संकट में रामबाण बना डीबीटी

कोविड संकट की चुनौतियों से देश दोतरफा जूझ रहा है. एकतरफ शहरी आबादी केसामने कोविड से बचाव और पलायन की पैदा हो रही परिस्थिति से निपटने कीचुनौती है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण भारत के सामने आजीविका के सुरक्षा कीचुनौती है. चूंकि, भारत की बड़ी आबादी गांवों में रहती है तथा उसकीआजीविका निर्भरता भी श्रम संबंधी उपक्रमों पर टिकी है.

By संपादकीय | April 29, 2020 6:49 AM

शिवानंद द्विवेदी

सीनियर फेलो , एसपीएमआरएफ

shiwaoffice@gmail.com

कोविड संकट की चुनौतियों से देश दोतरफा जूझ रहा है. एकतरफ शहरी आबादी केसामने कोविड से बचाव और पलायन की पैदा हो रही परिस्थिति से निपटने कीचुनौती है, वहीं दूसरी तरफ ग्रामीण भारत के सामने आजीविका के सुरक्षा कीचुनौती है. चूंकि, भारत की बड़ी आबादी गांवों में रहती है तथा उसकीआजीविका निर्भरता भी श्रम संबंधी उपक्रमों पर टिकी है. ऐसे में जबलॉकडाउन से श्रम के अवसर कम हो गये हैं, तब शहरों के साथ-साथ गांवों मेंआजीविका और नकदी का संकट पैदा होना स्वाभाविक था. यह संकट ऐसा था, जो नसिर्फ महीने से ज्यादा दिन के ‘लॉकडाउन’ को असफल करता, बल्कि आमजन केधैर्य व भरोसे को भी डिगा देता. किंतु, ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है.आखिर क्यों?

, इस क्यों का जवाब खोजते हुए हम यह भी नहीं कह सकते है किस्थितियां एकदम आदर्श हैं. स्थिति आदर्श नहीं, बल्कि संकट वाली हैं.किंतु, इसे संभालने के प्रयास जमीनी स्तर पर बहुत हद तक कारगर नजर आ रहेहैं. ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी का संकट न हो तथा गरीब तबके को फौरी तौरपर राहत मिले, इसके उपाय सरकार द्वारा किये गये हैं. सरकार द्वारा नकदीसहायता भेजने का प्रयास सफल हुआ है. इसके पीछे सबसे कारण ‘डायरेक्टबेनिफिट ट्रांसफर’ के तहत जनहित की योजनाओं की मजबूत संरचना का होना है.जनधन, आधार और मोबाइल की त्रयी में कुछ साल पहले मोदी सरकार द्वारा जनहितके लिए पारदर्शी मॉडल दिया गया. यद्यपि, इसे लेकर सरकार पर सवाल भी उठेऔर मखौल भी उड़ाया गया. किंतु, आज की स्थिति में ‘जैम’ की उपयोगिता उसनिर्णय की दूरगामी दृष्टि को सही साबित करती है.

महाभारत में एक श्लोकहै- स्वं प्रियं तु परित्यज्य यद् यल्लोकहितं भवेत अर्थात राजा को अपनेप्रिय लगनेवाले कार्य की बजाय वही करना चाहिए, जिसमें सबका हित हो. आज केसंदर्भ में ‘सबका हित’ का आशय ‘जनहित’ के लिए कार्यों की पारदर्शिता सेहै. दशकों पहले प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि ‘एक रुपये भेजतेहैं, तो गांवों तक 15 पैसे ही पहुंचते हैं.’ मोदी सरकार की’जनधन-आधार-मोबाइल’ त्रयी ने दशकों पुरानी इस समस्या के समाधान का रास्तादिखाया है. महज चार वर्षों में देश के 56 विभागों की 427 योजनाओं केलाभार्थियों को डीबीटी के तहत दो लाख 78 हजार करोड़ रुपये से अधिक का लाभसीधे उनके बैंक खाते में दिया जा चुका है. बारीकी से देखें, तो इसके पीछेयोजनाबद्ध तैयारियों की मजबूत संरचना नजर आती है.

डिजिटल इंडिया कोग्रामीण भारत तक मोबाइल के माध्यम से पहुंचाने, गरीबों को मुख्यधारा सेजोड़ने के लिए जनधन खाते खुलवाने, आधार से पहचान तय करने की योजनाबद्धकार्यनीति ने आज देश को इस स्थिति में पहुंचाया है कि वह कोविड जैसी कठिनपरिस्थिति में भी नागरिकों को उनका राहत लाभांश सीधे उनके खाते में दे पारहा है.ग्रामीण जनजीवन में नकदी का संकट न हो तथा बुनियादी जरूरतों के लिएआर्थिक तंगी का शिकार न होना पड़े, इसकी चिंता सरकार द्वारा की गयी है.मसलन, खेतिहर मजदूरों के लिए सरकार ने किसान सम्मान योजना के तहत लगभग18,000 करोड़ की राहत पैकेज राशि डीबीटी के माध्यम से दी. इससे लगभग 8.69करोड़ से अधिक किसानों के खातों में सीधे पैसा पहुंचा है. वहीं रसोई गैसकी सब्सिडी का पैसा भी लोगों के बैंक खातों में पहुंच रहा है.

लगभग हरगांव में कुछ परिवार ऐसे हैं, जो उज्ज्वला योजना के लाभार्थी हैं. ऐसेपरिवारों को तीन महीने तक मुफ्त गैस सिलिंडर की उपलब्धता ने राहत दी है.लॉकडाउन में कामकाज बंद होने से मनरेगा मजदूरों के लिए भी स्थिति दयनीयहो सकती थी. लेकिन, डीबीटी के तहत पुराने बकाये का भुगतान करके मोदीसरकार ने करोड़ों जॉब-कार्ड धारक मजदूरों के लिए राहत पहुंचायी है. उत्तरप्रदेश सरकार ने तो लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद मनरेगा मजदूरी की पहलीकिश्त लगभग 20 लाख खातों में भेज दी. अगर हम मान भी लें कि यह सब करना तोसरकार का दायित्व ही है. इस लिहाज से महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि सरकारने जनहित में यह कदम उठाये हैं. महत्वपूर्ण यह है कि सरकार द्वारा ऐसीविकट परिस्थिति के दौर से लड़ने तथा लक्ष्यावधि में इसे करने की संरचनातैयार की गयी है.

कल्पना करें यदि डीबीटी की संरचना नहीं होती, तो क्यासंभव था कि इतने बड़े पैमाने पर आर्थिक लाभांश लोगों को सीधे पारदर्शीतरीके से मिल पाता? शायद नहीं मिल पाता. अगर नहीं मिल पाता, तो आज देश कीस्थिति क्या होती, इसकी सहज कल्पना नहीं की जा सकती है. आज देश मेंजनभागीदारी और जनसहयोग की सफलता इसीलिए संभव है, क्योंकि जनता को सरकारसे जोड़ने के बीच की कड़ी भी पारदर्शी हुई है. अब सरकार जनता को जो देनाचाहती है, उसके बीच कोई तीसरी कड़ी न के बराबर बची है. कठिन दौर के बावजूदउससे उबरने तथा जनता के बीच लोकप्रियता की कसौटी पर मोदी सरकार के खरासाबित होने के पीछे पारदर्शी शासन के नवाचारी मॉडल पर लगातार काम करनाबड़ा कारण है. आज भी अगर जनता इतने लंबे समय तक लॉकडाउन का साथ दे रही है,तो इसके पीछे भी मूल कारण यही है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Next Article

Exit mobile version