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डिजिटल अरेस्ट धोखाधड़ी की बढ़ती दहशत

Digital Arrest : ऐसी ठगी में अपराधी पुलिस, सीबीआइ, इडी, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, नॉरकोटिक्स आदि का अधिकारी बनकर ऑडियो या वीडियो कॉल कर पीड़ित को इतना डराते हैं कि वह अपनी तमाम पूंजी ठग के खाते में ट्रांसफर कर देता है.

Digital Arrest : डिजिटल हाउस अरेस्ट’ साइबर अपराध का नया स्वरूप है, जिससे लोग दहशत में हैं. आये दिन कोई न कोई साइबर ठगों का शिकार बन रहा है. ऐसी ठगी में पढ़े-लिखे लोग ज्यादा शिकार बन रहे हैं एवं ठगी के शिकार लोगों में बुजुर्गों की संख्या अधिक है. कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में इस धोखाधड़ी की चर्चा की और लोगों से सावधान रहने का निवेदन किया. विगत वर्षों में साइबर अपराधों में काफी विविधता आयी है. ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर अपराधी अब नये-नये तरीकों से अपराध कर रहे हैं. इस क्रम में नया तरीका है- ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’.

इस महीने के पहले सप्ताह में मध्य प्रदेश के इंदौर में एक 65 साल की बुजुर्ग महिला को पांच दिन तक डिजिटली घर में कैद कर फर्जी पूछताछ की गयी और 46 लाख रुपये ठगे गये. अगस्त में लखनऊ की एक महिला डॉक्टर को छह दिन डिजिटली गिरफ्तार कर अपराधियों ने 2.8 करोड़ रुपये ठग लिये. दोनों मामले में ठग खुद को सीबीआई अधिकारी बता रहे थे और हवाला कारोबार में इन महिलाओं की संलिप्तता बताकर ठगी को अंजाम दिया गया. ऐसी ठगी में अपराधी पुलिस, सीबीआइ, इडी, इंटेलिजेंस ब्यूरो, रॉ, नॉरकोटिक्स आदि का अधिकारी बनकर ऑडियो या वीडियो कॉल कर पीड़ित को इतना डराते हैं कि वह अपनी तमाम पूंजी ठग के खाते में ट्रांसफर कर देता है. ठग हर तरह के हथकंडे अपनाता है, जैसे टार्गेट के खाते का इस्तेमाल हवाला के लिए किया जा रहा है या उसका करीबी पकड़ा गया है या वह ड्रग्स स्मगलिंग या आतंकवादी गतिविधियों में शामिल है आदि.


ऐसे अपराधों में ठग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का इस्तेमाल कर रहे हैं. एआई के जरिये वे टार्गेट के सगे-संबंधियों की आवाज की नकल कर या उसकी हूबहू वीडियो बनाकर टार्गेट को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाते हैं कि वे गंभीर संकट में हैं. ठगे जाने का मुख्य कारण डर, जागरूकता की कमी, सतर्क नहीं रहना और कुछ मामलों में खुद का भ्रष्ट होना है. चूंकि ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ या दूसरे साइबर अपराधों को रोकने के लिए अभी भी पुख्ता कानून और प्रशिक्षित मानव संसाधन का अभाव है, इसलिए ऐसी ठगी को रोकना भारत में हाल-फिलहाल में असंभव लग रहा है.

देश में प्रशिक्षित साइबर पुलिस की भारी कमी है, जिसका फायदा ठगों को मिल रहा है. विश्व साइबर अपराध सूचकांक में भारत दुनिया में 10वें स्थान पर है. इस सूचकांक में 100 देशों को शामिल किया गया है. साइबर अपराध के मामले में रूस शीर्ष पर है और उसके बाद यूक्रेन, चीन, अमेरिका, नाइजीरिया, रोमानिया और उत्तर कोरिया का स्थान है. आजकल किशोर बच्चियों को ऑनलाइन चैटिंग एप के जरिये ब्रेनवॉश कर या उनकी अश्लील तस्वीरों को पॉर्न मार्केट में बेचकर और उनके माता-पिता को ब्लैकमेल कर ठगी की जा रही है. ऑनलाइन गेमिंग, कूरियर, रिश्तेदार, दोस्त की गिरफ्तारी आदि की धमकी, अश्लील वीडियो आदि तरीकों से ठगी करने के वारदातों में तेजी आयी है. स्नैप चैट, फेसबुक और इंस्टाग्राम भी अब ठगी के साधन बन गये हैं. मित्र या रिश्तेदार की फर्जी प्रोफाइल बनाकर ऐसे अपराधों को अंजाम दिया जा रहा है.


हाल के वर्षों में कॉल फॉरवर्डिंग के जरिये भी साइबर अपराध करने की घटनाओं में उल्लेखनीय तेजी आयी है. इस सुविधा का इस्तेमाल उपभोक्ता तब करते हैं, जब वे मीटिंग या किसी जरूरी काम में व्यस्त होते हैं, ताकि कोई जरूरी कॉल मिस न हो. गूगल सर्च इंजन पर लोग अपने हर प्रश्न का जवाब ढूंढ रहे हैं. ऐसे मनोविज्ञान को दृष्टिगत कर ठग नामचीन भुगतान एप, जैसे गूगल पे, फोन पे, पेटीएम के नाम से अपना नंबर इंटरनेट पर सहेज रहे हैं, जिसके कारण खुद से लोग हैकर्स के जाल में फंस जाते हैं. ब्राउजर एक्सटेंशन के डाउनलोडिंग के जरिये भी साइबर अपराध किये जा रहे हैं. यह काम वायरस के इस्तेमाल से किया जाता है. क्रोम, मोजिला आदि ब्राउजर के माध्यम से किये गये ऑनलाइन लेन-देन ब्राउजर के सर्वर में सेव हो जाते हैं, जिन्हें सेटिंग में जाकर डिलीट करने की जरूरत होती है, पर अज्ञानतावश लोग ऐसा नहीं करते हैं, जिसका फायदा साइबर ठग उठाते हैं. फिशिंग के तहत किसी नामचीन कंपनी का फर्जी वेबसाइट बनाकर लुभावने मेल किये जाते हैं, जिसमें मुफ्त में महंगी चीजें देने की बात कही जाती है. हैकर्स ऑफर वाले मैसेज भी भेजते हैं, जिसमें मैलवेयर युक्त हाइपर लिंक होते हैं. मैलवेयर यूजर का डेबिट या क्रेडिट कार्ड का विवरण, पासवर्ड, ओटीपी, मोबाइल नंबर, पता, बैंक खाता नंबर, जन्मतिथि आदि चुरा लेता है और उसके ईमेल खाते से दूसरे को फर्जी ईमेल भेजकर ठगी की जाती है.


साइबर अपराधी फोन कॉल या एसएमएस के द्वारा लोगों को कर्जदार बताकर उनसे पैसों की वसूली कर रहे हैं. ऐसी ब्लैकमेलिंग छोटी राशि, मसलन 2000 से 5000 रुपये के लिए ज्यादा की जा रही है, ताकि आर्थिक रूप से कमजोर लोग पुलिस में शिकायत न करें. ठग धमकी देते हैं- आपने हमसे कर्ज लिया है और अगर पैसे वापिस नहीं करेंगे, तो आपकी आपत्तिजनक तस्वीरें वायरल कर दी जायेंगी या आपके सगे-संबंधियों या सहकर्मियों को भेज दी जायेंगी. सबूत के तौर पर फर्जी तस्वीरें और वीडियो भेजे जाते हैं. मोबाइल एप से लोन लेना सूदखोर या साहूकार से लोन लेने से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ऐसे ठगों की व्यापकता देश-काल से परे है. अधिकतर मोबाइल चीन में बने होते हैं और उनका सर्वर भारत से बाहर होता है. ब्राउजिंग सेशन के दौरान संदेहास्पद पॉप अप से सतर्क रहना बहुत जरूरी है.

कोई यूआरएल पैड लॉक सिंबल वाला है या नहीं, यह सुनिश्चित करें. वेबसाइट या मोबाइल या पब्लिक लैपटॉप या डेस्कटॉप पर कार्ड की जानकारी साझा नहीं करें, अनजान नंबर या ईमेल आइडी से आये अटैचमेंट को तुरंत डिलीट कर दें और ऑनलाइन लॉटरी, कैसिनो, गेमिंग, शॉपिंग या फ्री डाउनलोड वाले मैसेज को अनदेखा करें, तो फिशिंग मेल या एसएमएस या व्हाट्सएप के जरिये फॉरवर्ड होने वाले संदेहास्पद हाइपर लिंक के जाल से बचा जा सकता है. साथ ही, कभी भी मनोवैज्ञानिक दबाव में न आयें. धमकी मिलने पर पुलिस की मदद लेने से न हिचकें. हमेशा जागरूक रहें. फोन, कंप्यूटर, टैबलेट के सॉफ्टवेयर को समयानुसार अपडेट करें, मजबूत पासवर्ड रखें, अनजान लिंक को न खोलें, निजी जानकारी को सुरक्षित रखें, सार्वजनिक वाई-फाई के इस्तेमाल में सावधानी बरतें और एंटीवायरस का इस्तेमाल करें. सबसे महत्वपूर्ण है कि लालच से परहेज करें. सावधानी ही बचाव है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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