भारत में दस करोड़ से अधिक लोग डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित हैं. इस बीमारी के मरीजों की तादाद के लिहाज से दुनिया में हमारा देश दूसरे स्थान पर है. आकलनों की मानें, तो अगले दो दशक में यह संख्या दोगुनी हो जायेगी. भारत समेत कई देशों में इस रोग के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनियाभर में पचास करोड़ से अधिक लोग मधुमेह से जूझ रहे हैं. अंधत्व, किडनी खराब होना, दिल का दौरा पड़ना, शरीर के निचले हिस्से को काट कर अलग करना आदि अनेक स्वास्थ्य समस्याओं का प्रमुख कारण डायबिटीज है. यह रोग तब होता है, जब शरीर समुचित मात्रा में इन्सुलिन उत्पादित नहीं कर पाता या उत्पादित इन्सुलिन का उपयोग करने में सक्षम नहीं रहता.
भारत में बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं, जो टाइप-1 डायबिटीज के मरीज हैं. जहां तक संख्या की बात है, तो यह अधिक ही होगी क्योंकि भारत में बहुत से लोग नियमित रूप से स्वास्थ्य संबंधी जांच नहीं कराते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि जीवन शैली में सुधार कर टाइप-2 डायबिटीज के जोखिम को बहुत कम किया जा सकता है. शहरों में खान-पान में लापरवाही, जंक फूड पर जोर, तनाव, कसरत या शारीरिक गतिविधियों पर कम ध्यान, कुर्सी पर लंबे समय तक बैठना आदि जैसी प्रवृत्तियों के कारण डायबिटीज के मरीजों की तादाद ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है. अधिक मात्रा में चीनी और कार्बोहाइड्रेट का सेवन आम चलन बना हुआ है. मोटापा भी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या का स्वरूप ले चुका है.
शराब के सेवन और धूम्रपान में भी वृद्धि हो रही है. ये सब कारक भी मधुमेह के लिए जिम्मेदार हैं. हमारे देश में यह रोग कितनी तेजी से बढ़ रहा है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2019 और 2021 के बीच ही 3.10 करोड़ मरीज बढ़े हैं. पिछले कुछ समय से भारत में वायु प्रदूषण का कहर बढ़ता ही जा रहा है. हाल में हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि वायु प्रदूषण टाइप-2 डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाने में योगदान करता है. सात वर्षों तक चले इस शोध में दिल्ली और चेन्नई के हजारों निवासियों का अध्ययन किया गया है. मधुमेह के दस करोड़ से अधिक रोगियों के अलावा 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटीक हैं. हमारे पास इस गंभीर स्वास्थ्य समस्या की पूरी जानकारी है. उसके आधार पर इसकी रोकथाम के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है. लोगों को समय-समय पर स्वास्थ्य जांच के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.