जे सुशील स्वतंत्र शोधार्थी
अमेरिका में जहां कोरोना वायरस से मरनेवालों की संख्या एक लाख के पार होचुकी है. एक तरफ जहां अमेरिका कोरोना वायरस की महामारी से सबसे अधिकप्रभावित है, तो वहीं देश का एक शहर काले लोगों के विरोध-प्रदर्शनों मेंजल रहा है. मुद्दा पुलिस की क्रूरता का है, जिसमें एक काले अमेरिकी जॉर्जफ्लायड की मौत हो गयी है. इस घटना में चार पुलिसकर्मी 46 साल के जॉर्जफ्लायड को कार से उतारते हैं और हथकड़ी लगा देते हैं. हथकड़ी लगाये जानेके बाद जॉर्ज सवाल पूछने की कोशिश करता है और इतने में ही एक पुलिसवालाउसे नीचे मुंह के बल गिरा देता है. जॉर्ज छह फीट के भारी भरकम शरीर केव्यक्ति हैं. उन्हें सड़क पर गिराने के बाद एक पुलिसवाला उनकी गर्दन परअपने घुटने टिकाकर बैठ जाता है. जॉर्ज बार-बार कहते हैं कि उन्हें खड़ाकिया जाये. वे सांस नहीं पा रहे हैं.
लेकिन, जॉर्ज की कोई नहीं सुनता है.यहां तक कि इस घटना का वीडियो बना रहे लोग भी पुलिस से कहते हैं कि वहआदमी मर जायेगा, लेकिन पुलिसकर्मी न तो अपना घुटना उठाता है और न हीजॉर्ज को राहत देता है.थोड़ी देर में जॉर्ज की फंसी-फंसी आवाज आती है. आइ कांट ब्रीथ यानी किमैं सांस नहीं ले पा रहा हूं…मैं सांस नहीं ले पा रहा और फिर वो शिथिलहो जाते हैं. लेकिन, पुलिसवाला फिर भी अपना घुटना नहीं हटाता. मेडिकलएंबुलेंस आती है और तब भी पुलिसवाले को अपना घुटना जॉर्ज की गर्दन पर रखेदेखा जा सकता है. मेडिकल टीम जॉर्ज को मौके पर ही मृत घोषित कर देती है.
अमेरिका में इस घटना का वीडियो तेजी से वायरल हो जाता है. इस घटना सेलोगों में आक्रोश व्याप्त हो जाता है और बड़ी संख्या में लोगों बाहर आकरप्रदर्शन शुरू कर देते हैं. तीव्र विरोध-प्रदर्शन के बीच दूसरे दिन चारोंपुलिसकर्मियों को बर्खास्त किया जाता है, लेकिन कोई मामला दर्ज नहींहोता. इससे नाराज लोग आक्रामक तरीके से विरोध पर उतर आते हैं और शहर कीकई इमारतें जला दी जाती हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ट्वीट करते हैं औरकहते हैं कि मामले की जांच होगी. राष्ट्रपति के इस आश्वासन के बाद भीप्रदर्शनकारी संतुष्ट नहीं हैं. दो दिन के बाद उस अधिकारी पर मामला तयहोता है जिसने जॉर्ज फ्लायड की गर्दन पर घुटना रखा था.
प्रदर्शनकारीचारों पुलिसवालों पर हत्या के मुकदमे की मांग करते हैं.शहर में आगजनी तोड़फोड़ जारी है. ट्रंप कहते हैं कि लूट होगी, तोप्रदर्शनकारियों को गोली मारने की छूट होगी. यानी कि पुलिस कार्रवाईकरेगी. ये क्लासिक तरीका है नस्लभेद का. अमेरिका में काले लोगों के खिलाफहिंसा का लंबा इतिहास रहा है. वर्ष 2017 की बात है. हमें सेंट लुईस आयेहुए महीनाभर ही हुआ था. हमारे घर के सामने की सड़क पर जोरदार प्रदर्शनहोने लगे थे. मैंने पता किया तो मालूम हुआ कि मामला माइकल ब्राउन की मौतका. माइकल ब्राउन एक काला अमेरिकी था, जिसे पुलिस वाले ने गोली मारी थी.
कुछ साल पहले हुई इस घटना में कोर्ट ने अब उस गोरे अफसर को बरी कर दियाथा, जिसके विरोध में प्रदर्शन हो रहे थे. मेरे घर के सामने टूरिस्ट इलाकेमें कई दुकानों के शीशे तोड़ दिये गये थे.उसके बाद से लगातार अमेरिका में ऐसी खबरें पढ़ने को मिलती ही रही हैं औरऐसे वीडियो देखने को मिलते रहे हैं, जिनमें काले लोगों पर पुलिस कीकार्रवाई को देखा जा सकता है. कई मामलों में सीधे गोली मारने के भीवीडियो सामने आये हैं. पिछले दिनों एक काले डेलिवरी ब्वॉय को बेवजह गालीदेते हुए एक गोरे व्यक्ति का वीडियो वायरल हो गया था.
फेड एक्स ने कालेडिलीवरी ब्वॉय को ही नौकरी से निकाला, लेकिन विरोध के बाद दोबारा उसेअच्छी नौकरी दी गयी.अमेरिका में गोरे और काले के भेद को समझने के लिए थोड़ा इतिहास में जानेकी जरूरत है. अमेरिका उन देशों में है, जहां 1964 तक काले और गोरे लोगोंके बीच आधिकारिक रूप से भेदभाव था. जी हां, करीबन साठ साल पहले तक. वर्ष1964 में कानून बनाकर इसे भेदभाव को खत्म किया गया, लेकिन उससे पहले औरबाद तक गोरे समूहों ने काले लोगों पर भीषण अत्याचार किये हैं.
सबसे बड़ा वाकया माना जाता है साल 1919 का शिकागो में, जहां एक कालालड़का लेक मिशीगन में तैर रहा था और तैरते हुए वह पानी में उस इलाके मेंचला गया, जो गोरे लोगों के लिए निर्धारित था. गोरे लड़कों ने इस कालेलड़के को पानी में ही पत्थरों से मारना शुरू किया और पत्थरों से घायलहोकर काले लड़के की पानी में डूबकर ही मौत हो गयी. मौके पर पुलिस पहुंची,तो उन्होंने गोरे लड़कों को गिरफ्तार नहीं किया.
इसके बाद हुई हिंसा औरआगजनी में काले गोरे दोनों मरे, लेकिन एक सुनियोजित आगजनी में काले लोगोंके एक इलाके में आग लगायी गयी, जिसमें हजार से अधिक लोग बेघर हो गये. इसघटना को अमेरिकी इतिहास में रेड समर के नाम से याद किया जाता है.यह वो दौर था, जब कालों और गोरों के लिए स्कूल, रेस्तरां, फिल्म देखने कीजगहें सब कुछ अलग-अलग हुआ करते थे. दूसरे विश्व युद्ध के बाद तक चीजेंऐसी ही रहीं और साल 1954 में कोर्ट के एक आदेश ने स्कूलों में ये नियमबनाया कि काले गोरे सभी एक ही स्कूल में पढ़ेंगे.
इसका गोरे लोगों की तरफसे जमकर विरोध हुआ.खैर, इसके बाद मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व में आंदोलन हुआ और अंतत 1964में ये अलगाव की नीति बंद की गयी. नीतिगत रूप से बदलाव भले ही हो गया,लेकिन काले लोगों के प्रति भेदभाव अभी भी अमेरिकी समाज में व्याप्त है औरजब तक समाज में बदलाव जड़ों तक नहीं पहुंचेगा, जॉर्ज फ्लायड जैसी घटनाएंहोती रहेंगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)