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जी-20 बैठक में कृषि पर करें चर्चा

आर्थिक चिंतक जी-20 के भीतर चर्चाएं व्यापार नीतियों को प्रभावित करने वाली होती हैं. भारत को जी-20 मंच का उपयोग इन व्यापार बाधाओं को कम करने और अपनी बाजार पहुंच का विस्तार करने में करना चाहिए, जिसका भारत के किसानों को दीर्घकालिक लाभ हो सकता है.

जी-20 का वार्षिक शिखर सम्मेलन 9-10 सितंबर को दिल्ली में होने जा रहा है. भारत इस वर्ष की अध्यक्षता की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए कार्यक्रम को भव्य बनाने के लिए जी जान से जुटा है. इसकी गंभीरता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि समारोह के लिए केंद्र सरकार ने बजट में 990 करोड़ रुपये से अधिक का आवंटन किया है. दुनिया के इस अग्रणी मंच में 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं, जो दुनिया की प्रमुख स्थापित और बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं.

जी-20 सदस्य देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत से अधिक और विश्व जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई प्रतिनिधित्व करते हैं. विश्व की सबसे तेज उभरती पांचवीं अर्थव्यवस्था और जी-20 का अध्यक्ष होने के नाते आज भारत के पास अपने और अन्य विकासशील देशों के आर्थिक विकास में आने वाली चुनौतियों को उठाने और उनके स्थायी समाधान के लिए सदस्य देशों को प्रेरित करने का अच्छा मौका है.

भारत के कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था होने के कारण कृषि क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग और सहभागिता जी-20 के मुख्य एजेंडे में शामिल होनी चाहिए. भारत की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आजादी के 76 वर्ष बाद भी अपनी जीविका के लिए कृषि आधारित व्यवसाय पर निर्भर है. जी-20 भारत सहित सदस्य देशों के कृषि विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इसका उपयोग वैश्विक कृषि चुनौतियों का समाधान करने के लिए चर्चा, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और नीतियों के समन्वय के लिए एक मंच के रूप में किया जा सकता है.

भारत अपनी जी-20 सहभागिता का उपयोग कृषि उत्पादकता और ग्रामीण विकास को बढ़ाने के लिए खाद्य सुरक्षा, प्रौद्योगिकी अपनाने, टिकाऊ प्रथाओं और व्यापार नीतियों जैसे मुद्दों पर सहयोग के लिए कर सकता है. जी-20 भारत के लिए नीतियों के आदान-प्रदान और अन्य सदस्य देशों के अनुभवों से सीखने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है. इसमें कृषि सब्सिडी, बाजार पहुंच, व्यापार सुविधा और प्रौद्योगिकी अपनाने जैसे मुद्दे भी शामिल हैं.

खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना भारत समेत संपूर्ण विश्व के लिए आज चिंता का प्रमुख विषय है. यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार रोजाना दुनिया में 73 करोड़ लोग भूखे पेट सोने को मजबूर है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया का हर 10वां इंसान खाने की कमी से जूझ रहा है. इसके समाधान के लिए उत्पादन, वितरण और सामर्थ्य जैसे खाद्य सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर जी-20 में चर्चा करनी चाहिए. जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय चुनौतियां एशिया में कृषि स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर रही हैं, जिससे क्षेत्र की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी की आजीविका पर संकट मंडराने लगा है.

जी-20 देश एशिया में, विशेष कर विकासशील देशों में कृषि स्थिरता के लिए जलवायु परिवर्तन के खतरों की जांच कर, कृषि पद्धतियों और कृषि प्रौद्योगिकी पर प्रकाश डालते हुए, कृषक परिवारों के लचीलेपन में सुधार करते हुए कार्बन उत्सर्जन और पर्यावरणीय क्षरण को कम करने में मदद कर सकते हैं. वर्तमान परिदृश्य में कृषि क्षेत्र देश की अंतरराष्ट्रीय और घरेलू व्यापार और वाणिज्य गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण है.

भारतीय खाद्य और किराने का बाजार दुनिया का छठा सबसे बड़ा हिस्सा है, जिसमें खुदरा बिक्री का 70% योगदान है. भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग देश के कुल खाद्य बाजार का 32% हिस्सा है, जो भारत में सबसे बड़े उद्योगों में से एक है और उत्पादन, खपत, निर्यात और अपेक्षित विकास के मामले में पांचवें स्थान पर है.

जी-20 के भीतर चर्चाएं व्यापार नीतियों को प्रभावित करने वाली होती हैं, जो भारत के कृषि निर्यात और आयात को प्रभावित करती हैं. भारत को जी-20 मंच का उपयोग इन व्यापार बाधाओं को कम करने और अपनी बाजार पहुंच का विस्तार करने में करना चाहिए, जिसका भारत के किसानों को दीर्घकालिक लाभ हो सकता है. भारत की कृषि रणनीति अब तक मुख्य रूप से उत्पादन बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित रही है, जिससे किसानों की आय में बढ़ोतरी पर कभी ध्यान नहीं दिया गया.

ग्रामीण विकास पर भारत का प्रयास किसानों की आय बढ़ाने के साथ ग्रामीण बुनियादी ढांचे में सुधार, ऋण तक पहुंच और आजीविका विविधीकरण के जी-20 के प्रयासों के साथ जुड़ा होना चाहिए. जी-20 के माध्यम से भारत उन्नत कृषि प्रौद्योगिकी, जैसे जैव प्रौद्योगिकी और मशीनीकरण तक पहुंच बना सकता है, जिससे उत्पादकता और दक्षता में उल्लेखनीय सुधार होने की संभावना है.

भारत को जी-20 चर्चाओं के दौरान अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं, उद्योग और किसानों के बीच कृषि संबंधी ज्ञान को साझा करने, प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं की पहचान और जोखिम प्रबंधन के लिए रोडमैप विकसित करने की तत्काल आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, बड़े पैमाने के कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता पर बल देना चाहिए.

जी-20 समारोह का आयोजन भारत के कृषि क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने का उचित अवसर है, जिससे बुनियादी ढांचे का विकास और रोजगार सृजन के नये अवसर खुलेंगे. जी-20 जुड़ाव से भारत को अन्य सदस्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और निजी क्षेत्र के हितधारकों के साथ साझेदारी बनाने के अवसर प्रदान करता है. इसमें कोई संदेह नहीं कि जी-20 में भारत के कृषि क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम लाने की क्षमता है, लेकिन उसकी अपनी चुनौतियां और विचार भी हैं.

जी-20 सदस्य देशों की कृषि संबंधी प्राथमिकताएं विविध हैं, जिससे आम सहमति बनाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. इसके लिए सभी हित धारकों, किसान संगठनों, श्रमिक संघों, थिंक टैंक और नीति निर्धारकों के बीच समन्वय और सहमति जरूरी है. जी-20 चर्चाओं का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर सहमत नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन पर निर्भर करता है. इसलिए समावेशी विकास के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि जी-20 पहल का लाभ हाशिए पर रहने वाले किसानों तक पहुंचे.

जी-20 सदस्यों के बीच भू-राजनीतिक तनाव कृषि चर्चाओं और सहयोगों को प्रभावित कर सकता है, लेकिन नियम आधारित, खुली, पारदर्शी, समावेशी और बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली से इसका समाधान निकाला जा सकता है. दिल्ली में विश्व भर के राष्ट्राध्यक्षों, नीति निर्धारकों के होने वाले इस जमावड़े का विश्व पटल पर प्रभाव कुछ भी हो, परंतु जी-20 के नतीजे भारत की घरेलू नीतियों, नियामक ढांचे और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के अनुरूप होने चाहिए.

(ये लेखकों के निजी विचार हैं)

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