12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कर्ज का बोझ

यह संतोष की बात है कि कर्ज के इस बढ़े हुए बोझ को संभालने की क्षमता देश में है. हमारे पास समुचित मुद्रा भंडार है, जो विदेशी कर्जों की चुकौती के लिए पर्याप्त है.

कोरोना महामारी से जान बचाने के साथ इसके नकारात्मक आर्थिक व वित्तीय प्रभाव से निपटना भी एक बड़ी चुनौती है. लॉकडाउन में उद्योग-धंधों, यातायात और कारोबारों के कमोबेश ठप पड़ने से उत्पादन, रोजगार, आमदनी और उपभोग में बड़ी गिरावट आयी है. हालांकि केंद्र सरकार के बड़े राहत पैकेज और धीरे-धीरे गतिविधियों में तेजी आने से स्थिति में सुधार के संकेत मिल रहे हैं, किंतु मौजूदा वित्त वर्ष में कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में बड़ी कमी का अनुमान है. इस कमी की एक वजह कोरोना संकट का सामना करने के लिए किये जा रहे उपायों पर भारी खर्च भी है.

भारत ही नहीं, कोरोना काल में दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के हिसाब बिगड़ चुके हैं, ऐसे में आर्थिकी को तुरंत पटरी पर लाना संभव नहीं है क्योंकि आयात-निर्यात के समीकरणों को ठीक होने में समय लगेगा. वृद्धि दर घटने के कारण जीडीपी और देश पर कुल कर्ज के अनुपात में भी बढ़ोतरी होगी. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में कर्ज का अनुपात जीडीपी का 87.6 फीसदी तक हो सकता है. बीते साल देश पर कर्ज की राशि 146.9 लाख करोड़ रुपये थी, जो जीडीपी का 72.2 फीसदी थी. इस साल यह रकम बढ़कर 170 लाख करोड़ रुपये हो सकती है.

वित्तीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन कानून के अनुसार 2023 तक इस अनुपात को 60 फीसदी तक लाना है, किंतु बदलती परिस्थितियों में अब सात साल की देरी हो सकती है यानी 2030 में इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा. निश्चित रूप से यह बड़ी चिंता की बात है और इससे उबरने के लिए उपाय भी किये जा रहे हैं. आनेवाले दिनों में और भी बड़ी-छोटी पहलों की दरकार होगी. लेकिन यह संतोष की बात है कि कर्ज के इस बढ़े हुए बोझ को संभालने की क्षमता देश में है.

हमारे पास समुचित विदेशी मुद्रा भंडार है, जो विदेशी कर्जों के किस्त व ब्याज की चुकौती के लिए पर्याप्त है. आयात में कमी के कारण व्यापार संतुलन बेहतर होने से भी वित्तीय स्तर पर तात्कालिक राहत मिलने की उम्मीद की जा सकती है. घरेलू कर्जे को लेकर चिंता की कोई वजह नहीं है क्योंकि उनका मालिकाना भी घरेलू है. एक अच्छा संकेत यह भी है कि केंद्र और राज्य सरकारों के ब्याज के खर्च में कमी आयी है.

वर्तमान संकट के समाधान के लिए रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार की अनेक वित्तीय पहलें हुई हैं, जिनसे अर्थव्यवस्था को गतिशील करने तथा पूंजी के प्रवाह को ठीक करने में मदद मिल रही है. स्टेट बैंक की इस रिपोर्ट में कुछ और सुझाव दिये गये हैं, जैसे कि वित्तीय घाटे को लंबी अवधि के बॉन्ड में बदलना. इससे कर्ज का खर्च कम होने की आशा है क्योंकि ब्याज दरों में और भी कमी हो सकती है. संक्रमण से निकलते ही गतिविधियां सुचारू रूप से चलने लगेंगी और कर्ज भी घटने लगेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें