12.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अब ज्ञान का डिजिटल संसार

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी की घोषणा कर तकनीक को ही पाठन-पाठन को बढ़ावा देने का जरिया बनाया है. उन्होंने कहा कि कोरोना में हुए शिक्षा के नुकसान को कम करने के लिए डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना की जायेगी और सभी स्कूलों को उससे जोड़ा जायेगा.

हम सभी जानते है कि एक अच्छे पुस्तकालय के बिना ज्ञान अर्जित करना मुश्किल है. पुस्तकालयों में ही ऐसी दुर्लभ किताबें मिलती हैं, जो आम तौर पर उपलब्ध नहीं होती हैं. अपने आसपास देख लीजिए, अच्छे पुस्तकालय बंद हो रहे हैं. यदि चल भी रहे हैं, तो उनकी हालत खस्ता है. यह कोई चकित करने वाला तथ्य नहीं है कि किताबों से दूरी बढ़ाने में तकनीक की बड़ी भूमिका है.

मोबाइल और कंप्यूटर ने हमें पठन-पाठन से दूर कर दिया है, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी की घोषणा कर तकनीक को ही पाठन-पाठन को बढ़ावा देने का जरिया बनाया है. उन्होंने कहा कि कोरोना में हुए शिक्षा के नुकसान को कम करने के लिए डिजिटल लाइब्रेरी की स्थापना की जायेगी और सभी स्कूलों को उससे जोड़ा जायेगा.

डिजिटल लाइब्रेरी के नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ऐसी लाइब्रेरी है, जिसमें आपको सभी किताबें डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में मिलेंगी. साधारण शब्दों में आप इसे ऑनलाइन लाइब्रेरी कह सकते हैं. इस लाइब्रेरी का इस्तेमाल आप कहीं से भी कर सकेंगे. इसके लिए आपको सिर्फ इंटरनेट की जरूरत होगी.

फिजिकल लाइब्रेरी के मुकाबले डिजिटल लाइब्रेरी में असीमित स्थान होता है. इसके माध्यम से हर एक की पहुंच किताबों तक हो जायेगी. साथ ही, सब कुछ एक ही स्थान पर उपलब्ध होगा. डिजिटल लाइब्रेरी शब्द का इस्तेमाल 1994 में पहली बार नासा द्वारा इस्तेमाल किया गया था. अमेरिकी लेखक माइकल स्टर्न हार्ट डिजिटल लाइब्रेरी की पहली परियोजना के संस्थापक हैं.

हार्ट ने इंटरनेट के जरिये इलेक्ट्रॉनिक रूप में पुस्तकों को उपलब्ध कराया था. भारत में डिजिटल लाइब्रेरी का सबसे अच्छा उदाहरण भारतीय राष्ट्रीय डिजिटल लाइब्रेरी, आइआइटी खड़गपुर है, जो इंटरनेट पर सभी के लिए उपलब्ध है. इस पुस्तकालय में एक करोड़ सत्तर लाख डिजिटल पाठ्य सामग्री हैं और ऑडियो पुस्तकों के अलावा वीडियो लेक्चर भी हैं. शुरुआत में एक साल तक यह डिजिटल पुस्तकालय केवल शिक्षकों और छात्रों के लिए खुला था, लेकिन अब यह हर किसी के लिए नि:शुल्क उपलब्ध है.

कहा जा सकता है कि पूरा पुस्तकालय मोबाइल के जरिये आपकी जेब में है. शुरुआत में ही 35 लाख लोग इसका इस्तेमाल कर रहे थे और इरादा इसके सदस्यों की संख्या बढ़ा कर साढ़े तीन करोड़ करने का है. किताबों के लिए छात्रों के भटकने की समस्या इस पुस्तकालय ने दूर कर दी है. यह पुस्तकालय मोबाइल एप में भी उपलब्ध है.

गूगल ने भी किताबों को लेकर एक बड़ी योजना शुरू की है. इसके तहत विभिन्न देशों की लगभग चार सौ भाषाओं में बड़ी संख्या में किताबें डिजिटाइज की गयी हैं. उसका मानना है कि भविष्य में अधिकतर लोग किताबें ऑनलाइन पढ़ना पसंद करेंगे. वे सिर्फ ई-बुक्स ही खरीदेंगे, उन्हें वर्चुअल रैक या यूं कहें कि अपने निजी लाइब्रेरी में रखेंगे. इंटरनेट ने किताबों को सर्वसुलभ कराने में मदद की है.

ई-कॉमर्स वेबसाइटों ने किताबों को उपलब्ध कराने में भारी सहायता की है. मेरा मानना है कि नयी तकनीक ने दोतरफा असर डाला है. इसने भला भी किया है और नुकसान भी पहुंचाया है. लोग व्हाट्सएप, फेसबुक में ही उलझे रहते हैं. दूसरी ओर, इंटरनेट ने किताबों को सर्वसुलभ कराने में मदद की है.

किंडल, ई-पत्रिकाओं और ब्लॉग ने इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ाया है, लेकिन यह भी सच है कि टेक्नॉलॉजी ने लिखित शब्द और पाठक के बीच के अंतराल को बढ़ाया है. यह बहुत पुरानी बात नहीं है, जब लोग निजी तौर पर भी किताबें रखते थे और इसको लेकर लोगों में एक गर्व का भाव होता था कि उनके पास इतनी बड़ी संख्या में किताबों का संग्रह है, लेकिन हम ऐसी संस्कृति नहीं विकसित कर पाये हैं.

पहले हिंदी पट्टी के छोटे-बड़े शहरों में साहित्यिक पत्रिकाएं और किताबें आसानी से मिल जाती थीं. अब जाने-माने लेखकों की किताबें भी मुश्किल से मिल पाती हैं. छोटे शहरों में तो यह समस्या और गंभीर है. हिंदी भाषी क्षेत्रों की समस्या यह रही है कि वे किताबी संस्कृति को विकसित नहीं कर पाये हैं. इस दिशा में समाज के विभिन्न तबके के लोगों ने अनूठी पहल की हैं. झारखंड में रहने वाले संजय कच्छप 40 लाइब्रेरी चला रहे हैं.

इसमें कुछ डिजिटल लाइब्रेरी भी शामिल हैं. वे झारखंड के लाइब्रेरी मैन के रूप में जाने जाते हैं. प्रभात खबर ने उन पर एक बड़ी स्टोरी की कि कैसे वे अपनी मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने भी मन की बात में उनके कार्य का उल्लेख किया था. कुछ समय पहले ऐतिहासिक पहल करते हुए बिहार विधानसभा की पुस्तकालय समिति ने पहली बार पुस्तकालयों के बारे में एक प्रतिवेदन पेश किया गया था.

यह प्रतिवेदन बिहार के 51 सार्वजनिक क्षेत्र के पुस्तकालयों को लेकर तैयार किया गया था, जिसमें पुस्तकों व आधारभूत संरचनाओं की गहरी जांच-पड़ताल की गयी थी. समिति ने राज्य के छह जिलों- कैमूर, अरवल, शिवहर, बांका, शेखपुरा व किशनगंज में एक भी पुस्तकालय नहीं पाया.

बाकी 32 जिलों में जो 51 पुस्तकालय हैं, उनमें से अधिकतर की स्थिति बेहद खराब है. आधारभूत संरचनाएं ध्वस्त हैं. पुस्तकों का अभाव है. कुर्सी-टेबल, फर्नीचर और पढ़ने की जगह आदि का घोर अभाव है. लाइब्रेरियन की किल्लत है. शौचालय आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है.

राजस्थान के जैसलमेर जिले के कस्बे पोकरण का नाम परमाणु बम परीक्षण से जुड़ा हुआ है, लेकिन बहुत कम लोगों को यह जानते हैं कि पोकरण में एशिया का सबसे बड़ा पुस्तकालय भी है. वर्ष 1981 में जगदंबा सेवा समिति के संस्थापक व क्षेत्र के प्रसिद्ध संत हरवंश सिंह निर्मल, जिन्हें भादरिया महाराज के नाम से जाना जाता है, ने मंदिर और विशाल धर्मशाला के साथ एक विशाल पुस्तकालय की भी नींव रखी थी. यही पुस्तकालय आज एशिया के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक है. यहां हर विषय से संबंधित पुस्तकें उपलब्ध हैं.

पुस्तकों की देखरेख व संरक्षण के लिए करीब 562 अलमारियां हैं, जिनमें लाखों पुस्तकें रखी गयी हैं. इसी तरह दुर्लभ साहित्य की माइक्रो सीडी बनाने व उन्हें रखने के लिए अठारह कमरों का भी निर्माण भी हुआ है. इस पुस्तकालय में अध्ययन के लिए अलग से एक विशाल हॉल का निर्माण करवाया गया है,

जिसमें चार हजार लोग एक साथ बैठ सकते है, लेकिन चुनौती यह है कि यदि आपको कोई दुर्लभ किताब पढ़नी है, तो आपको लंबी दूरी तय कर पोकरण पहुंचना होगा. यदि ऐसे किसी पुस्तकालय में उपलब्ध किताबों को डिजिटल कर दिया जाए, तो बहुत भला हो सकता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें