भारत की जनसंख्या में बुजुर्गों यानी 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों का हिस्सा 10 प्रतिशत के करीब है. राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के अनुसार यह संख्या 2036 तक 18 प्रतिशत तक पहुंच सकती है. यदि भारत को भविष्य में बुजुर्गों के लिए एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना है, तो इसके लिए आज से ही योजना बनाना शुरू होना चाहिए.
भारत में बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य पर हुए हालिया शोध उनकी गंभीर स्थिति पर नयी रोशनी डालते हैं. उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के एक सर्वेक्षण के अनुसार बुजुर्ग व्यक्तियों में 30 से 50 प्रतिशत (लिंग और आयु वर्ग के आधार पर) अवसाद से पीड़ित हैं. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अवसाद की घटनाएं अधिक होती हैं और ये उम्र के साथ तेजी से बढ़ती हैं. ज्यादातर मामलों में अवसाद अनियंत्रित और अनुपचारित रहता है. अवसाद गरीबी व बीमारी से संबंधित है, लेकिन यह अकेलेपन से भी जुड़ा है. अकेले रहने वाले बुजुर्गों में, तमिलनाडु के सर्वेक्षण में, 74% अवसाद से प्रभावित थे. इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं हैं.
वृद्धावस्था की कठिनाइयां केवल गरीबी से संबंधित नहीं हैं, लेकिन कुछ नगदी अक्सर मदद करती है. नगद रकम निश्चित रूप से कई स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने में मदद कर सकती है और कभी-कभी अकेलेपन से बचने में भी. बुजुर्गों के लिए सम्मानजनक जीवन दिलाने की दिशा में पहला कदम उन्हें आर्थिक बेसहारापन से बचाना है. यही कारण है कि वृद्धावस्था पेंशन दुनियाभर में सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
भारत में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) के तहत बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांग व्यक्तियों के लिए गैर-अंशदायी पेंशन की महत्वपूर्ण योजनाएं हैं. दुख की बात है कि पुरानी और अविश्वसनीय बीपीएल सूचियों के आधार पर एनएसएपी के लिए पात्रता ‘गरीबी रेखा से नीचे’ यानी बीपीएल परिवारों तक ही सीमित है. इसके अलावा, एनएसएपी के तहत वृद्धावस्था पेंशन में केंद्रीय योगदान 2006 के बाद से 200 रुपये प्रति माह पर स्थिर रहा है.
कई राज्यों ने अपने स्वयं के धन और योजनाओं का उपयोग कर सामाजिक सुरक्षा पेंशन की कवरेज और राशि में वृद्धि की है. कुछ राज्यों ने तो विधवाओं और वृद्ध व्यक्तियों के लिए ‘निकट-सार्वभौमिक’ (जैसे 75-80 प्रतिशत) कवरेज हासिल कर लिया है. उदाहरण के लिए, तमिलनाडु को छोड़ कर सभी दक्षिणी राज्यों में अब यह स्थिति है. सामाजिक लाभों का ‘लक्ष्यीकरण’ हमेशा कठिन होता है. जब वृद्धावस्था पेंशन की बात आती है, तो लक्ष्यीकरण उचित नहीं है.
लक्ष्यीकरण व्यक्तिगत के बजाय घरेलू संकेतकों पर आधारित होता है. विधवा या बुजुर्ग व्यक्ति को अपेक्षाकृत संपन्न घर में भी अभाव का अनुभव हो सकता है. पेंशन उन्हें रिश्तेदारों पर अत्यधिक निर्भरता से बचने में मदद कर सकती है. लक्ष्यीकरण में जटिल औपचारिकताएं भी होती हैं, जैसे बीपीएल प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेज जमा करना. औपचारिकताएं विशेषकर गरीब या कम पढ़े-लिखे बुजुर्गों के लिए मुश्किल होती हैं, जिन्हें पेंशन की सबसे बड़ी आवश्यकता है.
सरल और पारदर्शी ‘बहिष्करण मानदंड’ के अधीन सभी विधवाओं, बुजुर्गों और विकलांग व्यक्तियों को पेंशन का हकदार मानना एक बेहतर तरीका है. स्थानीय प्रशासन या ग्राम पंचायत पर समयबद्ध सत्यापन का भार रखते हुए पात्रता स्व-घोषित भी करायी जा सकती है. इसमें कुछ हद तक धोखाधड़ी हो सकती है, लेकिन यह संभावना नहीं है कि कई विशेषाधिकार-प्राप्त परिवार मासिक पेंशन की छोटी राशि के लिए परेशानी का जोखिम उठायेंगे.
आज हम लक्षित पेंशन योजनाओं में जो व्यापक बहिष्करण त्रुटियां देख रहे हैं, उन्हें जारी रखने के बजाय समावेशन संबंधी कुछ त्रुटियां रह भी जाएं, तो कोई हर्ज नहीं है. लक्षित से निकट-सार्वभौमिक पेंशन की ओर प्रस्तावित कदम नया नहीं है. यह कई राज्यों में पहले ही हो चुका है. इसके लिए पेंशन का बजट बढ़ाना होगा, लेकिन अतिरिक्त खर्च को सही मानना आसान है. भारत की सामाजिक सहायता योजनाओं का बजट कम है और बड़ी संख्या में लोगों (एनएसएपी के तहत लगभग 400 लाख ) का समर्थन करते हैं.
निकट-सार्वभौमिक पेंशन न केवल दक्षिणी राज्यों में हासिल किया गया है, बल्कि भारत के कुछ गरीब राज्यों (जैसे ओडिशा और राजस्थान) में भी. लेकिन झारखंड जैसे कुछ राज्यों में अभी तक लाखों विधवाओं और बुजुर्ग व्यक्तियों को पेंशन नहीं मिल रही है. यदि केंद्र सरकार एनएसएपी में सुधार करें, तो सभी राज्यों के लिए निकट-सार्वभौमिक पेंशन लागू करना आसान हो जायेगा. इस साल एनएसएपी का बजट सिर्फ 9,652 करोड़ रुपये है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पादन का 0.05 प्रतिशत भी नहीं है.
सामाजिक सुरक्षा पेंशन, निश्चित रूप से, बुजुर्गों के लिए एक सम्मानजनक जीवन की दिशा में पहला कदम है. उन्हें स्वास्थ्य की देखभाल, विकलांगता सहायता, दैनिक कार्यों में सहायता, मनोरंजन के अवसर और एक अच्छे सामाजिक जीवन जैसी अन्य सहायता और सुविधाओं की भी आवश्यकता होती है. यह निकट भविष्य के लिए अनुसंधान, नीति और संघर्ष का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है.