भारत ने बीते दिनों इस संबंध में एक अहम अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी भी की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आयोजन में कहा कि आतंक अच्छा या बुरा में नहीं बांटा जाना चाहिए. यह मानवता, स्वतंत्रता और सभ्यता पर हमला है. इसे साझा कठोर रवैये से ही रोका जा सकता है. उन्होंने आतंक को प्रश्रय और सहयोग देने वाले देशों को कटघरे में खड़ा करने की जरूरत पर जोर देते हुए आतंकियों को मिलने वाले धन के स्रोतों को रोकने की मांग की है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उचित ही रेखांकित किया है कि आतंक से भी कहीं अधिक खतरनाक उसे धन उपलब्ध कराना है. भारत उन कुछ देशों में है, जो दशकों से आतंकी हिंसा का सामना कर रहे हैं. यह जगजाहिर तथ्य है कि हमारे देश को अस्थिर करने तथा आतंकियों द्वारा भारतीय नागरिकों को निशाना बनाने की साजिशें पाकिस्तान में रची जाती रही हैं. यह भी स्थापित तथ्य है कि पड़ोसी देशों में आतंकवाद को बढ़ावा देना पाकिस्तानी विदेश नीति और रक्षा नीति का अभिन्न हिस्सा है.
पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की नापाक हरकतों को चीन का समर्थन भी मिल रहा है. आतंकियों को धन देने के मामले को लेकर इस संबंध में बनी अंतरराष्ट्रीय संस्था ने पाकिस्तान पर कार्रवाई भी की है. लेकिन कुछ ताकतवर देश, जिनमें अमेरिका और पश्चिमी देश भी शामिल हैं, अपने भू-राजनीतिक स्वार्थों को साधने के लिए पाकिस्तान के साथ नरमी से पेश आते रहे हैं. हाल में आतंकियों को धन देने के मामले में लगे आरोपों पर पाकिस्तान की फर्जी सफाई को स्वीकार करते हुए उसे निगरानी सूची से निकाल दिया गया है.
इतना ही नहीं, पाकिस्तान को अमेरिका से सैन्य सहायता के नाम पर खरबों रुपये की वित्तीय सहायता भी दी गयी है, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तानी सेना और उसकी कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई अपनी हरकतों के लिए करेंगे. चीन और अमेरिका के बीच चल रही रस्साकशी भारत ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिणी एशिया की शांति को प्रभावित कर सकती है. उम्मीद है कि हालिया सम्मेलन की चर्चाओं तथा भारत के प्रस्तावों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय गंभीरता से विचार करेगा.