नीट मामले के दोषियों को कड़ी सजा मिले
नीट परीक्षा में हुई धांधली पर समय से कार्रवाई नहीं हुई, या इस पर व्यापम की तरह लंबी खिचड़ी पकी, तो युवाओं का संवैधानिक संस्थाओं पर भरोसा और डगमगा सकता है.
नीट परीक्षा में धांधली पर कई चरणों में नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) के खुलासों से साफ है कि दाल में बहुत कुछ काला है. बिहार और गुजरात पुलिस की जांच से अगर पेपर लीक भी साबित हो जाए, तो फिर पूरी दाल ही काली हो सकती है. पेपर लीक के बारे में एनटीए ने इनकार किया है. लेकिन नकल और इंपर्सोनेशन, यानी किसी दूसरे ने परीक्षा दिया है, के आरोप सही साबित हो रहे हैं. नीट ने अब मान लिया है कि अनुचित साधनों का इस्तेमाल करने के 63 मामले सामने आये हैं. इनमें से 23 को अलग-अलग अवधि के लिए परीक्षा से वंचित कर दिया गया है और शेष उम्मीदवारों के नतीजे रोक दिये गये हैं. केंद्र सरकार के प्रस्ताव के अनुसार ग्रेस मार्क को खत्म कर 1,563 छात्रों की दोबारा परीक्षा करवाने पर सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है. उनका रिजल्ट 30 जून के पहले आने से काउंसिलिंग में ज्यादा विलंब नहीं होगा.
बड़े विरोध और सोशल मीडिया में बढ़ रहे दबाव के बाद केंद्र सरकार ने आंशिक कार्रवाई की है. पूरे मामले में कई तरह की विसंगतियां, विरोधाभास और आपराधिकता के पहलुओं पर जांच और कार्रवाई का मुद्दा अभी बरकरार है. परीक्षा में आवेदन करने की तारीख में बेवजह बढ़ोतरी और दो हफ्ते पहले ही रिजल्ट घोषित करने से पैदा हुए संदेह का निराकरण भी जरूरी है. परीक्षाओं और नौकरियों में बढ़ रही धांधली का नेताओं और राजनीति से चोली-दामन का साथ है. लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में हाईकोर्ट ने हजारों शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी, जिस पर बाद में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगायी. इसलिए चुनाव परिणाम वाले दिन एडवांस तरीके से रिजल्ट घोषित करने पर हो रही आलोचना पर सरकार की ओर से साफगोई जरूरी है. राज्यों में पुलिस की जांच, निष्क्रिय केंद्र सरकार, एनटीए की संदिग्ध जांच समिति, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जलेबी की तरह जटिल होते मामले से छात्रों और उनके परिजनों में गुस्सा और निराशा बढ़ रही है. लोकसभा चुनाव में एक-तिहाई वोटरों ने वोट नहीं डाला, क्योंकि युवाओं में सिस्टम के प्रति निराशा थी.
सुप्रीम कोर्ट में नीट से जुड़े मामले में मई में ही त्वरित सुनवाई होती, तो शायद इतना बवाल नहीं होता. अगर नीट की पवित्रता प्रभावित हुई है, तो समय पर न्याय देकर जजों को संविधान की शपथ पूरी करनी ही चाहिए. मेडिकल, इंजीनियरिंग, फार्मेसी और यूनिवर्सिटी-कॉलेजों में प्रवेश के लिए परीक्षा आयोजित करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को सोशल मीडिया में नेशनल ठगी एजेंसी नाम से शर्मसार किया जा रहा है.
चुनावों में रोजगार और शिक्षा के मुद्दे सबसे अहम थे. नीट परीक्षा में हुई धांधली पर समय से कार्रवाई नहीं हुई, या इस पर व्यापम की तरह लंबी खिचड़ी पकी, तो युवाओं का संवैधानिक संस्थाओं पर भरोसा और डगमगा सकता है. जिन सेंटरों में नकल, फर्जीवाड़ा और गलत तरीके से ग्रेस मार्क देने के आरोप हैं, ऐसे सभी संदिग्ध छात्रों, उनके अभिभावकों, कोचिंग संस्थानों और परीक्षा केंद्र के इंचार्ज लोगों का लाइव नार्को टेस्ट होना चाहिए. इससे मेरिट वाले छात्रों का सिस्टम में भरोसा बढ़ने के साथ भविष्य में धांधली करने वालों के मंसूबे ध्वस्त होंगे. पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से ठोस कार्रवाई कर नयी सरकार को जनता का दिल जीतने की कोशिश करनी चाहिए. अन्यथा तमिलनाडु सरकार की यह बात सही साबित होगी कि नीट की परीक्षा प्रणाली गरीब और ग्रामीण विरोधी है. तक्षशिला और नालंदा के दिनों से भारत में विद्यार्थियों का बौद्धिक स्तर और उनकी शैक्षणिक गुणवत्ता उच्च कोटि की रही है. विकसित भारत के लिए हम जनसांख्यिकीय लाभांश की बात करते हैं, पर लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के कारण योग्य बच्चे अमेरिका, यूरोप, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जाकर पैसा और नाम कमाने में ज्यादा इच्छुक हैं.
उदारीकरण के बाद शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर मुनाफे की संस्कृति बढ़ी. मेडिकल की पढ़ाई सबसे ज्यादा खर्चीली है. नीट परीक्षा पास कराने के नाम पर कोचिंग और सॉल्वर गैंग का बढ़ता जाल देश का बड़ा कैंसर हैं. महामारियों और बीमारियों से निपटने के लिए हमें योग्य, मानवीय और बेहतरीन डॉक्टर चाहिए. संसद में एक-तिहाई सांसद आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं, जिससे लोकतंत्र और संविधान दोनों खतरे में है. इस तरह अगर कोचिंग माफिया के भ्रष्ट सहयोग से गलत लोग मेडिकल प्रोफेशन में आ गये, तो भयावह स्थिति पैदा हो जायेगी. राजनीतिक हस्तक्षेप, कोचिंग माफिया, धन-बल के बढ़ते प्रभाव से धांधली के चलते शिक्षा के साथ नौकरियों की गुणवत्ता गिरने से शैक्षणिक अराजकता बढ़ रही है. कोचिंग माफिया और सॉल्वर गैंग की भ्रष्ट मिलीभगत से अयोग्य और धनपशुओं के मेडिकल प्रोफेशन में आने से पूरी सामाजिक व्यवस्था का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है. व्यापम घोटाले से साफ है कि पुलिस और सीबीआइ की लंबी जांच के बाद पीड़ित लोगों का भविष्य अंधेरी सुरंग के हवाले हो जाता है. जनहित याचिका के नाम पर पब्लिसिटी का कारोबार बढ़ने के बावजूद पीड़ितों को न्याय नहीं मिलना बेहद चिंताजनक है. वर्ष 2022 की नीट परीक्षा से जुड़े लंबित मामले को अर्थहीन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के जजों ने याचिका को निरस्त कर दिया है. यह मामला व्यापम की तरह न भटक जाए, इसके लिए हाईकोर्ट में चल रहे सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट को अपने पास हस्तांतरित कराना चाहिए. अपराध और धांधली के सभी पहलू अदालत के सामने आ सकें, इसके लिए एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र वकील) नियुक्त करने की जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट में नीट से जुड़े मामले में मई में ही त्वरित सुनवाई होती, तो शायद इतना बवाल नहीं होता. अगर नीट की पवित्रता प्रभावित हुई है, तो समय पर न्याय देकर जजों को संविधान की शपथ पूरी करनी ही चाहिए. मेडिकल, इंजीनियरिंग, फार्मेसी और यूनिवर्सिटी-कॉलेजों में प्रवेश के लिए परीक्षा आयोजित करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को सोशल मीडिया में नेशनल ठगी एजेंसी नाम से शर्मसार किया जा रहा है. डॉक्टरी की प्रवेश परीक्षा नीट में अनेक तरह की धांधली, मक्कारी और पेपर लीक से लाखों परिवारों का सपना टूटने के साथ बच्चे मनोरोग और बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. मेडिकल वाली नीट में ऑफलाइन परीक्षा और इंजीनियरिंग की जेईई में ऑनलाइन परीक्षा के दोहरे रवैये से भी समाज में बेचैनी है. प्रतिभा को बढ़ावा देने के नाम पर बनाये गये एनटीए की परीक्षा प्रणाली में व्यक्तिगत मेरिट को आंकने की सही प्रणाली नहीं बनने से कोचिंग संस्थानों का धंधा और जोर पकड़ता जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अमेरिका में एक भाषण में कहा था कि सभी मामलों को अदालतों में ठेलना अच्छी बात नहीं है. परीक्षाओं में धांधली और कोचिंग के गोरखधंधे को रोकने के लिए नीट विवाद से जुड़े सभी दोषियों को जल्दी कठोर दंड मिलना चाहिए. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)