रक्षा निर्यात में वृद्धि
घरेलू खरीद बढ़ने से हम विदेशी मुद्रा की बचत करने के साथ अपने उद्योगों को ठोस सहायता भी पहुंचा रहे हैं. इससे रोजगार व कारोबार के अवसर भी बढ़ रहे हैं.
हमारा देश लंबे समय तक रक्षा साजो-सामान के सबसे बड़े आयातकों की सूची में रहा है, पर अब यह स्थिति जल्दी ही बदल जायेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही रेखांकित किया है कि बीते चार-पांच वर्षों की छोटी अवधि में रक्षा आयात में लगभग 21 प्रतिशत की कमी आयी है. घरेलू रक्षा उद्योग के तेज विस्तार से न केवल सशस्त्र सेनाओं की आवश्यकताएं पूरी करने का प्रयास हो रहा है, बल्कि रक्षा वस्तुओं का निर्यात भी लगातार बढ़ता जा रहा है.
वित्त वर्ष 2021-22 में 13 हजार करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुएं अन्य देशों को बेची गयी थीं और इनमें से 70 फीसदी चीजों का उत्पादन निजी क्षेत्र के उद्योगों ने किया था. पहले की तुलना में सरकारी कंपनियों से खरीद का आंकड़ा बहुत बढ़ा है. सरहदों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आठ वर्षों में रक्षा बजट में भी बढ़ोतरी होती रही है. पारंपरिक रूप से इसका बड़ा हिस्सा हथियारों और अन्य जरूरी चीजों के आयात पर खर्च होता रहा है, पर अब घरेलू खरीद बढ़ने से हम विदेशी मुद्रा की बचत करने के साथ अपने उद्योगों को ठोस सहायता भी पहुंचा रहे हैं.
इससे औद्योगिक विकास के साथ-साथ रोजगार व कारोबार के अवसर भी बढ़ रहे हैं. भू-राजनीतिक तनाव और कूटनीतिक खींचतान के कारण कई बार बाहर से हथियारों और रक्षा तकनीक की खरीद आसान नहीं होती. खरीद के बाद उन हथियारों की देख-रेख और उनके कल-पुर्जों के लिए भी दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है. युद्ध जैसी स्थितियों में या किसी मुद्दे पर तनातनी होने से ऐसे लेन-देन पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.
घरेलू रक्षा उद्योग के विकास से ऐसी समस्याओं का स्थायी समाधान संभव है. अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए सरकार हर क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में कार्यरत है. इस अभियान का उद्देश्य है कि व्यापक घरेलू बाजार की मांग पूरी करने के साथ अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति शृंखला में भी भारत की ठोस उपस्थिति बने. रक्षा क्षेत्र में इस संकल्प को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने नौसेना के लिए 75 स्वदेशी तकनीकों और उत्पादों के विकास के कार्यक्रम की शुरुआत की है.
वर्तमान में देश के भीतर 30 युद्धपोतों और पनडुब्बियों के निर्माण का कार्य चल रहा है. चार युद्धपोत नौसेना के बेड़े में जल्दी ही शामिल होंगे. इस संदर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा भारतीय कंपनियों से अनिवार्य खरीद के लिए चिह्नित किया गया है. फ्रांस, रूस, इजरायल,
फिलीपींस समेत अनेक देशों के साथ भारतीय कंपनियां कारोबारी समझौते कर रही हैं, जिनके तहत भारत में कई अहम चीजों और पुर्जों का निर्माण होगा तथा रक्षा तकनीक का विकास किया जायेगा. केंद्र सरकार ने 2020 में पांच वर्षों में रक्षा निर्यात को 35 हजार करोड़ रुपये तक ले जाने का लक्ष्य निर्धारित किया था. उम्मीद है कि 2025 तक भारतीय रक्षा उद्योग का टर्नओवर 1.75 लाख करोड़ रुपये हो जायेगा.