद्रमा कर्क राशि में होते हैं, तो कुंभ नासिक तथा त्रयंबकेश्वर में आयोजित किया जाता है.
यह आयोजन आर्थिक गतिविधियों का समागम भी है. जानकारों का मानना है कि 45 दिनों तक चलने वाला महाकुंभ मेला देश की जीडीपी में एक प्रतिशत तक की वृद्धि कर सकता है. प्रदेश की जीडीपी में तो उससे कहीं ज्यादा वृद्धि हो सकती है. हालांकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की गणना के अनुसार, महाकुंभ में अपेक्षित 40 करोड़ लोग पांच हजार रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से खर्च करें, तो इससे दो लाख करोड़ रुपये का आर्थिक प्रभाव होगा. लेकिन कुछ अन्य लोगों का मानना है कि प्रति व्यक्ति खर्च 10 हजार रुपये तक हो सकता है, जिसका अर्थ है चार लाख करोड़ रुपये का आर्थिक प्रभाव. यह गणना बिना आधार के नहीं है.
योगी आदित्यनाथ के अनुसार, 2019 के कुंभ ने 1.2 लाख करोड़ रुपये के अतिरिक्त जीडीपी का सृजन किया था. इस मेले में 24 करोड़ लोगों ने भाग लिया था, जो 2013 के मेला से दोगुना था. यानी इस बार 40 करोड़ लोगों की अपेक्षित भागीदारी के चलते चार लाख करोड़ रुपये का आर्थिक प्रभाव अस्वाभाविक नहीं है. सरकार द्वारा इस मेले में 7,500 करोड़ रुपये खर्च किया जाना है, जिसमें राज्य सरकार का हिस्सा 5,400 करोड़ और केंद्र सरकार का हिस्सा 2,100 करोड़ रुपये का है. योगी आदित्यनाथ का यह भी कहना है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा अस्थायी शहर है.
कुंभ मेला एक विशाल हिंदू तीर्थयात्रा और त्योहार है, जिसे 2017 में यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में अंकित किया गया था. यह मान्यता एक अद्वितीय और अमूल्य सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के रूप में त्योहार के महत्व को उजागर करती है, जो भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परंपराओं को प्रदर्शित करती है और विविध समुदायों के बीच एकता को बढ़ावा देती है.
हालांकि, 2019 कुंभ की व्यवस्थाएं भी कमतर नहीं थीं और 2017 के यूनेस्को द्वारा कुंभ को दी गयी मान्यता के अनुरूप ही थीं जिससे भारत की अद्वितीय पैमाने पर आयोजन की क्षमता का प्रदर्शन हुआ. परंतु महाकुंभ 2025 की व्यवस्थाएं एक अलग स्तर और पैमाने पर प्रबंधकीय चमत्कार को दर्शाती हैं. सुरक्षित और व्यवस्थित स्नान के लिए आठ नये घाट जोड़े गये हैं. भीड़भाड़ से बचने के लिए उन्नत भीड़ प्रबंधन तकनीक, बेहतर परिवहन बुनियादी ढांचा और कई अन्य व्यवस्थाएं की गयी हैं. इसके अतिरिक्त स्वच्छता की व्यवस्था, पेयजल सुविधाएं, सौर ऊर्जा संचालित प्रकाश व्यवस्था और आरामदायक आश्रय का प्रबंध भी किया गया है.
महाकुंभ 2025 के प्रबंधन में प्रौद्योगिकी भी अहम भूमिका निभा रही है. एआइ संचालित और ड्रोन समर्थित भीड़ नियंत्रण प्रणाली तथा समर्पित मोबाइल एप, मार्गों, घाटों के समय, मौसम अपडेट और आपातकालीन सेवाओं पर वास्तविक समय की जानकारी प्रदान कर रहे हैं. महाकुंभ में हरित पहल शून्य अपशिष्ट नीति द्वारा निर्देशित है. व्यापक रीसाइकिलिंग सिस्टम और खाद बनाने की सुविधाएं, बायोडिग्रेडेबल विकल्पों के उपयोग के साथ प्लास्टिक का प्रतिबंधित उपयोग, गंगा और यमुना की पवित्रता सुनिश्चित करने हेतु उन्नत जल उपचार संयंत्र तथा निगरानी प्रणाली, जल प्रतिधारण एवं मिट्टी के कटाव को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर वनरोपण आदि उल्लेखनीय कार्य हैं.
सौर ऊर्जा पैनल और जैव-ऊर्जा प्रणाली जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से मेले में ऊर्जा प्रदान करने की व्यवस्था है. दस हजार सीसीटीवी कैमरे, एआइ समर्थित चेहरे की पहचान तकनीक, सुरक्षा और आपदा के लिए बड़ी टीमों के साथ प्रतिक्रिया जैसी व्यवस्थाएं भी हैं.कहा जा सकता है कि श्रद्धालु अमृत काल में आयोजित हो रहे महाकुंभ 2025 में पवित्र संगम के जल में डुबकी लगाते हुए, आराम व सुरक्षा तथा स्वच्छता एवं गहन आध्यात्मिक अनुभूति का अनूठा अनुभव कर रहे हैं. इसके साथ ही, धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देकर हम देश को विकसित भारत के लक्ष्य की ओर ले जाने के संकल्प के साथ समृद्धि की ओर अग्रसर होंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)