सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में जहां भी दंगे होते हैं, उसकी सबसे बड़ी वजह जातीय और सांप्रदायिक आधार होते हैं. समुदायों, नस्लों और जातियों के बीच की आपसी वैमनस्यता और तनाव के साथ ही, धार्मिक सोच के चलते ज्यादातर दंगे होते हैं. हर दंगों के बहाने आपराधिक तत्व भी अपना आपराधिक उल्लू सीधा करते रहे हैं.
मणिपुर का जातीय संघर्ष हो, या फिर हरियाणा के मेवात में हुआ दंगा, दोनों में जिस तरह विशेष रूप से सरकारी दफ्तरों को निशाना बनाया गया है, उससे साफ है कि इन संघर्षों और दंगों को आपराधिक तत्वों के साथ ही समाज विरोधी तत्वों ने षड्यंत्र की चिंगारी दिखाई और भावनाओं की पुआल एवं पराली के जरिये आग को तेज कर दिया, जिससे मणिपुर और मेवात दोनों झुलस रहे हैं.
मेवात के बारे में कहा जाता है कि वहां पुलिस भी जल्दी कार्रवाई की हिम्मत नहीं करती. दिल्ली से गाड़ियों और जानवरों की चोरी हो, दिल्ली पुलिस भी मानती रही है कि अगर चोरी का माल मेवात पहुंच गया, तो वहां कार्रवाई आसान नहीं होगी. मेवात इन दिनों साइबर ठगी के लिए भी कुख्यात हो चुका है.
इसी वर्ष 29 अप्रैल को पुलिस ने पूरी तैयारी के साथ मेवात के 14 गांवों में एक साथ छापेमारी की थी, जिसमें पांच हजार से अधिक पुलिस वाले लगाये गये थे. रातभर चली औचक छापेमारी में सवा सौ से ज्यादा साइबर अपराधियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. हाल के दिनों में सेक्सटॉर्शन हो या फर्जी फोन कॉल के जरिये लोगों की गाढ़ी कमाई को चूना लगाना, मेवात में बैठकर इसे अंजाम दिया जा रहा है.
पुलिस भी मानती है कि यहां इसके गिरोह चल रहे हैं और इनके जरिये साइबर ठगी और अपराध का संगठित उद्योग फल-फूल रहा है. मेवात से गुजर रही ब्रज यात्रा पर हुए हमले और उसके साथ हुए दंगों के दौरान, यूं तो तमाम संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया, पर जिस एक घटना की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है, वह है इस दंगे के दौरान दंगाइयों द्वारा नूंह के साइबर थाने को जला दिया जाना.
अब मणिपुर की घटनाओं पर नजर डालिए. वहां बलवाइयों, खासकर कुकी उग्रवादियों ने वन विभाग की चौकियों और दफ्तरों को सबसे अधिक निशाना बनाया है. एक अनुमान के अनुसार, मणिपुर में जारी संघर्ष के दौरान राज्य के पांच सौ से ज्यादा वन विभाग की चौकियों और दफ्तरों को जला दिया गया. मणिपुर में वन विभाग के दफ्तरों को जलाना और नष्ट करना हो, या फिर मेवात में साइबर थाने को जलाकर भस्म कर देना, दोनों मामलों की अपनी कहानी है.
मणिपुर में जारी हिंसा की एक बड़ी वजह वहां की मौजूदा सरकार द्वारा अवैध रूप से हो रही अफीम की खेती पर लगाम लगाना भी है. मणिपुर विश्वविद्यालय के कुछ प्रोफेसरों ने भी नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मणिपुर के संघर्ष की एक बड़ी वजह अवैध रूप से हो रही अफीम की खेती पर रोक लगाना है. विशेषकर पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय के लोग इस खेती में शामिल रहे हैं. उनमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी घुसपैठ करने वालों की रही है. मणिपुर की मौजूदा सरकार ने सत्ता संभालते ही ड्रोन कैमरों के जरिये अफीम की खेती के आंकड़े जुटाये. उसके बाद लोगों को इस खेती से रोकने और उसकी जगह ऑर्गेनिक खेती के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिशें हुईं.
अफीम की खेती से कम मेहनत में ज्यादा कमाई होती है. लिहाजा बरसों से इसमें शामिल लोगों को लगा कि अफीम की खेती बंद होने से उनकी कमाई पर असर पड़ रहा है. इससे कुकी समुदाय का वह वर्ग गुस्से से खदबदाता रहा, जिसका अफीम की खेती रोकने से नुकसान हो रहा था. तीन मई को यही गुस्सा बाहर आ गया. बहाना बना जातीय आरक्षण का विरोध. इसका अपराधियों ने खूब लाभ उठाया.
अफीम की खेती करने वालों को पता था कि उनकी अवैध खेती का पूरा रिकॉर्ड वन विभाग के दफ्तरों में है. लिहाजा उन्होंने वन विभाग के दफ्तरों को निशाना बनाया. कुछ इसी तरह मेवात के साइबर अपराधियों को भी जानकारी थी कि उनके साइबर अपराध के खिलाफ पुलिस कार्रवाई और दूसरे रिकॉर्ड साइबर थाने में ही हैं. इसलिए उन्होंने ब्रज यात्रा के दौरान हुए दंगे के समय साइबर थाने पर हमला कर उसे जला दिया. साइबर अपराधियों को उम्मीद रही होगी कि अगर उन्होंने साइबर थाने को जला दिया, तो उन्हें लेकर जितना भी रिकॉर्ड रहा हो, वह खत्म हो जायेगा और वे बरी हो जायेंगे.
मेवात हिंसा की जांच जारी है. जांच के बाद पता चलेगा कि आखिर इसमें किसकी कमी रही, और कौन-कौन षड्यंत्र में शामिल रहा है. लेकिन जिस तरह दंगे भड़काये गये, वे अतीत के दंगों की तरह ही रहे. जैसा नागरिकता संशोधन कानून में बदलाव के बाद हुआ. उस समय मुस्लिम समुदाय को भड़काया गया और वह सड़कों पर उतर आया.
दिल्ली के दंगों की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, तो पता चला कि किस तरह देश विरोधी ताकतों ने मुस्लिम समुदाय के गुमराह तबकों को अपने नापाक लक्ष्य को हासिल करने का जरिया बनाया. मेवात के दंगों में भी कुछ ऐसा ही हुआ है, ऐसा अंदेशा जताया जा रहा है. चाहे मणिपुर का मामला हो या मेवात का, या हाल के दिनों में हुए दंगे हों, हर दंगे को बाकायदा तैयारी के साथ, षड्यंत्र के साथ अंजाम दिया गया.
उसमें अपराधियों और सामुदायिक भावनाओं का कॉकटेल बनाया गया. भावनाएं उभार कर समुदायों को बताने की कोशिश हुई कि उन पर खतरा है, दूसरे समुदाय को सबक सिखाये बिना उनका अस्तित्व नहीं बच सकता. अपराधियों को उकसाया गया कि यही मौका है प्रशासन से अपना बदला चुकाने का और फिर संघर्षों को अंजाम दिया गया.
वैसे तो जांच एजेंसियां हर पहलू पर ध्यान देंगी, जिसमें आपराधिक कोण भी हावी रहेगा. परंतु यह तय है कि इस तरफ आम लोगों का ध्यान कम ही जाता है. लोग चाहे किसी भी पक्ष के हों, उन्हें अगर यह पता चलेगा कि अपराधियों ने उनके जज्बात की आड़ में कदम उठाया है, तो वे शायद ही इसे माफ कर पायेंगे.
कोई भी समाज बृहत्तर रूप से सामाजिक अपराधियों के काम को स्वीकार नहीं कर पाता. दंगों के पीछे के अपराधियों का इसीलिए बेनकाब होना जरूरी है. चाहे मणिपुर के वन विभाग के दफ्तरों और चौकियों को नष्ट करना हो, या फिर मेवात के साइबर थाने को जलाना, जज्बाती खेल नहीं, सोची-समझी आपराधिक साजिश है. यह तथ्य और उसका मोटिव दुनिया के सामने आना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)