किसी अपराधी की पहचान करना और उसे पकड़ना पुलिस के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य होता है. संदिग्धों और दोषियों के बारे में जानकारी जुटाने की प्रक्रिया बहुत पुरानी है तथा ऐसी जानकारियां तत्काल हर जगह उपलब्ध भी नहीं होती हैं. ऐसे में अपराधी एक से अधिक जगहों पर वारदात कर निकल जाने में सफल रहते हैं. इस समस्या के समाधान के लिए सरकार दंड प्रक्रिया शिनाख्त विधेयक लेकर आयी है, जिसे लोकसभा ने पारित भी कर दिया है.
इसमें पुलिस द्वारा दोषियों और आरोपितों की अंगुलियों, हथेलियों और पैरों की छाप लेने, आंखों की पुतली, रेटिना और अन्य बायोमेट्रिक्स व शारीरिक सूचनाएं लेने का अधिकार होगा. इस डाटा को संग्रहित रखा जायेगा. वर्तमान व्यवस्था में केवल अंगुलियों और पैरों के निशान लिये जाते हैं. जैसा कि गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि पुराने समय के तौर-तरीकों से आधुनिक ढंग से किये जा रहे अपराधों की रोकथाम नहीं की जा सकती है, इसलिए नयी तकनीक का इस्तेमाल किया जाना जरूरी है.
लोकसभा में चर्चा के दौरान भी यह उल्लेख आया कि लगभग 70 देशों में ऐसी व्यवस्था है. निश्चित रूप से किसी भी इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल डाटा की सुरक्षा और उचित उपयोग से जुड़ी चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. इस संबंध में गृहमंत्री ने सदन को आश्वासन दिया है. इसके साथ ही यह प्रावधान भी है कि महिलाओं एवं बच्चों के विरुद्ध हुए अपराधों तथा सात साल से कम की सजा पाने वाले दोषियों से ऐसे डाटा नहीं लिये जायेंगे.
पुलिस और न्यायिक व्यवस्था को तकनीकी सुविधाओं से लैस करने के लिए सरकार कई स्तरों पर सक्रिय है. इंटरनेट के माध्यम से शिकायत दर्ज कराने, सुराग देने आदि से लेकर शिकायत की स्थिति जानने, थानों को परस्पर जोड़ने तथा अन्य एजेंसियों से पुलिस के सहयोग को बेहतर करने के लिए कोशिशें हो रही हैं. कई थानों में कैमरे भी लगाये गये हैं. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि शिनाख्त विधेयक को भी इन्हीं प्रयासों की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए.
इस विधेयक को पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने की कोशिश माना जाना चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अपराधी की निजता का हनन या डाटा के आधार पर उसे परेशान करने जैसी चिंताएं गंभीर हैं और इनका ध्यान रखा जाना चाहिए, पर इसके साथ ही हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुलिस और अदालत की यह प्राथमिक जिम्मेदारी है कि पीड़ित को न्याय मिले और ऐसा जल्दी हो.
कानून से जुड़ी एक मशहूर कहावत है कि न्याय में देरी न्याय नहीं है. आज हमारी अदालतों में बड़ी संख्या में मुकदमे लंबित हैं. थानों में ढेरों शिकायतें ऐसे ही पड़ी हुई हैं. अपराध की तुलना में सजा का अनुपात निराशाजनक है. अधिकतर आरोपित ठोस सबूतों के बिना छूट जाते हैं और उनमें से कई फिर अपराध करते हैं. शिनाख्त विधेयक ऐसी समस्याओं के समाधान का एक माध्यम बन सकता है.