चुनावी हार से बड़ी है एक सपने की मौत
Delhi Election Results : अरविंद केजरीवाल को पार्टी का पर्याय बनाने का खामियाजा यह है कि उनकी व्यक्तिगत चुनावी हार का वही असर है, जो युद्ध में सेनापति के गिरने का होता है. दिल्ली के बाहर आप के लिए बहुत रास्ते खुले नहीं है.
Delhi Election Results : सवाल यह नहीं है कि आम आदमी पार्टी का क्या होगा? या अब केजरीवाल कहां जायेंगे? सवाल है कि वैकल्पिक राजनीति की किसी भी कोशिश का क्या भविष्य है? वैसे तो तीन चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने के बाद एक चुनाव में पिछड़ जाना, और वह भी सिर्फ चार प्रतिशत से, कोई ऐसी हार नहीं है, जिसके बाद किसी पार्टी के अस्तित्व पर सवाल उठाये जाएं. पर यह तर्क आप पर लागू नहीं होता. एक आंदोलन से शुरुआत करने वाली यह पार्टी पूरी तरह चुनावी पार्टी बन गयी और जल्द ही संगठन को छोड़ सरकार तक सीमित हो गयी थी. इसलिए चुनावी हार का धक्का भारी पड़ सकता है. शुरू से ही पार्टी की दिल्ली पर निर्भरता बहुत ज्यादा रही है, पंजाब सरकार पर भी दिल्ली दरबार से चलाने के आरोप लगते रहे हैं. इसलिए दिल्ली की हार का असर पूरे देश पर पड़ना स्वाभाविक है.
अरविंद केजरीवाल को पार्टी का पर्याय बनाने का खामियाजा यह है कि उनकी व्यक्तिगत चुनावी हार का वही असर है, जो युद्ध में सेनापति के गिरने का होता है. दिल्ली के बाहर आप के लिए बहुत रास्ते खुले नहीं है. पिछले चुनाव में गोवा, उत्तराखंड और गुजरात में अच्छा वोट मिला था, पर आगामी चुनाव में उसे दोहराना संभव नहीं लगता. हरियाणा में घुसने की कोशिश कामयाब नहीं हुई. ले-देकर सारा दारोमदार पंजाब पर टिका है. वहां सत्ता बचाये रखना टेढ़ी खीर हो सकता है. अगर पंजाब के विधायकों में बगावत की चर्चा को खारिज कर दिया जाए, तो भी 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आप के सामने अनेक चुनौतियां हैं.
खजाने में पैसे नहीं हैं, सरकार का इकबाल नहीं है, मुख्यमंत्री में समझ नहीं है, पार्टी को दिशाबोध नहीं है. पंजाब के मतदाता में बहुत धीरज नहीं है. और अगर पंजाब की सरकार चली जाती है, तो पार्टी के अस्तित्व का संकट हो सकता है, क्योंकि आप ने उन नेताओं और कार्यकर्ताओं से किनारा कर लिया है, जिनकी निःस्वार्थ मेहनत के दम पर पार्टी खड़ी हुई थी. धीरे-धीरे सब जगह या तो दूसरी पार्टियों से नेताओं को भर लिया गया है, या फिर वे कार्यकर्ता हैं, जिनकी नजर कुर्सी पर लगी है. ऐसे में अगर आप को तोड़ने की कोशिश होती है, तो कितने नेता इस मुश्किल वक्त में पार्टी के साथ खड़े होंगे?
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से पैदा हुई यह पार्टी राजनीति के स्थापित ढर्रे को बदलने के उद्देश्य से बनी थी. पर पहले तीन साल के भीतर ही राजनीति को बदलने की बजाय पार्टी ने राजनीति के स्थापित कायदे के हिसाब से खुद को बदल लिया. दरअसल दिल्ली में 2015 के चुनाव में मिली अप्रत्याशित सफलता इस पार्टी की बुनियादी विफलता से जुड़ी थी. जल्द से जल्द चुनावी सफलता के लिए पार्टी ने अपने बुनियादी मूल्यों को ताक पर रख दिया था. इससे सरकार तो बन गयी, पर पार्टी टूट गयी. वे सब लोग पार्टी से अलग कर दिये गये, जो कुछ आदर्श को लेकर पार्टी से जुड़े थे.
भ्रष्टाचार विरोधी आदर्शवाद को छोड़ कर पार्टी ने ‘गुड गवर्नेंस’ का नारा पकड़ा. दिल्ली सरकार की बड़ी तिजोरी के सहारे मुफ्त बिजली जैसी योजनाएं भी पेश की. सरकारी स्कूलों में सुधार और मोहल्ला क्लिनिक के सहारे ‘दिल्ली मॉडल’ की पेशकश की. हालांकि ‘शिक्षा क्रांति’ जैसे दावे अतिशयोक्तिपूर्ण थे, फिर भी बहुत दिन बाद सरकारी स्कूलों की सूरत सुधरी. दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ी या अनाधिकृत कॉलोनी में रहने वाले गरीब, आप्रवासी और हाशियाग्रस्त समुदाय को कोई अपनी खैर-खबर लेने वाला मिला. स्थापित राजनैतिक घरानों के बाहर नया नेतृत्व उभरा. केंद्र सरकार और भाजपा के एजेंट की तरह उपराज्यपाल द्वारा तमाम अड़ंगे लगाने के बावजूद दिल्ली की जनता ने 2020 के चुनाव में आप को फिर छप्पर फाड़ कर समर्थन दिया. दिल्ली मॉडल के इसी दावे के सहारे 2022 में पंजाब में भी आप की लहर चली.लेकिन अब तक पार्टी की बुनियादी कमजोरी ऊपर तक दिखने लगी थी. दिल्ली में आप की तीसरी सरकार के पास महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा के अलावा और कुछ देने को बचा नहीं था.
पंजाब सरकार की तिजोरी पहले से ही खाली थी, वहां कुछ बड़ा करने की गुंजाइश नहीं थी. उधर अहंकार में लिप्त नेतृत्व ने खुल कर वह सब करना शुरू कर दिया, जो आम जनता में इस पार्टी की छवि को ध्वस्त कर रहा था. पार्टी ने भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति का विरोध करने के बजाय हिंदू सांप्रदायिकता में भाजपा से होड़ करनी शुरू कर दी. आदर्शवाद पहले ही छूट चुका था, अब जमीनी पकड़ भी ढीली होने लगी. केजरीवाल सहित जब बड़े नेता जेल में भेजे गये, तो जनता की सहानुभूति उनके साथ नहीं थी. इसकी परिणति दिल्ली के चुनाव परिणाम में हुई.आप की हार का असली नुकसान सिर्फ इस पार्टी और इसके नेताओं को नहीं है. असली नुकसान यह है कि आने वाले कुछ समय तक राजनीति में आदर्श और ईमानदारी की बात करने वाले को शक की निगाह से देखा जायेगा. आप ने भविष्य का रास्ता और मुश्किल कर दिया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)