दूषित दवाओं पर लगाम
मिलावटी दवाओं के कहर का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि तीन देशों में 300 से अधिक बच्चे मर चुके हैं.
बीते कुछ समय से अनेक देशों में खांसी-बलगम के सिरप से बच्चों के मरने या गंभीर रूप से बीमार होने के कई मामले सामने आये हैं. कुछ मामलों में दवाओं में घातक तत्वों के होने की पुष्टि हो चुकी है, तो कुछ में जांच की जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन घटनाओं का संज्ञान लेते हुए ऐसी दवाओं से बच्चों को बचाने का आह्वान किया है. ऐसे कफ सिरप में डाइएथिलिन ग्लाइकोल और एथिलीन ग्लाइकोल की बहुत अधिक मात्रा पायी गयी है.
कम-से-कम सात देशों में इस तरह की शिकायतें आयी हैं. इन मिलावटी दवाओं के कहर का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि तीन देशों में 300 से अधिक बच्चे मर चुके हैं. उनमें से अधिकतर की आयु पांच साल से कम थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जानकारी दी है कि मिलावट के लिए घातक रसायनों का इस्तेमाल हो रहा है, जिनकी मामूली मात्रा भी जानलेवा हो सकती है तथा दवाओं में कभी भी इन्हें नहीं मिलाया जाना चाहिए.
संगठन ने सभी देशों से आग्रह किया है कि वे मिलावटी दवाओं के उत्पादन और कारोबार को रोकें तथा ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई करें. पिछले साल अक्तूबर से अब तक स्वास्थ्य संगठन तीन चेतावनियां जारी कर चुका है. जिन दवाओं की शिकायतें मिली हैं, वे भारत और इंडोनेशिया में निर्मित हैं. हमारा देश ‘दुनिया का दवाखाना’ कहा जाता है. भारतीय दवा उद्योग बहुत बड़ी घरेलू मांग को पूरा करने के साथ-साथ कई देशों को दवाओं और टीकों की आपूर्ति करता है.
अफ्रीकी देशों में जेनेरिक दवाओं की कुल मांग का 50 फीसदी तथा अमेरिकी मांग का 40 फीसदी हिस्सा हमारे देश से पूरा किया जाता है. ब्रिटेन में कुल दवा मांग के 25 प्रतिशत हिस्से की पूर्ति भी भारत से ही होती है. दुनिया की 60 फीसदी वैक्सीन यहीं उत्पादित होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा संचालित अनिवार्य टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए 70 फीसदी टीके भारत में बनाये जाते हैं.
भारत में बने कोरोना टीकों की गुणवत्ता की सराहना दुनियाभर में हुई है. दुनिया के 78 देशों से लगभग 20 लाख लोग हर वर्ष उपचार के लिए भारत आते हैं. ऐसे में अगर कुछ उत्पादक अधिक कमाई के लालच में घातक तत्वों की मिलावट करते हैं या उत्पादन प्रक्रिया में लापरवाही बरतते हैं, तो इससे न केवल हमारे दवा उद्योग की प्रतिष्ठा पर आंच आती है, बल्कि देश की छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ता है.
हमारे देश में भी नकली दवाओं के मामले सामने आते हैं. अस्पतालों और चिकित्सकों तथा खराब गुणवत्ता वाली दवाओं के निर्माताओं के बीच सांठ-गांठ की शिकायतें भी आयी हैं. दवाओं में मिलावट एक अक्षम्य अपराध होना चाहिए.