अहम हैं कोरोना आपदा के सबक
आपदाएं, चाहे वे प्राकृतिक हों अथवा मानव के द्वारा पैदा की हुईं, समय-समय पर दुनिया को प्रभावित करती रही हैं. मगर इस नये कोविड-19 वायरस का असर सबसे अलग, सबसे खतरनाक और अभूतपूर्व है
आरएस पांडे, पूर्व सचिव, भारत सरकार एवंसदस्य, बिहार विधानसभा
आपदाएं, चाहे वे प्राकृतिक हों अथवा मानव के द्वारा पैदा की हुईं, समय-समय पर दुनिया को प्रभावित करती रही हैं. मगर इस नये कोविड-19 वायरस का असर सबसे अलग, सबसे खतरनाक और अभूतपूर्व है. इस बीमारी ने बगैर किसी चेतावनी के आकर पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया और मनुष्यों में एक-दूजे की छूत से यह तेजी से फैलती गयी. बीते दिसंबर महीने के अंतिम हिस्से में केवल एक व्यक्ति से शुरुआत कर साढ़े तीन महीनों के अंदर यह 182 देशों के 14 लाख से भी ज्यादा लोगों तक फैल चुकी है. कोई व्यक्ति या राष्ट्र कितना भी ताकतवर और अमीर हो, इससे बच नहीं सका. इसने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया और अमेरिका जैसे साधनसंपन्न राष्ट्र में भी सबसे बड़ी तादाद में लोगों को बीमार कर दिया.यह बीमारी इतनी बड़े पैमाने पर ऐसी तेजी और भीषणता से बढ़ी कि इटली, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे जिन देशों में स्वास्थ्य देखरेख की व्यवस्था बहुत अच्छी मानी जाती थी, इसने उन्हें भी पस्त कर डाला.
एक ऐसी दुनिया में, जो चिकित्सा विज्ञान संबंधी अपनी नित नयी खोजों पर इतराया करती थी, और जिन्होंने निकट भविष्य में ही मौत को भी शिकस्त देने की उम्मीद जगा डाली थी, इस बीमारी का कोई टीका और इसके इलाज की कोई दवा तक उपलब्ध नहीं है. खैरियत यही है कि यह अपने शिकारों में लगभग 80 प्रतिशत तक को बगैर किसी लक्षण या फिर कुछ छोटी-मोटी तकलीफें देकर छोड़ दिया करती है. फिर भी, जितने लोगों को अस्पतालों और आइसीयू में भर्ती कराने की दरकार होती है, उनकी तादाद भी इस सीमा तक पहुंच जाती है कि मौजूद सुविधाएं बौनी पड़ जाया करती हैं.जैसा विशेषज्ञ बताते हैं, इसे दूर रखने का केवल एक ही उपाय है कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे से दूर रहे. इसे ही दूसरी तरह से कहें, तो सब लोग सोशल डिस्टेंसिंग को यथासंभव जल्दी से जल्दी और ज्यादा से ज्यादा असरदार तरीके से लागू करें.
शुरुआती हिचकिचाहट और यहां तक कि अविश्वास और उपेक्षा के बावजूद ज्यादातर सरकारों और समाजों को अंततः विभिन्न सीमाओं तक प्रतिबंधों और लॉकडाउन तक को लागू करना ही पड़ा. इसका इतना तो फायदा जरूर मिला कि उन देशों में इस रोग से पीड़ित लोगों की संख्या अपनी चोटी को नहीं छू सकी और दूसरी ओर इसकी जांच, क्वारंेटिन और उपचार संबंधी व्यवस्थाएं बढ़ाने को कुछ वक्तमिल गया.लेकिन लोगों के आवागमन तथा उनकी सामान्य गतिविधियों को रोक देने की बड़ी कीमतें भी चुकानी पड़ रही हैं. पूरे विश्व में अर्थव्यवस्थाओं, कॉरपोरेटों और छोटे कारोबारों को बहुत चोट पहुंची है. वित्तीय बाजार तो वर्ष 1929 के बाद पहली बार इस हद तक बैठ गये. पूरी दुनिया में कुशल, अर्धकुशल तथा प्रवासी कामगारों से उनके काम छिन जाने और उनके बेरोजगार बन जाने की समस्या डरावनी हद तक जा पहुंची है. सभी जगहों पर सरकारों ने उनकी तकलीफें घटाने की कोशिश में आर्थिक पैकेजों की घोषणाएं की हैं. मगर इन सबके बाद भी पूरे विश्व के लिए निराशाजनक आर्थिक स्थिति के अनुमान जाहिर किये जा रहे हैं.
कोरोना वायरस ने सारी दुनिया को अक्षरशः अपने घुटनों पर ला दिया है.दूसरी ओर, मानवीय गतिविधियों पर रोक ने कुछ स्वागतयोग्य नतीजे भी सामने लाये हैं. पंजाब के जालंधर से हिमालय की बर्फ से ढंकी चोटियां दिखने लगी हैं. शहरों में रातों के वक्त साफ आसमान में तारे टिमटिमाते दिखने लगे हैं. जो लोग जीवन की बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकते हैं, उनके पास अपने परिवारों के लिए पर्याप्त समय है. सरकारों एवं कॉरपोरेट जगत के लोग सूचना तकनीक के साधनों के द्वारा अपने घरों से ही काम कर रहे हैं. स्कूल और शिक्षण संस्थान तो बंद हैं, पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा पढ़ाई का काम चल रहा है. इस वायरस ने दुनिया को इस तरह प्रभावित कर दिया है कि सामान्य स्थितियां कब तक लौट सकेंगी, यह किसी को भी नहीं पता. सिंगापुर जैसे देश, जिन्होंने प्रतिबंधों में ढील दी थी, उसे फिर से लागू कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया में तो छह महीने का लॉकडाउन लगा दिया है.
ऐसी आशा की जाती है कि वर्ष के अंत तक इस बीमारी की दवा और टीके की ईजाद कर ली जायेगी. पर यदि जीवन एक बार फिर वर्ष 2019 के ढर्रे पर लौट भी गया, तो यह तय है कि जलवायु परिवर्तन का संकट इससे भी बड़ी चुनौती ला देगा.इस तरह कोरोना वायरस मानव जाति को यह सबक सिखाने आया है कि वह प्रकृति के साथ दुर्व्यवहार बंद करे. मानवीय अस्तित्व और उसका बचे रहना सबसे अहम है, बाजारों का दौड़ना नहीं. आर्थिक नीतियां सिर्फ फायदे की नीयत की गुलाम नहीं हों. दौलत और सुख की अंधी दौड़ ही जीवन और समाजों का एकमात्र लक्ष्य नहीं बने. मानव के बुनियादी अधिकार एक बार फिर से तय किये जाएं. पूरे विश्व में एक ईमानदार चर्चा हो कि कैसे मानव जीवन की रक्षा करते हुए लोगों की समृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है. द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वैश्विक संगठनों की जो भूमिकाएं थीं, आज वे उनसे कहीं बड़ी हो चली हैं.