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क्रिकेट के शो मैन थे शेन वार्न

ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में लेग स्पिन की विधा का पहले से ही जोर रहा है, पर उन्होंने गेंदबाजी के इस रूप को बहुत बड़े मुकाम पर पहुंचाया.

क्रिकेट की दुनिया में शेन वार्न एक ‘शो मैन’ के रूप में प्रतिष्ठित हैं और उन्हें इसी रूप में हमेशा याद किया जाता रहेगा. कोई भी खेल हो, उसमें प्रतिभाएं हमेशा रहती हैं और अपना कमाल दिखाती हैं, पर ‘शो मैन’ वह व्यक्तित्व होता है, जो खेल को ही परिभाषित करता है. जिसे खेल में रुचि न भी हो, उसे भी ऐसे लोग खेल की ओर आकर्षित करते हैं. शेन वार्न ने लेग स्पिन की लगभग लुप्त होती विधा को कला बना दिया था.

उनसे पहले क्रिकेट में शो मैन का दर्जा विवियन रिचर्ड्स का हुआ करता था. शेन वार्न ऑस्ट्रेलिया के एक सामान्य परिवार से आते थे और उन्होंने लंबा संघर्ष देखा था. इसका असर उनकी समूची प्रवृत्ति में देखा जा सकता था. हम जानते हैं कि जब कोई कमजोर पृष्ठभूमि का व्यक्ति जीवन में बहुत ऊंचाई पर जाता है, तो उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता.

क्रिकेट की दुनिया में स्टीव वॉ को बहुत उल्लेखनीय कप्तान माना जाता है, पर यह बात कम लोग जानते हैं कि उनसे शेन वार्न के गहरे मतभेद थे. वार्न उन्हें या एडम गिलक्रिस्ट को एक साधारण प्रतिभा के खिलाड़ी ही मानते थे. कोच को लेकर उनका यह बयान खूब चर्चा में आया था कि खेल में कोच की क्या जरूरत है, खिलाड़ी तो अपनी प्रतिभा और अनुभव से खेलता है.

जब आइपीएल टूर्नामेंट का दौर आया और शेन वार्न राजस्थान रॉयल्स के कप्तान बने, तो उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता से बहुत पीछे मानी जा रही इस टीम को चैंपियन बना दिया था. उस टीम को करीब से जानने के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि उसके खिलाड़ियों की प्रतिभा को बढ़ाने में वार्न की कप्तानी की बड़ी भूमिका थी और उस टीम के अनेक खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में चमके.

यह भी उल्लेखनीय है कि उस समय शेन वार्न का करियर ढलान पर था. उन्होंने खिलाड़ियों की क्षमता को पहचाना और उनमें भरोसा पैदा किया. ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के कई दिग्गजों का तब यह मानना था कि अगर शेन वार्न को टीम की कमान दी जाती और वे टीम के साथ कुछ साल और रहते, तो ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट का मुकाम कुछ और आगे होता.

हमें याद करना चाहिए कि शेन वार्न जिस पीढ़ी में ‘शो मैन’ थे, उस पीढ़ी में हालिया क्रिकेट के कुछ बड़े धुरंधर खिलाड़ी मैदान पर होते थे. उनमें सचिन तेंदुलकर, एडम गिलक्रिस्ट, ब्रायन लारा, इंजमामुल हक जैसे खिलाड़ी शामिल हैं. ऐसे सितारों के बीच वार्न की चमक अलग रही क्योंकि उनमें एक रॉ जीनियस था, जो लोगों के मन में खास छाप छोड़ता था. उनके समकालीन दिग्गज खिलाड़ी भी उन्हें उस दर्जे पर रखते हैं.

ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में लेग स्पिन की विधा का पहले से ही जोर रहा है, पर इस बात से बहुत से लोग सहमत होंगे कि उन्होंने गेंदबाजी के इस रूप को बहुत बड़े मुकाम पर पहुंचाया. वार्न बल्लेबाज की मनोदशा से खेलते थे. उन्होंने जिस गेंद पर 1993 में इंग्लैंड के बल्लेबाज माइक गेटिंग को आउट किया था और जिसे ‘बॉल ऑफ द सेंचुरी’ की संज्ञा दी गयी है, वैसी गेंद और गेंदबाजों ने भी फेंकी है.

इंग्लैंड के बल्लेबाजों में बाद में यह बात बैठ गयी थी कि वार्न फिर से वही या वैसी ही गेंद फेकेंगे. ऐसे में उन्हें कई बार फुलटॉस गेंद पर भी विकेट मिल जाता था. शेन वार्न के समकक्ष दो ऐसे खिलाड़ी आये, जिन्होंने स्पिन गेंदबाजी को फिर से स्थापित करने में योगदान दिया. उनके अलावा भारत के अनिल कुंबले और श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन को इस श्रेणी में रखा जा सकता है.

इनमें सबसे अधिक विकेट मुरलीधरन के हिस्से में आये थे. निरंतरता और प्रतिरोध में अनिल कुंबले इनमें सबसे आगे रहे थे. पर वार्न को सबसे अधिक विकेट ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के पिचों पर मिले, जो स्पिनरों के लिए बहुत अनुकूल नहीं मानी जाती हैं. इसके बरक्स कुंबले और मुरलीधरन को अधिक विकटें भारत और श्रीलंका में मिली थीं.

यह सभी मानते हैं कि शेन वार्न में विविधता और प्रतिभा सबसे अधिक थी, पर उनकी एक कमजोरी को भी रेखांकित किया जाना चाहिए. स्टीव वॉ की कप्तानी में उस दौर में ऑस्ट्रेलिया ‘फाइनल फ्रंटियर’ (अंतिम मोर्चे) को नहीं जीत सका था, यानी वह भारत में उस तरह कामयाब नहीं हुआ, जैसा अन्य देशों में हुआ. इसी तरह शेन वार्न को भारतीय विकेट पर हमेशा मुश्किल रही.

इसकी एक वजह यह बतायी जाती है कि भारतीय खिलाड़ी अपनी पिचों पर अच्छा खेलते हैं. उस समय स्पिन गेंदबाजी को बहुत अच्छी तरह खेलनेवाले नवजोत सिंह सिद्धू और सचिन तेंदुलकर जैसे बड़े खिलाड़ी थे. इस पहलू को अगर हम छोड़ दें, तो शेन वार्न हर विकेट पर बादशाह साबित हुए और उन्होंने स्पिन गेंदबाजी को वह तेवर दिया कि उसे तेज गेंदबाजी के साथ देखा जाने लगा.

मेरा मानना है कि जैसा व्यक्तित्व फुटबॉल की दुनिया में डिएगो माराडोना का रहा है, क्रिकेट में वह जगह शेन वार्न की है. उनके असमय निधन से क्रिकेट के लिए एक प्रेरणास्रोत का अवसान हो गया. उनकी आत्मकथा उनकी बेबाकी और साफगोई का बड़ा प्रमाण है. वैसा शायद ही कोई और खिलाड़ी खुलकर अपने बारे में लिख सकेगा. उनकी विरासत बहुत बड़ी है.

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