Loading election data...

खतरनाक चीनी खेल

चीनी कंपनी भारत के अलावा अन्य कई देशों में भी डिजिटल निगरानी रख रही है. इस लिहाज से यह एक अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय है.

By संपादकीय | September 16, 2020 5:37 AM

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर देश के प्रमुख राजनेताओं, न्यायाधीशों, सैन्य अधिकारियों, उद्योगपतियों तथा अन्य गणमान्य व्यक्तियों के डिजिटल डेटा का चीन द्वारा हो रहा संग्रहण राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बेहद चिंताजनक मामला है. एक अंग्रेजी अखबार की विस्तृत रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी सरकार व सेना से जुड़ी एक कंपनी लगभग दस हजार विशिष्ट भारतीयों तथा उनके करीबियों की इंटरनेट और सोशल मीडिया गतिविधियों की निगरानी कर रही है. इससे स्पष्ट है कि सामरिक और आर्थिक आक्रामकता के साथ डिजिटल मोर्चे पर सेंधमारी भी भारत के विरुद्ध चीन के हाइब्रिड युद्ध का हिस्सा है.

सूचना तकनीक और इंटरनेट के विस्तार के साथ डिजिटल डेटा की सुरक्षा का मसला वैश्विक चिंता का कारण बन चुका है. साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे हाइब्रिड पैंतरे का इस्तेमाल विभिन्न देशों के भीतर तथा दूसरे देशों की निगरानी के लिए बीते कुछ सालों से हो रहा है, किंतु इस क्षेत्र में चीन की क्षमता बहुत अधिक है.चीनी कंपनियां अपने हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के वैश्विक प्रसार से भी बड़ी मात्रा में डेटा चोरी कर रही हैं. इस वजह से भारत सहित अनेक देशों ने चीन की डिजिटल तकनीक की कंपनियों और एप पर पाबंदी लगायी है. लेकिन इसके बावजूद उसमें सुधार के संकेत नहीं हैं.

आदतन चीनी कूटनीतिक प्रतिनिधियों ने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है और आरोपों के घेरे में फंसी कंपनी ने अपना वेबसाइट बंद कर दिया है. कैंब्रिज एनालिटिका प्रकरण में सोशल मीडिया पर उपलब्ध लोगों के डेटा के दुरुपयोग की गंभीरता दुनिया के सामने आ चुकी है. कुछ साल पहले अमेरिकी एजेंसियों द्वारा की जा रही ऐसी ही निगरानी बड़े विवाद की वजह बनी थी. डेटा की चोरी के अलावा डिजिटल धोखाधड़ी, फर्जीवाड़ा और हैकिंग के मामले बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं.

ऐसे में राष्ट्रीय, सामरिक और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ठोस पहलकदमी बेहद जरूरी है. सबसे पहले पूरे प्रकरण की व्यापक जांच की जानी चाहिए और चीनी सरकार के सामने आधिकारिक शिकायत दर्ज करायी जानी चाहिए. लद्दाख में तनातनी को सुलझाने के लिए शीर्ष स्तर पर भारत और चीन के बीच बातचीत का सिलसिला जारी है. इसमें प्रमुख लोगों, उनके संबंधियों और सहयोगियों के डेटा के अवैध संग्रहण का मुद्दा भी उठाया जाना चाहिए. चीनी कंपनी भारत के अलावा अन्य कई देशों के विशिष्ट लोगों पर भी डिजिटल निगरानी रख रही है. इस लिहाज से यह एक अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय भी है.

अगर हम इस मामले के साथ डेटा चोरी और सर्विलांस के अन्य मसलों को जोड़कर देखें, तो साफ होता है कि अब वैश्विक स्तर पर इस समस्या पर विचार करने की जरूरत है. भारत विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मंचों पर इसे उठाकर चीन को कटघरे मे खड़ा कर सकता है. चाहे कोई विषय भौगोलिक हो, आर्थिक हो या फिर तकनीकी हो, चीन को मनमर्जी की इजाजत नहीं दी जा सकती है.

Next Article

Exit mobile version