मुद्दों से भटकाव लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह
लोकतंत्र के असली चौकीदार भारत के लोग हैं. हर पांच साल बाद लोग बड़े घरों, फ्लैटों, गांवों, झुग्गियों से निकलते हैं और शासक वर्गों के भाग्य का निर्धारण करते हैं.
अब्राहम लिंकन ने कहा था, ‘चुनाव लोगों का निर्णय होते हैं. अगर वे आग से मुंह मोड़ते हैं और शरीर के पिछले हिस्से को जला लेते हैं, तो उन्हें अपने घावों पर बैठना पड़ेगा.’ थॉमस फ्रीडमैन का मानना था, ‘जब लोकप्रिय नेता बिना सोचे-समझे कुछ भी कहने-बोलने लगते हैं, तो बड़े मुद्दों पर समझदारी से विचार कर पाना लोकतंत्र के लिए असंभव हो जाता है.’
हमारे देश में हो रहे लोकसभा चुनाव में मुद्दे मर चुके हैं और वे अनर्गल प्रलापों के राजनीतिक कब्रिस्तान में दफन हो चुके हैं. अभद्रता हावी हो चुकी है. लड़ाई उच्च नैतिक आधार से शुरू हुई थी. वह लड़ाई 2047 में विकसित भारत बनाने और सभी के लिए न्याय के बीच थी. कई दिनों तक मुद्दे शासन में सक्षम सरकार चुनने और लोकतांत्रिक संस्थाओं को तबाह करने वाली पार्टी को हराने के इर्द-गिर्द घूम रहे थे.
भाजपा और प्रधानमंत्री ने अपने अभियान का प्रारंभ विकास के अस्त्र के साथ किया था. भगवा खेमे के नेता हर दिन 35 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने, सौ नये हवाई अड्डे बनाने, आतंकी हमले और सांप्रदायिक दंगे रोकने, रिकॉर्ड वृद्धि दर हासिल करने और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के बढ़ते महत्व जैसी एक दशक की सरकार की उपलब्धियों का प्रचार कर रहे थे. ‘मोदी की गारंटी’ का स्वर्णिम संकल्प एक ऐसे नेता पर विश्वास का आह्वान था, जिसने वादों से कहीं अधिक काम कर दिखाया है. विपक्षी पार्टियां अतीत के अपने कार्यों तथा भविष्य के वादों तक सीमित थीं. जब मोदी ने भारत की समस्याओं के लिए गांधी परिवार को दोषी ठहराया, तो कांग्रेस ने इस पर जोर दिया कि लोकतांत्रिक एवं औद्योगिक भारत की नींव उसके संस्थापकों द्वारा रखी गयी थी.
यहां तक तो सब ठीक था, पर जल्दी ही परिदृश्य बदल गया. नेताओं का ध्यान व्यापक परिप्रेक्ष्य से हट गया और वे मामूली मसलों पर झगड़ने लगे. चुनाव दो नकारात्मक आख्यानों के झंझट में बदल गया. आधी सीटों पर मतदान होने तक राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों के बीच का माहौल विषाक्त हो गया. नेता, समर्थक और प्रायोजित सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर जातिगत एवं सांप्रदायिक बातों को उठाकर बेशर्मी से प्रचार अभियान को गर्त में ले जाने लगे. यह चुनाव अब व्यक्तिगत झगड़ा बन गया है. अल्पसंख्यक, मंगलसूत्र और मंदिर राजनीतिक सलीब के घाव बन चुके हैं. चुनाव आक्रामक मोदी और प्रयासरत राहुल के बीच की लड़ाई बन गयी है.
लोकतंत्र के असली चौकीदार भारत के लोग हैं. हर पांच साल बाद लोग बड़े घरों, फ्लैटों, गांवों, झुग्गियों आदि से भारी तादाद में निकलते हैं और शासक वर्गों के भाग्य का निर्धारण करते हैं. यह एक ऐसी सेना है, जो सरकार बना और हटा सकती है. भारत के लोग मतदान के दिन को सशक्तीकरण के दिन के रूप में देखते हैं, न कि सत्ता हड़पने के दिन के तौर पर. वे स्वच्छ वाणी और स्वच्छ शासन की अपेक्षा रखते हैं.
इस प्रक्रिया में मोदी ने राहुल और कांग्रेस को अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के तौर पर परिभाषित किया है. उन्होंने कहा है कि कांग्रेस शहजादा रफाल मुद्दे के नाकाम होने के बाद पांच उद्योगपतियों का नाम ले रहे थे और फिर वे अंबानी-अदानी कहने लगे, लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद उन्होंने ये दो नाम लेना भी बंद कर दिया है. मोदी ने आगे पूछा कि अंबानी और अदानी से कितने पैसे मिले हैं कि अब उनका नाम नहीं लिया जा रहा है. दाल में कुछ काला होने के मोदी के इस भाषण से उनके कट्टर समर्थकों को भी अचरज हुआ. लेकिन मोदी ने यह बात तेलंगाना में इसलिए कही क्योंकि हाल में वहां की कांग्रेस सरकार ने 12,500 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के लिए अदानी समूह से करार किया है.
भाजपा के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह ने यह स्पष्ट किया है कि यह चुनाव मोदी और राहुल के बीच है. उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा है कि मतदाताओं को मोदी की ‘भारतीय गारंटी’ और राहुल की ‘चीनी गारंटी’ में से चुनाव करना है. शाह कट्टर भगवा गद्य का इस्तेमाल कर हिंदुत्व-आधारित विचारधारात्मक अभियान के लिए माहौल बना रहे हैं. वे भले तेलंगाना में बोल रहे थे, पर उनका संदेश देशभर के भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए था.
उन्होंने कांग्रेस, बीआरएस और एआइएमआइएम को ‘तुष्टिकरण की तिकड़ी’ बताते हुए कहा कि ये लोग तेलंगाना को शरिया और कुरान के आधार पर चलाना चाहते हैं. हैदराबाद में प्रचार करते हुए अभी-अभी भाजपा में आयीं महाराष्ट्र से सांसद नवनीत राणा ने 2013 में अकबरूद्दीन ओवैसी के एक भाषण का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि पंद्रह मिनट के लिए पुलिस हटा लो, हम दिखा देंगे कि हम क्या कर सकते हैं. राणा ने कहा कि उनको तो पंद्रह मिनट लगेंगे, हमें तो बस पंद्रह सेकेंड लगेंगे.
उन्होंने दावा किया कि भाजपा प्रत्याशी माधवी लता हैदराबाद को पाकिस्तान नहीं बनने देंगी तथा कांग्रेस या एआइएमआइएम को वोट देना पाकिस्तान को वोट देना है. प्रमुख भाजपा नेता धार्मिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए ‘अबकी बार, 400 पार’ के प्रधानमंत्री के नारे का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो मोदी का मूल उद्देश्य नहीं था. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने ओडिशा में कहा कि 400 सीटें इसलिए चाहिए कि बाबरी मस्जिद दुबारा न बन सके तथा हम देश के हर मंदिर को मुक्त करायेंगे.
विपक्ष भी हमलावर है. शिव सेना (उद्धव ठाकरे) के सांसद संजय राउत ने मोदी की तुलना औरंगजेब से की और प्रधानमंत्री के लिए वैसी ही परिणति की भविष्यवाणी की. राजनीति और एजेंसियों के दबाव से घिरीं ममता बनर्जी ने भाजपा नेताओं को ‘लुटेरा’ बताया, जो पश्चिम बंगाल को तबाह करना चाहते हैं. उन्होंने मोदी को ‘इंसान-हत्या का सौदागर’ कहा. इससे सोनिया गांधी के ‘मौत का सौदागर’ वाले बयान की याद आती है, जो उल्टा पड़ गया था.
प्रियंका और राहुल गांधी भी सोशल मीडिया चुटकुलों और मंचों के निरर्थक बातों से मोदी का मजाक उड़ाने में बहुत पीछे नहीं हैं. क्या हमारे वाचाल नेता यह भूल गये हैं कि अनुचित बयानों और तरीकों से चुनाव नहीं जीते जाते? मोदी ने 2014 में भ्रष्टाचार विरोध के मुद्दे पर जीत हासिल की थी. राहुल गांधी के गढ़े नारे ‘चौकीदार चोर है’ के बावजूद 2019 में उन्हें बड़ा जनादेश मिला. लोकतंत्र के असली चौकीदार भारत के लोग हैं. हर पांच साल बाद लोग बड़े घरों, फ्लैटों, गांवों, झुग्गियों आदि से भारी तादाद में निकलते हैं और शासक वर्गों के भाग्य का निर्धारण करते हैं. यह एक ऐसी सेना है, जो सरकार बना और हटा सकती है.
भारत के लोग मतदान के दिन को सशक्तीकरण के दिन के रूप में देखते हैं, न कि सत्ता हड़पने के दिन के तौर पर. वे स्वच्छ वाणी और स्वच्छ शासन की अपेक्षा रखते हैं. भारत की स्वतंत्रता से ठीक पहले विंस्टन चर्चिल ने दंभ से कहा था कि देश की सत्ता बदमाशों के हाथ में चली जायेगी और वे सब आपस में लड़ेंगे. अगर चर्चिल सही साबित होंगे, तो यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा. सौभाग्य से, समृद्ध होता एकजुट भारत अभी सुरक्षित हाथों में है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)