आकार पटेल, लेखक एवं स्तंभकार
aakar.patel@gmail.com
जिन देशों में लोगों ने स्वेच्छा से एहतियात बरता, जैसे सामाजिक दूरी, मास्क पहनने और हाथ को धोते रहने की आदत डाली, वहां नये मामलों में कमी आयी है, अन्य देशों में कमोबेश हालात यही हैं.
सरकार कहती है कि राष्ट्रव्यापी बंदी से हमने 37,000 से लेकर 71,000 लोगों को मौत का शिकार होने से बचा लिया. उसका कहना है कि दो लॉकडाउन को नहीं बढ़ाया गया होता, तो भारत में संक्रमण के मामले 14 से 29 लाख के बीच होते. बीते 24 अप्रैल को स्लाइड में दिखाकर किये गये दावे के लिए सरकार या नीति आयोग के एक सदस्य ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता के तहत माफी मांगी. स्लाइड में कहा गया था कि मई के अंत तक नये मामले शून्य होंगे.
नीति आयोग के सदस्य ने पिछले हफ्ते कहा कि किसी निश्चित तिथि तक संक्रमण के मामले शून्य पर पहुंच जायेंगे, ऐसा किसी ने नहीं कहा. गलतफहमी हुई है, जिसे सुधारने की जरूरत है. उन्होंने कहा गलतफहमी के लिए हमें खेद है और मैं माफी मांगता हूं.
कोविड प्रेसवार्ता के दौरान जारी तथ्यों से स्पष्ट है कि सरकार फिलहाल दो बातों पर फोकस कर रही है, पहला कि रिकवरी दर बढ़ रही है और दूसरा कि प्रधानमंत्री की लॉकडाउन रणनीति नहीं होने पर देश बड़े संकट में फंस सकता था. सरकार शायद नये मामलों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रही है, जैसा कि स्लाइड में दिखाया गया था कि लॉकडाउन संक्रमण को खत्म कर देगा या संक्रमण फैलाव को काफी कम कर देगा.
रिकवरी (सुधार) दर से तात्पर्य है कि जो लोग जांच में पॉजिटिव पाये गये थे, वे एक अवधि के बाद दोबारा निगेटिव पाये गये. पिछले हफ्ते शनिवार की सुबह तक करीब 1.25 लाख लोग संक्रमित हो चुके थे और उनमें से 52,000 लोग रिकवर हो चुके हैं. दुनियाभर में अब तक संक्रमित 53 लाख लोगों में से 21 लाख रिकवर हो चुके हैं. प्राकृतिक तरीके से रिकवर होनेवालों का प्रतिशत करीब 95 प्रतिशत है. क्यों? क्योंकि कोविड से मृत्युदर का आंकड़ा वर्तमान में छह प्रतिशत से करीब है. इसमें से ज्यादातर लोग अधिक उम्र के हैं और बीमार हैं. अमेरिका और यूरोप में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है. भारत में मृत्युदर करीब तीन प्रतिशत है. अगर सरकार अपने स्तर पर कुछ भी नहीं करती है, तो भी हमारी रिकवरी दर लगभग 97 प्रतिशत तक पहुंच सकती है. कोविड-19 का कोई इलाज मौजूद नहीं है.
संक्रमित होने पर इसके स्वतः खत्म होने तक इंतजार करना होगा. इसका मतलब यह नहीं कि आप कोविड संक्रमण से मुक्त हो गये, क्योंकि बड़े स्तर पर दोबारा संक्रमण के मामले भी दर्ज हो रहे हैं. ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार ठोस आश्वासन के बजाय रिकवरी दर के बारे में क्यों बता रही है. मई की शुरुआत में रोजाना 2000 लोग संक्रमित हो रहे थे. पिछले हफ्ते तक यह दर 4000 थी, अब रोजाना संक्रमण के मामले 6000 से अधिक हैं. केरल को छोड़कर कहीं भी गिरावट के संकेत नहीं हैं. लॉकडाउन खुलने के बाद यह संख्या तेजी से बढ़ सकती है. जिन देशों में लोगों ने स्वेच्छा से एहतियात बरता, जैसे सामाजिक दूरी, मास्क पहनने और हाथ को धोते रहने की आदत डाली, वहां नये मामलों में कमी आयी है, अन्य देशों में कमोबेश हालात यही हैं. अभी 11 देशों में एक लाख से अधिक संक्रमण के मामले हैं. इनमें ब्राजील, भारत और पेरू में बढ़ते मामलों की रफ्तार बनी हुई है. पिछले 50 दिनों से अमेरिका में रोजाना 20,000 से 35,000 मामले सामने आ रहे हैं. लेकिन, अमेरिका 1.4 करोड़ टेस्ट कर चुका है, यानी प्रति 10 लाख पर 42,000 लोगों की जांच हो चुकी है. वहीं भारत में प्रति 10 लाख पर मात्र 2000 लोगों की ही जांच हो पायी है.
टेस्टिंग में पीछे होने का मतलब कहीं यह तो नहीं कि लोगों को खुद के संक्रमण के बारे में पता ही न हो? एक तरीका मृत्युदर के आंकड़ों से देखा जा सकता है. गुजरात में संक्रमण के 13,000 और मौत के 800 मामले हैं. मौतों की संख्या राष्ट्रीय औसत से दोगुनी है. इससे तय है कि गुजरात में कम-से-कम अतिरिक्त 13,000 संक्रमित हैं, जिनका टेस्ट नहीं हुआ है या उन्हें अपने संक्रमण के बारे में पता नहीं है. ये सभी लोग अब अपने काम पर लौट चुके हैं. जो प्रवासी अपने घरों का रुख कर चुके हैं, वे सभी रोजाना के संक्रमण दर को तेजी से बढ़ायेंगे. रोजाना के नये मामलों के आधार पर महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाला जा सकता है, न िक काल्पनिक आंकड़ों के आधार पर कि हम कितने लोगों की जान बचा चुके हैं. रिकवरी दर के आधार पर भी नहीं, जोकि स्वतः ही बढ़ रही है.
हम कितने जल्दी रोजाना के संक्रमण में गिरावट देखेंगे? यह केवल केरल ही जानता है. यह उन राज्यों में से था, जहां मार्च में अधिक मामले दर्ज किये गये थे, लेकिन आज यह संख्या घटकर 17 पर आ गयी है. इस सफलता को दुनियाभर में सराहा गया. यह एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां नये मामले नहीं बढ़ रहे हैं. कितने लोग जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं, जो महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली नहीं कर पा रहे हैं? अगर लोग इसका जवाब नहीं जानते हैं, तो यह इसलिए कि केंद्र सरकार ने इस सफलता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. यह राज्य कोविड महामारी का आकलन करने में यह एक मात्र सार्थक उदाहरण है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)