चुनौती नहीं, अवसर है आपदा

पद्मश्री अशोक भगत सचिव, विकास भारती (झारखंड) ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं का कोविड-19 महामारी के चलते शहर से पुन: वापस गांव लौटना वैसे तो अच्छा नहीं है, लेकिन इसे भविष्य की संभावना के रूप में भी देखा जाना चाहिए. नि:संदेह हमारी सरकारों के लिए यह चुनौती है, पर हमलोग प्रयास करें, तो इसे अवसर के […]

By संपादकीय | April 15, 2020 10:13 AM

पद्मश्री अशोक भगत

सचिव, विकास

भारती (झारखंड)

ग्रामीण क्षेत्र के युवाओं का कोविड-19 महामारी के चलते शहर से पुन: वापस गांव लौटना वैसे तो अच्छा नहीं है, लेकिन इसे भविष्य की संभावना के रूप में भी देखा जाना चाहिए. नि:संदेह हमारी सरकारों के लिए यह चुनौती है, पर हमलोग प्रयास करें, तो इसे अवसर के रूप में भी बदल सकते हैं. सरकार चाहे, तो गांव को आकर्षण का केंद्र बना सकती है. कोविड-19 आपदा के कारण गांव लौटनेवाले युवाओं की संख्या बहुत बड़ी है. इन युवाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती रोजगार की है. वे अपने गांव में ही उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रबंधन एवं दूरदर्शिता के साथ अपना व्यवसाय कर स्वावलंबी बन सकते हैं और अन्य युवकों को रोजगार भी उपलब्ध करा सकते हैं. इस बाबत यह आवश्यक है कि इनका आंकड़ा तैयार हो और यह भी देखा जाये कि ये किन क्षेत्रों में कार्यरत थे. तदनुसार अपने राज्य में कार्य विशेष क्षेत्र की पहचान कर युवाओं को प्राथमिकता के तौर पर रोजगार मुहैया कराया जाये. इस प्रक्रिया से उनके प्रतिभा एवं कौशल का उपयोग हो सकेगा एवं राज्य अपने युवाओं को कुशलता से रोजगार दे सकेगा.

यह भी सत्य है कि झारखंड के जो युवा बाहर गैर कृषि कार्य में अपना भविष्य तलाश रहे हैं, उनमें से अधिकतर के पास जमीन है, पर सभी छोटे और मझोले जोत से आते हैं. राज्य की खेती वर्षा पर आधारित है और वह निश्चित आय का जरिया नहीं बन पा रही है. कोविड-19 के कारण जो विकट समस्या आयी है, उससे निपटने के लिए अल्पावधि एवं दीर्घावधि योजना कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र में लाने की जरूरत है, ताकि आये हुए युवाओं को खेती-बाड़ी से जोड़ा जा सके. कई राज्यों ने इस दिशा में युक्तिपूर्वक कार्य करना प्रारंभ कर दिया है, जिसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं. महात्मा गांधी ने भी कहा है कि आत्मनिर्भर बनने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को विकसित करना होगा, तभी हम ग्रामीण युवाओं को रोजगार देने में सक्षम हो पायेंगे.

अध्ययन और चिंतन से जो बातें सामने आयी हैं, उनके आधार पर कहा जा सकता है कि कोविड-19 के आलोक में कृषि आधारित आयामों को प्रमुखता से और तत्काल लेने की आवश्यकता है. कुछ सुझाव प्रस्तुत हैं. मनरेगा योजना के अंतर्गत खेती एवं उस पर आधारित गतिविधियों में लगे किसानों को रोजगार समझा जाये, उन्हें दैनिक मजदूरी देकर आय सुनिश्चित की जाये. गरमा फसल एवं लगनेवाली खरीफ फसल के सुनिश्चित आच्छादन हेतु क्षेत्रवार बीज, उर्वरक एवं खर-पतवारनाशक दवा की उपलब्धता सीधे उनके घर तक हो. फसल क्षेत्र विशेष की पहचान कर कैश क्रॉप, जैसे- मूंगफली, सोयाबीन एवं मसालों की खेती को बढ़ावा दिया जाये. मौसम के बदलते मिजाज को देखते हुए कम पानी एवं अवधिवाले फसलों, जैसे- मंडुवा (रागी), मक्का, तिल, सरगुजा के साथ-साथ अंतरवर्ती खेती को बढ़ावा मिले. वर्षा जल संचयन हेतु छोटे और बड़े तालाबों का भी निर्माण हो.

इसके अलावा सूक्ष्म सिंचाई पद्धति को अंगीकार कराने हेतु जिले के कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा पहले प्रशिक्षित कराकर ही योजना के अंतर्गत किसानों को सुविधाएं मिलें. सूक्ष्म सिंचाई पद्धति को आवश्यक बनाया जाये एवं इस क्षेत्र में युवाओं में कौशल विकसित किया जाये. कृषि के साथ पशुधन को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए. खुला चारागाही पर पूर्णतया प्रतिबंध लगे, जिसके लिए पहले स्टॉल फीडिंग के लिए किसानों को प्रोत्साहन राशि और मशीनें उपलब्ध करायी जायें. व्यावसयिक सब्जी की खेती को प्रोत्साहन मिले. त्रिपुरा मॉडल पर उत्पाद का नुकसान होने से बचाव के उपायों को विकसित किया जाये, मसलन- जीरो एनर्जी कोल्ड चैंबर में भंडारण की व्यवस्था हो.

समेकित कृषि प्रणाली को बढ़ावा देने के साथ फैमिली फार्मिंग सिस्टम को प्रोत्साहित किया जाये. पंचायत स्तर पर पशुधन को बचाने की व्यवस्था हो. बकरी, सूअर एवं मत्स्य पालन के साथ-साथ डेयरी को बढ़ावा मिले, ताकि युवा स्वरोजगारी बन सकें. क्षेत्र विशेष में होनेवाले फसल उत्पाद में मूल्य संवर्धन व खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देकर सरकार युवकों को गांव के स्तर पर रोकने में कामयाब हो सकती है. ऊपज खरीदने के लिए सरकार तत्परता दिखाये और फसल खरीद की गारंटी दे. दैनिक आधार पर प्रिंट मीडिया द्वारा आम जनों को जानकारी देने की व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे किसानों एवं ग्रामीणों में प्रतिस्पर्धा का भाव जागृत हो सके.

लघु एवं कुटीर उद्योगों के प्रति जागरूकता एवं आकर्षण बढ़ाया जाये. उपलब्ध संसाधन एवं अनुकूल जलवायु को देखते हुए लाह, सिल्क, मधुमक्खी पालन के साथ बांस की खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. बांस में मूल्य संवर्धन के स्कोप को देखते हुए युवाओं में कौशल विकास किया जाये, खासकर बंबू क्राफ्ट, अगरबत्ती एवं माचिस बॉक्स के क्षेत्र में ऐसा किया जा सकता है. खेती आधारित उद्योग को बढ़ावा दिया जाये. औषधीय गुणों वाले पौधों की खेती को बढ़ावा मिले. यह सब केवल सरकार के प्रयासों से ही संभव नहीं होगा, लेकिन इसके लिए सरकार को ही पहल करनी होगी. इसके लिए ग्रामीण स्तर तक जिन संगठनों की पहुंच है और जिन्हें इस क्षेत्र में काम करने का अनुभव है, उन्हें जोड़ा जा सकता है. (ये लेखक के निजी विचार हैं)

Next Article

Exit mobile version