कोरोना वायरस के संक्रमण तथा उसकी रोकथाम के उपायों की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था और अंतरराष्ट्र्रीय बाजार पर बहुत असर पड़ा है. इसका एक पहलू भू-राजनीतिक समीकरणों और राजनीतिक संबंधों में बदलाव भी है. ऐसे में भारत ने अपनी आर्थिकी को संभालने और उसे फिर से गति देने के इरादे से एक ओर जहां आत्मनिर्भरता पर जोर देना शुरू किया है, वहीं मौजूदा द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय व्यापार समझौतों की समीक्षा भी हो रही है.
इसी कड़ी में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने दक्षिण पूर्वी एशिया के दस देशों के संगठन आसियान से भारत के मुक्त व्यापार समझौते में समुचित फेरबदल की जरूरत को रेखांकित किया है. भारत और आसियान के बीच सामानों के आयात-निर्यात को संचालित करने के लिए मौजूदा समझौते पर अगस्त, 2019 में हस्ताक्षर हुए थे और इसे जनवरी, 2010 में लागू किया गया था.
इसके तहत दस सालों में यानी 2020 तक द्विपक्षीय व्यापार को 200 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन 2018-19 में यह आंकड़ा 96.79 अरब डॉलर ही पहुंच सका था. हालांकि अगर वृद्धि दर को देखें, तो स्थिति बहुत संतोषजनक है और आवश्यक सुधार होने पर 2025 तक यह 300 अरब डॉलर तक जा सकता है. व्यापार में बढ़ोतरी की दर 2016-17 में केवल 0.88 फीसदी थी, लेकिन 2017-18 और 2018-19 में यह क्रमश: 16.04 और 25.86 फीसदी हो गयी. एक बड़ी चिंता व्यापार घाटे को लेकर है, जो 2018-19 में लगभग 22 अरब डॉलर थी और मंत्री के बयान के अनुसार अब 24 अरब डॉलर के आसपास पहुंच चुकी है.
सो, दोनों तरफ से आयात व निर्यात बढ़ाने की संभावनाओं को साकार करने के साथ इस बात पर भी ध्यान देना जरूरी है कि जिस तरह से भारत ने आसियान देशों की वस्तुओं के बाजार उपलब्ध कराया है, उसी तरह से इन देशों में भी भारतीय निर्यात की गुंजाइश बढ़े. मौजूदा व्यापार समझौते की खूबियों के बावजूद यह भी एक हकीकत है कि 2001 और 2009 के बीच द्विपक्षीय व्यापार में बढ़त का सालाना औसत 22 फीसदी के आसपास रहा था, जबकि समझौते के लागू होने के बाद से यह दर 2010 और 2018 के बीच लगभग पांच फीसदी रही थी.
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आसियान देशों के साथ भारत की मित्रता का लंबा इतिहास रहा है. वर्ष 2018 में आसियान देशों- इंडोनेशिया. थाईलैंड, सिंगापुर. मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, म्यांमार, कंबोडिया, ब्रुनेई और लाओस- के राष्ट्राध्यक्ष व शासनाध्यक्ष हमारे गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यात्राओं और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में इन देशों के नेताओं से लगातार मिलते रहे हैं. भारत ने ‘लुक ईस्ट’ नीति को ‘एक्ट ईस्ट’ नीति में बदलकर यह संकेत पहले ही दे दिया है कि वह एशिया के इस क्षेत्र के साथ व्यापक संबंधों का आकांक्षी है. उम्मीद है कि जल्दी ही दोनों पक्ष एक बेहतर समझौते पर सहमत होंगे.