गहरे होते भारत-यूएई संबंध
खाड़ी देशों के साथ हमारे संबंध परिपक्व और बहुआयामी हो गये हैं क्योंकि भारत ने इनसे रणनीतिक सहयोग के समझौते किये हैं.
भारत के लिए समूचे पश्चिम एशिया की प्रासंगिकता है, लेकिन खाड़ी देश कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण हैं. ये छह देश- सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान, बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात- हमारे लिए ऊर्जा सुरक्षा, सामुद्रिक सुरक्षा और भारतीयों के लिए अवसर के लिहाज से अहम हैं. इन देशों में लगभग अस्सी लाख भारतीय कार्यरत हैं. इन भारतीयों को ये देश बहुत मान देते हैं और वहां के विकास में इनके योगदान को भी रेखांकित करते हैं.
कुछ वर्ष पहले तक खाड़ी देशों के साथ हमारे संबंध बस इतने थे कि हम तेल खरीदते हैं और उनको भुगतान कर देते हैं तथा हमारे लोग वहां काम करते हैं और वहां से अपनी कमाई यहां भेजते हैं. अब हमारे संबंध परिपक्व और बहुआयामी हो गये हैं क्योंकि खाड़ी में हर देश के साथ भारत ने रणनीतिक सहयोग के समझौते किये हैं.
व्यापार, कारोबारी सहभागिता, तकनीक, साइबर सुरक्षा, सामुद्रिक सुरक्षा आदि के क्षेत्र में भी सहयोग का विस्तार हुआ है. बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए भारत भी यह चाहता है कि मध्य एशिया में शांति और स्थिरता रहे. हालांकि सभी खाड़ी देशों के साथ भारत के संबंध गहरे हुए हैं, लेकिन इनमें संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) विशेष स्थान रखता है.
भारत के लिए यूएई की खास अहमियत होने की दो मुख्य वजहें हैं- यह भारत के लिए आवागमन का एक बहुत बड़ा केंद्र है तथा भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार के मामले में यह शीर्ष देशों में शामिल है. हमारे यहां यूएई के निवेश में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है. दोनों देशों के संबंधों को बेहतर करने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी भूमिका है. द्विपक्षीय संबंधों में नेताओं की आपसी समझ और भरोसे की बड़ी भूमिका होती है.
जर्मनी में जी-7 के बैठक से लौटते हुए कुछ देर के लिए प्रधानमंत्री मोदी यूएई में रुके. यह उनकी चौथी यात्रा थी. पहले उन्हें दुबई एक्सपो में जाना था, पर महामारी के चलते वे नहीं जा सके थे. उल्लेखनीय है कि खाड़ी देशों में यूएई पहला ऐसा देश है, जिसने इजरायल के साथ सामान्य संबंध बनाने की व्यापक पहल की है. अरब देशों में इससे पहले मिस्र और जॉर्डन ने ही ऐसा किया था.
इस सिलसिले को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अब्राहम अकॉर्ड के माध्यम से आगे बढ़ाया गया. भारत ने यूएई के साथ जो व्यापक सहयोग समझौता किया है, उससे तहत हमारी लगभग 99 फीसदी चीजें शुल्क मुक्त हो जाती हैं. इससे निवेश में भी वृद्धि की आशा है. साथ ही, वित्तीय तकनीक में भी सहकार बढ़ेगा. तेल और गैस के मामले में धनी देश अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि उन्हें केवल ऊर्जा संसाधनों पर ही निर्भर न रहना पड़े. इसमें वे भारत की अहम भूमिका देख रहे हैं.
संबंध बढ़ाने के प्रयास के तहत ही भारत, इजरायल, अमेरिका और यूएई ने एक समूह बनाया है, जिसे आई2यू2 कहा जाता है. इसमें शामिल तीनों देशों के साथ भारत का रणनीतिक सहकार है. भारत और इजरायल के बीच मुक्त व्यापार समझौता करने के संबंध में बातचीत चल रही है. ऐसे ही एक समझौते के लिए अमेरिका के साथ भी चर्चा हो रही है. हाल में बने एक आर्थिक मंच में भी अमेरिका और भारत शामिल हैं.
अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य एवं व्यापार के क्षेत्र में भारत की भूमिका के महत्व को खाड़ी देश भी समझ रहे हैं. पहले इनके साथ व्यापक संबंध न बन पाने की एक वजह यह भी थी कि ये देश पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आते थे और हमारा आकलन यह होता था कि ऐसे में सहकार की संभावना तलाशने का कोई मतलब नहीं है. अब यह स्थिति नहीं है.
इसके उदाहरण के रूप में हम बालाकोट, पुलवामा, अनुच्छेद 370 हटाने जैसे मामलों को देख सकते हैं कि इन्हें खाड़ी देशों ने भारत का आंतरिक मसला माना तथा पाकिस्तान के रवैये का समर्थन नहीं किया. ये देश यह भी चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान तथा भारत और चीन के रिश्ते ठीक हो जाएं ताकि उनके सामने किसी एक देश का पक्ष लेने की स्थिति न आये. अगर किसी को चुनने की बात भी हो, तो हम देख सकते हैं कि वे भारत से बेहतर संबंध बनाने को अपने राष्ट्रीय हित के लिए उचित समझ रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के हालिया दौरे का एक संदर्भ यह भी है कि कुछ दिन पहले अबुधाबी के शासक और यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायेद के भाई और पूर्व राष्ट्रपति खलीफा बिन जायेद का निधन हुआ था. भारत की ओर से शोक संवेदना प्रकट करने के लिए उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू गये थे. इस दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपनी संवेदना दी और मोहम्मद बिन जायेद को राष्ट्रपति बनने की बधाई भी दी.
दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत निकटता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यूएई के राष्ट्रपति अपने परिजनों और वरिष्ठ मंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए हवाई अड्डे पर आये तथा वहीं बातचीत की. दोनों नेता इस बात से आगाह हैं कि चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं, चाहे वे खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी हों, रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न स्थिति हो या भावी विश्व व्यवस्था के बारे में हों.
खाड़ी देशों के संबंध में तीन तरह की चुनौतियां हैं, जिनमें एक भू-राजनीति से जुड़ी है. उस क्षेत्र में कुछ बड़े देशों- अमेरिका, चीन, भारत, रूस आदि- के बीच प्रभाव बनाने-बढ़ाने के लिए प्रतिस्पर्द्धा चलती रहती है. चूंकि खाड़ी देशों में प्रचुर ऊर्जा संसाधन हैं, तो भू-आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा का भी एक मंच वहां हैं. तीसरी चुनौती भू-धार्मिक आयाम है. इस्लामिक जगत में वर्चस्व के लिए विभिन्न देशों में होड़ लगी रहती है. खाड़ी देश अभी तक अमेरिकी सहयोग से विकसित हुए हैं.
ईरान के साथ उनका टकराव भू-आर्थिक भी है और भू-धार्मिक भी. अमेरिका का झुकाव इजरायल और खाड़ी देशों की ओर रहता है, पर उसने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया, जिसे फिर से करने की कोशिशें हो रही हैं क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप समझौते से अलग हो गये थे. एक अच्छी बात यह हो रही है कि पश्चिम एशियाई देशों के नेता एक-दूसरे देशों के दौरे कर रहे हैं तथा क्षेत्रीय स्थिरता के लिए प्रयासरत हैं. जल्दी ही राष्ट्रपति बाइडेन भी इस क्षेत्र में आ रहे हैं. इस क्षेत्र में स्थिरता दुनिया और भारत के लिए अच्छी बात होगी. भारत ने सभी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंध बेहतर करने पर ध्यान केंद्रित किया और इससे भारत का भरोसा भी बढ़ा है.