भारत की विश्व दृष्टि हमेशा से अलग रही है. शुरू से हम वसुधैव कुटुंबकम की बात करते रहे हैं. विश्व एक परिवार है. हमारे सुख-दुख एक जैसे हैं, लेकिन दुनिया ने इसको नहीं समझा. पश्चिम ने इस जगत को तीन खंडों में बांट दिया- प्रथम विश्व, द्वितीय विश्व और तीसरी दुनिया. सभी लोग उसी नजर से दुनिया का विश्लेषण करते रहे. पर पिछले कुछ वर्षों से हमने अपनी पहचान को दुनिया के सामने रखना शुरू किया है.
भारतीय दृष्टि की चर्चा होने लगी है. शायद जी-20 बैठक और भारत का नेतृत्व उसकी महत्वपूर्ण पहचान बनाने जा रही है. भारतीय पहचान में तीन अहम तत्व हैं- युद्ध से अलग हटकर विश्व व्यवस्था की सोच विकसित करना, हर देश की अपनी पहचान है, इसके बावजूद उनमें समरूपता है तथा हमारी चुनौतियां एक जैसी हैं और उनका हल भी एक तरह का है. इसीलिए जी-20 का परिचय चिन्ह भी उसी तर्ज पर बनाया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17वें जी-20 शिखर बैठक में हिस्सा लेने के लिए इंडोनेशिया में हैं. इस बैठक में यूक्रेन संकट के बाद तीन आयाम तय किये गये हैं- खाद्य व ऊर्जा संकट, स्वास्थ्य क्षेत्र और डिजिटल बदलाव. अमेरिका व पश्चिमी देशों की तरफ से यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस को घेरने की पूरी कोशिश हो रही है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की जगह उनके विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव आये हैं तथा अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन के नये प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैकरां, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज समेत कई वैश्विक नेता बाली पहुंचे हैं.
भारत एक दिसंबर को मौजूदा अध्यक्ष इंडोनेशिया से इस शक्तिशाली समूह की अध्यक्षता ग्रहण करेगा. कई बार भारत ने विश्व राजनीति को अपने सांस्कृतिक आयाम से एक बेहतर स्वरूप देने की पहल की है, जिसमें योग को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित करना उल्लेखनीय है. लेकिन जी-20 का नेतृत्व भारत के लिए सबसे रोचक पल है. यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का संगठन है. इसकी स्थापना 1999 में हुई थी. यह समूह वैश्विक सकल उत्पादन के 80 प्रतिशत, दुनिया की दो-तिहाई आबादी और करीब 50 प्रतिशत क्षेत्रफल का प्रतिनिधित्व करता है.
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. विविधता, सौहार्द और सह-अस्तित्व की हमारी समृद्ध विरासत रही है. इन्हीं भावनाओं के अनुरूप भारत ने अपनी अध्यक्षता की थीम ‘वसुधैव कुटुंबकम’ रखी है. इसका आशय संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानने से है. जी-20 के लोगो में भारत के राष्ट्रीय पुष्प कमल को भी जगह दी गयी है, जो कठिन समय में वृद्धि और लचीलेपन का प्रतीक है.
लोगो में ग्लोब पृथ्वी का प्रतीक है, जो भारत के पृथ्वी-हितैषी दृष्टिकोण का द्योतक है. लोगो और थीम मिलकर जी-20 में भारत के नेतृत्व के मर्म को प्रदर्शित करते हैं कि वह निर्विवाद रूप से एकजुट करने वाला शांतिदूत है. भारत शुरू से बहुपक्षीय विश्व की बात करता रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर एक विकसित देश की रूपरेखा रखी और यह उम्मीद जतायी कि 2047 तक भारत एक विकसित देश के रूप में स्थापित होगा.
यह चुनौतीपूर्ण है. उन्होंने इस मुकाम पर पहुंचने के लिए उन्होंने पांच महत्वपूर्ण शर्तों की भी बात कही. सबसे अहम सवाल विकास का है. भारत के पड़ोसी देश सहित दुनिया के कई देश आर्थिक संकट के दौर में है. आर्थिक विशेषज्ञ भारत की भी चिंता कर रहे थे, लेकिन भारत मजबूती के साथ संकटों के बीच से निकलता गया. आर्थिक वृद्धि की गति भी बढ़ती गयी है. लेकिन यह महज शुरूआत है. मंजिल बहुत दूर है. महामारी के बीच प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का सिद्धांत दिया. ग्रीन एनर्जी हो या हथियारों की खरीद-फरोख्त, हर मुकाम पर भारत अपनी पहचान को स्थापित कर रहा है.
अगर भारतीय पहल को अमली जामा पहनाने की कोशिश की जाए, तो भारतीय सोच का पक्ष दुनिया को दिखेगा. भारत बहुध्रुवीय व्यवस्था का हिमायती रहा है. किसी एक देश की हुकूमत और मत का वर्चस्व नुकसानदेह ही रहा है. बीसवीं शताब्दी तक चीन भी भारत की तरह बहुमुखी व्यवस्था की बात करता था, लेकिन कुछ समय से वह अपना राग अलापने में मशगूल है. दिखने लगा.
शायद उसे लगने लगा कि विश्व मंच का वह मठाधीश बनने वाला है. पर महामारी के बाद चीन का यह तेवर निर्णय अधर में फंसता हुआ दिख रहा है. उसकी आर्थिक रफ्तार कम होने लगी है, आबादी बुजुर्ग होती जा रही है, पर दूसरी ओर भारत की आर्थिक धार तेज भी है और सम्यक भी है. मिडिल पॉवर की एक नयी वैश्विक टीम तैयार हो चुकी है, जो जी-20 के सदस्य देश हैं.
अमेरिका भी भारत की सोच से सहमत है अर्थात आने वाला समय बहुध्रुवीय होगी, जिसमें निर्णायक की भूमिका में भारत की हिस्सेदारी किसी भी देश से ज्यादा होगी. संभव है कि जी-20 सम्मेलन में शांति पथ का अनुसरण सफल नहीं हो पाये और युद्ध चलता रहे, लेकिन भारत की दृष्टि दुनिया को जरूर प्रभावित करेगी. यहीं से विश्व व्यवस्था का नया ढांचा बनना शुरू होगा, जिसमें विभाजन नहीं, एकरूपता होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)