तेल की धार पर कोरोना की मार
कोविड-19 ने 1930 की महामंदी से भी बड़ा नुकसान दो महीनों के भीतर कर दिया है. तेल के दामों में आयी नाटकीय गिरावट इस आघात को रेखांकित करती है.
शिवकांत, पूर्व संपादक, बीबीसी हिंदी
लंदन से विशेष
पिछले कुछ दिनों से अमेरिका के तेल आढ़त बाजारों में तेल मुफ्त से भी सस्ता बिक रहा है. मतलब यह कि यदि आप मई में तेल की आपूर्ति लेने को तैयार हों, तो बेचनेवाली कंपनियां तेल मुफ्त में देने के साथ-साथ ग्राहक को दो-तीन डॉलर प्रति बैरल का कमीशन भी देने को तैयार हैं. इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है. आपने लोगों को अपना माल मुफ्त में बांटते या फिर फेंकते तो देखा होगा, लेकिन यह शायद नहीं देखा होगा कि कोई अपना माल भी दे और साथ में शुक्रिया के तौर कमीशन भी दे, वह भी तेल जैसी चीज के लिए, जिसकी मांग और खपत दुनिया के हर कोने में मौजूद है. तेल के साथ एक समस्या और है कि उसे खेती के माल या कारखानों के माल की तरह फेंका भी नहीं जा सकता क्योंकि वह पर्यावरण के लिए बहुत घातक है.
दरअसल हुआ यह है कि कोरोना वायरस के संकट के चलते अमेरिका में तेल की मांग एकाएक बहुत गिर गयी है, इसलिए तेल की सप्लाई लेने को कोई तैयार नहीं है. तेल के उत्पादन की प्रक्रिया काफी लंबी होती है. सबसे पहले तेल निकालनेवाली कंपनियां जमीन, समुद्रतल या चट्टानों से कच्चा तेल निकालती हैं. फिर उसे तेलवाहक जहाजों या पाइपलाइनों के जरिये तेलशोधक कारखानों में पहुंचाया जाता है. वहां कच्चे तेल को साफ कर उससे डीजल, पेट्रोल, घासलेट और दूसरी तमाम चीजें बनायी जाती हैं. उसके बाद एक बार फिर जहाजों, पाइपलाइनों, रेलगाड़ियों और ट्रकों के जरिये तेल को तेल के गोदामों में भेजा जाता है, जहां से वह पेट्रोल पंपों तक आता है और वहां से आप अपनी गाड़ियों की टंकी भरते हैं.
इस पूरी प्रक्रिया में कई महीने लगते हैं, इसलिए तेल बाजारों में होनेवाले तेल के सौदे कई-कई महीने पहले कर लिये जाते हैं. तेल के सौदे उसकी मात्रा के साथ-साथ सप्लाई के महीने के हिसाब से तय होते हैं. उसके बाद शेयरों या सोने-चांदी के भावी दामों की तरह तेल के सौदों की भी दलाली होती है, जिन्हें फ्यूचर्स कहते हैं. कोरोना संकट की वजह से अमेरिका के बाजारों में मई में होनेवाली तेल की सप्लाई के सौदों का कोई ग्राहक नहीं बचा है क्योंकि यातायात और कल-कारखाने बंद पड़े हैं और इस वजह से तेल की खपत नहीं हो रही है. तेल के गोदामों में भी जगह नहीं बची है, लेकिन तेल की सप्लाई करनेवाले जहाज और ट्रक तेल से लदे हुए खड़े हैं. कहां, किसको दें, इसलिए जिन बिचौलियों ने मुनाफे में बेचने के लिए मई की तेल सप्लाई के सौदे खरीद रखे थे, उनको लेने के देने पड़ रहे हैं. वे अपनी जान छुड़ाने के लिए सौदा बेचने के साथ-साथ कमीशन भी दे रहे हैं. यह नौबत कोरोना संकट की वजह से अचानक सब-कुछ ठप हो जाने की वजह से हुआ है.
इससे पहले के आर्थिक संकट इस महामारी के संकट जितनी तेजी से नहीं फैले थे. साल 1930 की महामंदी दो से पांच साल तक चली थी और अस्सी के दशक की मंदी भी एक से दो साल चली थी. कोविड-19 की महामारी ने उतना ही या उससे भी ज्यादा नुकसान दो महीनों के भीतर कर दिखाया है. तेल के दामों में आयी नाटकीय गिरावट इस महामारी से दुनिया की आर्थिक सेहत को लगे आघात को रेखांकित करती है. तेल व्यापारियों जैसी ही दशा नीदरलैंड्स के फूल उत्पादकों की भी हुई है. राजधानी एम्सटरडैम के दक्षिण में बसे ऑल्समीयर शहर में दुनिया की सबसे बड़ी फूल मंडी है, जहां मार्च और अप्रैल के महीनों में वर्ष का सबसे भारी कारोबार होता है. इस साल वहां फूलों को कोई मुफ्त में लेनेवाला भी नहीं है. नीदरलैंड्स के विश्वप्रसिद्ध ट्यूलिप के फूलों समेत तरह-तरह के फूल उगानेवाले किसानों को 1.40 करोड़ ट्यूलिप के फूलों समेत कुल 40 करोड़ फूल फेंकने पड़े हैं. मार्च से मई के सीजन में यहां तीन करोड़ डॉलर रोजाना की दर से करीब 750 करोड़ डॉलर का कारोबार होता है, जिसमें करीब अस्सी प्रतिशत का नुकसान हो चुका है.
ब्रिटेन के करीब पांच लाख कारोबारियों की भी लगभग वही कहानी है, जो ऑल्समीयर के फूल की खेती करनेवाले किसानों की है. कारोबार और पर्यटन रुक जाने की वजह से कारोबार ठप हो चुके हैं. स्पेन और इटली के कारोबारियों की दशा तो और भी खराब है. सरकारें कर्मचारियों के वेतन भरने से लेकर टैक्स और किराये माफ करने और बिना ब्याज के आसान किस्तों पर कर्जे देने जैसी योजनाओं के जरिये कारोबारों को जिंदा रखने की कोशिशें कर रही हैं. लेकिन, पाबंदियां खुलने के बाद लोग कितना बाहर निकलेंगे, कर्मचारी कहां और किस हाल में होंगे, देनदारियों के आगे कितने कारोबारी दिवालिया होने पर मजबूर होंगे, जैसे कई सवाल हैं, जिनका जवाब किसी के पास नहीं है. यूरोप के बड़े व्यावसायिक बैंक यूबीएस का अनुमान है कि लगभग एक लाख करोड़ के कर्जे डूब जानेवाले हैं. इनका असर बैंकों पर होगा, बैंकों का असर व्यापारों पर और व्यापारों का सरकारों और उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर होगा. कोविड-19 की आर्थिक मार सेहत की मार से भी कहीं ज्यादा घातक सिद्ध होनेवाली है.
और हां, अमेरिकी तेल बाजार में तेल के दाम मुफ्त से नीचे चले जाने का मतलब यह नहीं है कि आपके पेट्रोल पंपों पर तेल पानी के भाव बिकने लगेगा. तेल को खरीद कर खुदरा बाजार में बेचनेवाली कंपनियां और उनसे टैक्स वसूल करनेवाली सरकारें तेल के दामों की गिरावट का फायदा आप तक नहीं पहुंचने देंगी. दाम थोड़े-बहुत जरूर गिरेंगे, लेकिन कामकाज शुरू होते ही दाम फिर बढ़ने लगेंगे. कोविड-19 की मार से पर्यावरण और हमारी धरती को थोड़ी राहत की सांस मिली है. लेकिन, यदि तेल के दाम इतने नीचे बने रहे, तो इस राहत को गायब होते वक्त नहीं लगेगा. तेल सस्ता होने की वजह से सौर और पवन ऊर्जा अपेक्षाकृत महंगी लगने लगेगी और लोग एक बार फिर वैकल्पिक ऊर्जा को छोड़कर तेल की तरफ भागने लगेंगे. इसलिए तेल के दामों का गिरना केवल तेल उत्पादकों और आढ़तियों के लिए ही नहीं, हम सब के लिए घाटे का सौदा बन सकता है.(येे लेखक के निजी विचार हैं)