दलाई लामा को मिले भारत रत्न
दलाई लामा ने अपने अहिंसा और प्रत्येक नागरिक की सार्वभौमिक जिम्मेदारी के मंत्र के आधार पर तिब्बत के प्रश्न पर दुनियाभर में ऐसा समर्थन हासिल कर लिया है, जो महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन का एक नायाब नमूना बनकर उभरा है.
कुछ समय से भारतीय समाज के कई क्षेत्रों से यह मांग जोर पकड़ रही है कि दलाई लामा को भारत रत्न से सम्मानित किया जाए. हाल में बीजू जनता दल के सांसद और भारतीय संसद में तिब्बत समर्थक सांसदों के संगठन के संयोजक सुजीत कुमार ने कहा कि दलाई लामा एक जीवंत प्रतीक हैं मानवीय प्रेम, करुणा और अहिंसा के, जो भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं.
दलाई लामा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि और उसकी सॉफ्ट-पावर की वृद्धि में बड़ा योगदान दिया है. उन्होंने भारत सरकार से दलाई लामा को भारत-रत्न से सम्मानित करने की अपील की है. कुछ दिन पहले हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने भी ऐसा ही आग्रह किया था.
ऐसी मांग करने वालों की एक साझा दलील यह है कि यदि भारत सरकार विदेशी मूल के नेल्सन मंडेला, खान अब्दुल गफ्फार खां और मदर टेरेसा जैसे महान व्यक्तित्वों को भारत रत्न देने का फैसला कर सकती है, तो व्यापक वैश्विक लोकप्रियता वाले दलाई लामा जैसे व्यक्ति को भी यह सम्मान दिया जाना वाजिब है, जो पिछले 63 साल से भारत में रह रहे हैं.
इस मांग के नये सिरे से उठने पर कुछ लोगों को यह गलतफहमी हो रही है कि शायद इसे भारत और चीन के बीच रिश्तों के खराब होने के नये दौर में चीन के विरुद्ध एक कदम के रूप में उठाया जा रहा है. ऐसा सोचना न तो भारत सरकार की सोच और भारतीय हितों के प्रति न्याय होगा और न ही दलाई लामा के महान व्यक्तित्व के प्रति. दुनिया के एक सम्मानित नागरिक के रूप में गिने जाने के लिए दलाई लामा किसी नये पुरस्कार या सम्मान के मोहताज नहीं हैं.
वे 20वीं और 21वीं सदी में सबसे लंबे समय तक लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर लगातार रहने वाले लोगों में हैं तथा उन्हें 201 से अधिक प्रमुख पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं. इन पुरस्कारों में नोबेल शांति पुरस्कार, मैगसेसे अवॉर्ड, अमेरिका में ‘भारत रत्न’ के रुतबे वाले सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘कांग्रेसनल गोल्ड मेडल’ और दुनिया में सबसे अधिक राशि वाला टैम्पलटन अवॉर्ड भी शामिल हैं. अगर किसी नगर के नागरिक प्रशासन द्वारा किसी बाहरी मेहमान को भेंट की जाने वाली ‘नगर द्वार की चाबी’ जैसे नागरिक सम्मानों की गिनती की जाए, तो शायद इनकी मात्रा दलाई लामा के अपने वजन से भी ज्यादा होगी.
भारत रत्न का पात्र ‘जाति, व्यवसाय, लिंग और ओहदे’ के भेद के बिना कोई भी ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जिसने मानवता के क्षेत्र में अति विशिष्ट योगदान दिया हो. इस सम्मान के लिए स्वयं भारत के प्रधानमंत्री भारत के राष्ट्रपति से इसके पात्र के नाम का अनुमोदन करते हैं.
यदि इस तराजू पर दलाई लामा के योगदान को तौला जाए, तो वह किसी भी मायने में पूर्व के सम्मानित व्यक्तियों से कम नहीं आंके जायेंगे. साल 1959 में भारत में शरण लेने के बाद दलाई लामा ने मात्र एक लाख ऐसे तिब्बती शरणार्थियों के बूते पर भारत को बौद्ध और तिब्बती संस्कृति के सबसे विश्वसनीय केंद्र के रूप में खड़ा कर दिया है, जिनके पास न तो यहां की भाषा का ज्ञान था,
न इस नयी दुनिया के सामाजिक और आर्थिक तौर-तरीकों की जानकारी तथा न ही इतने कठिन मौसम में जी सकने का अनुभव था. यह दलाई लामा के प्रभावशाली व्यक्तित्व, उनकी नेतृत्व क्षमता, अपने लोगों के मन में उनके प्रति आदर और थोड़े से शरणार्थियों की क्षमताओं को रचनात्मक दिशा देने की क्षमता का कमाल ही है कि पिछले 63 साल में उन्होंने तिब्बत को भारत से मिले हुए पुराने और पारंपरिक ज्ञान पर आधारित विश्वविद्यालय स्तर के कई शिक्षा और अध्ययन केंद्र खड़े कर दिये हैं,
जहां दुनियाभर के विद्वान आते हैं. तिब्बती भाषा के ग्रंथों और दूसरे साहित्य का नये सिरे से अनुवाद कर कुछ अध्ययन केंद्रों ने भारतीय संस्कृति के सौ से अधिक ऐसे ग्रंथों को फिर से संस्कृत और हिंदी में जीवित कर दिया है, जिन्हें भारत में खोया हुआ और मृत मान लिया गया था.
सोने पर सुहागा यह है कि दलाई लामा ने अपने अहिंसा और प्रत्येक नागरिक की सार्वभौमिक जिम्मेदारी के मंत्र के आधार पर तिब्बत के प्रश्न पर दुनियाभर में ऐसा समर्थन हासिल कर लिया है, जो महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन का एक नायाब नमूना बन कर उभरा है. उनकी कुछ विदेश यात्राओं में उनके साथ रहने का सौभाग्य मिलने के कारण मैंने स्वयं देखा है कि किसी नगरपालिका के प्रतिनिधियों की छोटी-सी बैठक से लेकर किसी ओलिंपिक स्टेडियम के अंदर और बाहर एक लाख से भी अधिक श्रोताओं के सामने अपने संबोधन में वह भारत के सांस्कृतिक ज्ञान, लोकतंत्र की शक्ति और दुनिया के सबसे ज्यादा धर्मों और भाषाओं के सामंजस्य की प्रशंसा किये बिना अपना व्याख्यान पूरा नहीं करते.
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी कहा था कि भारत के कई गुणों का ज्ञान उन्हें दलाई लामा के साथ बातचीत में मिला. हालांकि भारत रत्न एक गैर राजनीतिक सम्मान है, लेकिन भारत के प्रति चीन के आक्रामक और जहरीले रुख के मौजूदा वातावरण को देखते हुए दलाई लामा को यह सम्मान देने के कई कूटनीति लाभ भी भारत को मिलेंगे.
इससे दुनिया को यह संदेश भी मिलेगा कि जिस कब्जाये हुए तिब्बत को आधार-छावनी की तरह इस्तेमाल कर चीन पूरे दक्षिणी एशिया पर और भारत के इलाकों पर अपना आक्रामक हक जता रहा है, उसका शासक भारत में निर्वासन में रहने पर मजबूर है. इस कदम से चीन को अपने उस छिछोरे अभियान में भी झटका लगेगा, जिसके तहत उसने घोषणा कर दी है कि दलाई लामा के अगले अवतार को खोजने और मान्यता देने का अधिकार तिब्बती जनता, लामाओं और स्वयं दलाई लामा का नहीं, बल्कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का है.
भारत की जनता और सरकार के लिए यह समझना जरूरी है कि अगर चीन अगले दलाई लामा के अवतार पर कब्जा जमाने में कामयाब होता है, तो भारत के 3800 किलोमीटर से ज्यादा लंबे हिमालयवर्ती सीमा क्षेत्र में बसी भारत की जनता पर तिब्बती बौद्ध धर्म और तिब्बती धर्मनेताओं के गहरे प्रभाव के कारण चीनी हस्तक्षेप बहुत गंभीर हो सकता है.
इस चीनी षड्यंत्र की सफलता से लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सुरक्षा गहरे संकट में पड़ जायेगी. इसलिए भारत रत्न देने के साथ-साथ भारत के लिए यह भी जरूरी हो चुका है कि दलाई लामा के अगले अवतार के प्रश्न पर भी वह वर्तमान दलाई लामा के साथ खड़ा हो.