दिल्ली हादसा लापरवाही का नतीजा
दिल्ली में जो घटना घटी है, वह कोई पहली घटना नहीं है. आग लगने या पानी भर जाने के हादसे केवल कोचिंग सेंटरों में नहीं होते. ऐसे हादसे कहीं भी और कभी भी हो सकते हैं.
डॉ नागेश के ओझा
टिप्पणीकार
कुछ दिन पहले दिल्ली के एक बेसमेंट में चल रहे एक कोचिंग संस्थान के रीडिंग हॉल में पानी भर जाने से तीन छात्रों की डूबने से हुई मौत की घटना हृदयविदारक है. इस घटना से कई सवाल पैदा होते हैं. सबसे पहले तो यही सवाल है कि शहर प्रबंधन के जो नियम-कानून हैं, क्या उसका पालन किया गया. यदि नियमों का उल्लंघन हुआ, तो शासन-प्रशासन के जिन विभागों या प्राधिकरणों की जवाबदेही है, उन्होंने समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की? विभाग या निगम जिन सरकारों के अधीन हैं, उन्होंने कोई कदम क्यों नहीं उठाया? हादसे चाहे दिल्ली में हों, कोटा, राजकोट या इलाहाबाद में हों, मुख्य रूप से यही सवाल उठते हैं. कोचिंग करने वाले छात्र जिन मुश्किलों में रहते हैं, अगर उसकी बात की जाए, तो सवाल फिर वही आता है कि उन परेशानियों को शासन-प्रशासन द्वारा हल करने की कोशिश होती है या वे आंख बंद किये रहते हैं. यदि निचले स्तर पर लापरवाही या अक्षमता है, तो उनके ऊपर की अथॉरिटी की जवाबदेही बनती है. न्यायपालिका कई मामलों का स्वतः संज्ञान लेती है और आदेश जारी करती है. ऐसे मामलों में भी अदालतों को हस्तक्षेप करना चाहिए.
जहां बच्चों के जीवन का प्रश्न आता है, वहां राजनीति नहीं होनी चाहिए. इसे व्यवस्था की दृष्टि से देखा जाना चाहिए, न कि किसी राजनीतिक चश्मे से. ऐसा कोई राजनीतिक दल शायद ही होगा, जो आज या पहले सत्ता में नहीं रहा हो. क्या हमारे पास एक भी उदाहरण है कि जिन लोगों ने ऐसी समस्याओं पर अंगुली उठायी और जब वे सत्ता में आये, तो उन्होंने उन समस्याओं का समाधान कर दिया? जब कोई हादसा होता है, तो प्रशासन द्वारा यह दिखाने की कोशिश होती है कि वह मुस्तैद है और कुछ कार्रवाई कर दी जाती है. कुछ ऐसे बेसमेंट को सील किया गया है, जहां कोचिंग क्लास होती थीं. अब यहां यह सवाल उठता है कि संबंधित अधिकारियों और विभागों ने यह कार्रवाई पहले क्यों नहीं की, जबकि ऐसे उल्लंघनों के बारे में उन्हें पहले से जानकारी थी और उनके पास सील करने का अधिकार भी था. जहां तक कोचिंग संस्थानों का सवाल है, तो छोटे कोचिंग सेंटरों के पास संसाधन सीमित होते हैं, तो उनसे बहुत अपेक्षा नहीं की जा सकती है. लेकिन बड़े कोचिंग संस्थान अपने स्तर पर बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं, जिससे छात्र सुरक्षित परिवेश में पढ़ाई कर सकें. यहां यह भी कहा जाना चाहिए कि अनेक कोचिंग संस्थान छात्रों की सुविधा एवं सुरक्षा का ध्यान रखते हैं. ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि सभी लापरवाह हैं.
बड़े कोचिंग संस्थानों के पास संसाधन की कमी नहीं है. अगर उनकी ओर से कोई चूक होती है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है. अब कोचिंग कारोबार दस-बीस करोड़ रुपये का मामला नहीं है. अनेक बड़े कोचिंग संस्थानों का कारोबार सैकड़ों करोड़ रुपये का हो चुका है. वे चाहें, तो छात्रों को समुचित सुविधा मुहैया करा सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए. हमारे देश में कलाम साहब राष्ट्रपति बने, मोदी जी प्रधानमंत्री बने. ऐसे कई उदाहरण हैं. जरा सोचा जाए कि ऐसे लोग जब बच्चे होंगे, किशोरावस्था में होंगे, तो क्या उनके परिवेश के लोग यह अनुमान लगा सकते थे कि यह बच्चा आगे चलकर इस देश का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनेगा. उसी तरह यह नहीं कहा जा सकता है कि कौन सा छात्र सिविल सर्विसेज की परीक्षा में शीर्ष स्थान पर होगा या किसे कौन सा रैंक मिलेगा या कौन आगे चलकर देश का कैबिनेट सेक्रेटरी बनेगा. इसलिए हमारे लिए हर बच्चे की जान समान रूप से महत्वपूर्ण होनी चाहिए और हमें सभी का ध्यान रखना चाहिए. बच्चों से जुड़ा कोई भी मामला हो, वहां किसी भी तरह की किंतु-परंतु के लिए जगह नहीं होनी चाहिए. बच्चे ही तो देश का भविष्य हैं. इस पर राजनेताओं, प्रशासन, विभिन्न विभाग, कोचिंग सेंटर, समाज, सभी को गंभीरता से सोचने की जरूरत है.
छात्र अपनी उम्मीदों को पूरा करने के लिए कहां-कहां नहीं जाते हैं और वे तमाम तरह की तकलीफों का सामना करते हैं. उनकी मुश्किलों को हल करने की चेष्टा करता हुआ कोई प्रशासन या राजनीतिक व्यक्ति कम से कम मुझे तो नहीं दिखा है. इन बच्चों की तकलीफों को लेकर कोई आंदोलन या बहस कभी नहीं होती. यदि हम बच्चों और उनके अभिभावकों द्वारा बरती जाने वाली सावधानियों की बात करेंगे, तो वह केवल कागजी बात होगी. यह कहना आसान है कि पहले अभिभावक और छात्र जाकर कोचिंग सेंटर या छात्रावास की व्यवस्था देख-परख लें, फिर एडमिशन करायें. कुछ संस्थानों में आप यह अनुरोध कर सकते हैं कि व्यवस्था बेहतर कीजिए, पर हर जगह ऐसा नहीं हो पाता. छात्र भी कई दुश्वारियों से जूझ रहे होते हैं और उनके पास आर्थिक संसाधन भी सीमित होते हैं. अब छात्र या अभिभावक यह कैसे पता कर सकते हैं कि इस बेसमेंट के बारे में प्रशासन या नगर निगम को बताया गया है कि यहां स्टोर है, पर वास्तव में वहां रीडिंग हॉल चल रहा है. इसी तरह यह पता करना भी मुश्किल है कि इमारत कितनी मजबूत है या आग-पानी से बचाव के क्या इंतजाम किये गये हैं.
ऐसी घटनाओं के लिए कुछ लोगों पर आरोप लगाकर या उन्हें सजा देकर समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता है क्योंकि समस्या बहुत गंभीर और विकट हो चुकी है. कोचिंग संस्थान कहां और कैसे चलें, उनमें इंतजाम क्या हों, उनकी निगरानी कैसे हो, इन सबके लिए एक ठोस मैकेनिज्म बनाने की जरूरत है. दिल्ली में जो घटना घटी है, वह कोई पहली घटना नहीं है. आग लगने या पानी भर जाने के हादसे केवल कोचिंग सेंटरों में नहीं होते. ऐसे हादसे कहीं भी और कभी भी हो सकते हैं. इसलिए हमें शहरी व्यवस्था और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है. अक्सर ऐसा होता है कि ऐसी त्रासदी होती है, दो-चार दिन उस पर चर्चा होती है, आरोप-प्रत्यारोप लगाये जाते हैं, कुछ कार्रवाई कर प्रशासन भी बैठ जाता है. जल्दी ही हम भूल जाते हैं. जब ऐसा हादसा फिर होता है, तो हम यही सब दुहराते हैं. जिन परिवारों के बच्चे मरे हैं, उनका कष्ट देखना चाहिए, बाकी लोगों के लिए यह बस एक मुद्दा भर है. उन परिवारों ने अपना होनहार सदस्य खोया है, जो न केवल उनके लिए, बल्कि समाज और देश के लिए भविष्य में बहुत कुछ कर सकता था. हमें ईमानदारी और गंभीरता से ऐसे प्रयास करने चाहिए ताकि ऐसी घटनाएं न हों. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)
(बातचीत पर आधारित)