दिल्ली में निर्माण से निकले मलबे के फिर से उपयोग के निर्धारित लक्ष्य का केवल 25 फीसदी ही पूरा हो सका है. केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय ने केंद्र और प्रदेश सरकार के 13 विभागों और नगर निगमों को 2019-20 में 16 लाख मिट्रिक टन मलबे को इस्तेमाल करने का निर्देश दिया था. इस मामले में रेलवे ने जहां शून्य मलबा उपयोग किया है, वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का आंकड़ा 0.14 फीसदी रहा है. दिल्ली मेट्रो ने एक फीसदी से थोड़ा अधिक ही मलबे को फिर से काम में लाया है. निर्माण से जुड़े मलबे को फिर से इस्तेमाल करना अन्य प्रकार के कचरे से बहुत आसान होता है. जब राजधानी में सरकारी विभागों का ऐसा रवैया है, तो अन्य हिस्सों में कचरा प्रबंधन की दशा का अनुमान लगाया जा सकता है.
हमारे देश में हर दिन 1.5 लाख मिट्रिक टन कचरा निकलता है, जिसका 80 फीसदी हिस्सा ढेर बनाकर या इधर-उधर खुले में फेंक दिया जाता है. यदि मलबे की बात करें, तो केवल एक फीसदी भाग ही रिसाइकल कर उपयोग में लाया जाता है. इस कूड़े के निकलने की मात्रा हमारे देश में 150 मिलियन टन है, लेकिन यह आधिकारिक आंकड़ा है. सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायर्नमेंट का कहना है कि असल में यह मात्रा 35 गुनी अधिक हो सकती है. पूरे देश में हो रहे लगातार निर्माण कार्यों को देखते हुए ऐसे आकलन पर भरोसा किया जा सकता है क्योंकि मलबे की जानकारी जुटाने की समुचित प्रक्रिया भी नहीं है.
साल 2017 तक 53 शहरों में ऐसे मलबे को रिसाइकल करने की व्यवस्था स्थापित होने की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा केवल 13 शहरों में ही हो सका. आवास, सड़क और अन्य तरह के निर्माण कार्यों में तेजी के कारण देश में पत्थर, बालू, लोहा, अल्युमिनियम, लड़की, खनिज आदि की मांग बेतहाशा बढ़ रही है. मौजूदा संसाधनों पर दबाव कम करने और भविष्य के लिए उनकी उपलब्धता बरकरार रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि मलबे को फिर से काम में लाया जाए. इससे संसाधनों की बचत के साथ लागत में भी कमी आयेगी. स्वच्छ भारत अभियान और स्वच्छता रैंकिंग में मलबे को रिसाइकल करने पर जोर दिया गया है.
इसके फिर से इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक कानूनी प्रावधान भी किये गये हैं, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर निगरानी की कमी तथा जागरूकता के अभाव में मलबे इधर-उधर फेंक दिये जाते हैं, जो पर्यावरण से संबंधित कई समस्याओं का कारण बनते हैं. आप किसी भी शहर या कस्बे में चले जाएं, आपको ऐसे मलबे के ढेर मिल जायेंगे. पानी, हवा और जमीन के बढ़ते प्रदूषण ने हमारे देश के बड़े हिस्से को संकट में डाल दिया है. प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे की समस्या भी विकराल होती जा रही है. ऐसे में अगर मलबे के समुचित निबटारे पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह मुश्किल बेहद गंभीर हो जायेगी.