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चिरकुट के भिन्न-भिन्न अर्थ पर चर्चा

'चिरकुट' लंबे समय से देश के कुछ अंचलों में सामान्य जन का अपना शब्द बना हुआ है, शत-प्रतिशत लोक शब्द. कुमाऊंनी, नेपाली, अवधी, भोजपुरी, मगही, मैथिली में चिरकुट का व्यापक प्रयोग मिलता है. हिंदी, उर्दू, मराठी, बांग्ला, ओड़िया में भी इस रोचक शब्द का प्रयोग होता है..

By सुरेश पंत | October 27, 2023 8:02 AM
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‘हम भारत के लोग’ स्वभावत: राजनीतिक चेतना से कुछ अधिक ही संपन्न और संवेदनशील रहते हैं. इसलिए कोई भी छोटी-बड़ी राजनीतिक बयानबाजी या घटना हमारा ध्यान आकर्षित कर लेती है. अब ‘चिरकुट’ को ही लीजिए. यह महत्वहीन सा लगने वाला महत्वपूर्ण शब्द जाने कब से आम बोलचाल में है, किंतु इधर दो राजनीतिक व्यक्तियों के मुखा-मुखी तू-तू, मैं-मैं संवाद में प्रयुक्त होने के कारण अचानक आम बहस में आ गया और सभी के लिए चर्चा का विषय बन गया. हिंदी के शब्दकोशों के अनुसार, ‘चिरकुट’ एक संज्ञा शब्द है जिसका अर्थ है- फटा-पुराना कपड़ा, चिथड़ा, गूदड़, छोटा फटा हुआ कपड़ा. इसका लाक्षणिक अर्थ विस्तार विशेषण के रूप में अधिक प्रचलित हो गया है- घटिया, नगण्य, क्षुद्र, महत्वहीन, कंजूस आदि के अर्थ में. मुहावरे में कहें, तो ‘दो कौड़ी का आदमी’ चिरकुट कहा जा सकता है.

‘चिरकुट’ लंबे समय से देश के कुछ अंचलों में सामान्य जन का अपना शब्द बना हुआ है, शत-प्रतिशत लोक शब्द. बनारस और आसपास के क्षेत्रों में यह एक प्रकार की गाली के रूप में बहुधा प्रयोग किया जाता है. कुमाऊंनी, नेपाली, अवधी, भोजपुरी, मगही, मैथिली में चिरकुट का व्यापक प्रयोग मिलता है. हिंदी, उर्दू, मराठी, बांग्ला, ओड़िया में भी इस रोचक शब्द का प्रयोग होता है. इन सभी भाषाओं में चिरकुट का व्यापक अर्थ है चिथड़ा, कपड़े या कागज का टुकड़ा, फटा-पुराना कपड़ा. पुराना और स्थान-स्थान से फटा कपड़ा भी चिरकुट कहा जाता है. लाक्षणिक अर्थ में हीनार्थक है. सीधा अपशब्द न सही, परंतु अपशब्द के बहुत निकट है.

चिरकुट या चिरकुट बाबा को केंद्रीय पात्र बनाकर उसके नाम से भोजपुरी में आज भी अनेक हास्य रूपक, फिल्म, वीडियो, चुटकुले पसंद किये जाते हैं, जिनमें कुछ तो फूहड़ हैं और अश्लीलता की सीमा पार कर जाते हैं. याद आया कि बिहार में गोनू झा की विद्वत्ता और प्रत्युत्पन्नमति के किस्से कभी बहुत लोकप्रिय थे. आज की पीढ़ी अपनी विद्वत्ता के लिए प्रख्यात ऐतिहासिक पात्र गोनू झा को उतना नहीं जानती, जितना बुद्धू, फूहड़ और हंसोड़ व्यक्तित्व वाले काल्पनिक पात्र चिरकुट को जानती है. टोटके के तौर पर भी किसी का नाम चिरकुट रख दिया जाता है.

लगे हाथ इसकी व्युत्पत्ति पर कुछ विचार कर लिया जाए. कुछ लोग चिरकुट का मूल चीर (वस्त्र)+ कुट्ट (काटना, कूटना) से मानते हैं और कुछ लोग चीरना क्रिया से. चिरकुट का संबंध चीरना और कूटना दोनों क्रियाओं के समाहार से भी संभव है, चिरा-कुटा, फटकर तार-तार हुआ जीर्ण चिथड़ा. लाक्षणिक अर्थ में यह विशेषण है. बुद्धू, नासमझ, तुच्छ, महत्वहीन, साधनहीन, गरीब को चिरकुट कहा जाता है. यह शैतान, हरकती या नटखट के अर्थ में भी प्रयोग किया जाने वाला शब्द है. चिरकुट लघुता, नगण्यता और महत्वहीनता दर्शाने के लिए भी उपयोग में लिया जाता है. मुंबइया मराठी ने हिंदी को अनेक शब्द दिये हैं, किंतु चिरकुट शब्द मुंबइया मराठी को हिंदी से मिला है.

चिरकुट के समक्ष मुंबइया मराठी में ये शब्द बहुत प्रचलित हैं- येड़ा, टपोरी, फट्टू, फटेला, थकेला. चिरकुट का अर्थ देने वाला एक और शब्द मराठी में है चिंदी. चिरकुटई (चिरकुट स्वभाव) को चिंदीगीरी कहा जाता है. चिरकुट या चिंदी दोनों अंग्रेजी शब्द ‘रैग’ के अर्थ में भी हैं. पूरब की भाषाओं (बांग्ला, ओड़िया) में चिरकुट कागज के टुकड़ों को भी कहते हैं. चिरकुट का अर्थ विस्तार अनेक रूप में हुआ है. कागज की चिंदी को चिरकुट कहते हैं, इसलिए कोई भी छोटी सूची, रसीद, छोटे कागज पर लिखी टिप्पणी, परीक्षा भवन में नकल के लिए सहायक पर्ची इन सब को चिरकुट कहा जाता है. कुमाऊं में कागज के किसी फटे टुकड़े को चिरकुट कहा जाता है जो अर्थ विस्तार से छोटी पर्ची, रसीद, चिट्ठी के लिए (प्रायः हीनार्थ में) प्रयोग किया जाता है.

प्रायः समूचे बिहार और बंगाल, ओडिशा में जमीन, लगान, भूमि पंजीकरण आदि से संबंधित विविध औपचारिक जरूरी कागज पत्र भी चिरकुट के अंतर्गत आते हैं. बिहार के न्यायालयों में, भूमि पंजीकरण कार्यालयों में किसी दस्तावेज इत्यादि की नकल लेने के लिए ‘चिरकुट’ दाखिल करना होता है, जो वस्तुतः कागज पर लिखा आवेदन पत्र होता है, जिस पर कुछ राजस्व टिकट चिपके होते हैं. भूमि के पंजीकरण से संबंधित पंजीयक कार्यालय में भूमि पंजीकरण दस्तावेज को भी चिरकुट कहा जाता है. हिंदी में एक हास्य कवि ‘चिरकुट इलाहाबादी’ उर्फ कुटेश्वर नाथ त्रिपाठी हुए हैं. ‘चिरकुट दास चिंगारी’ इनकी रचना है. हितेंद्र पटेल के एक उपन्यास का नाम भी ‘चिरकुट’ है. चिरकुट चर्चा को समेटते हुए कहना होगा कि बहुत अधिक उपयोग में लायी गयी कोई वस्तु या किसी घिसे-पिटे पुराने वस्त्र के लिए चिरकुट शब्द प्रचलित है. इस तर्क के आधार पर कोई ऐसी वस्तु भी चिरकुट है जो घिस-पिटकर अनुपयोगी, अप्रासंगिक और आउटडेटेड हो गयी हो. ऐसी स्थिति में घिसे-पिटे नेता भी चिरकुट हो सकते हैं और अभिनेता भी. कुमाऊंनी में एक कहावत है जिसका हिंदी अनुवाद होगा, ‘एक काना दूसरे काने को काना क्यों कहे.’ इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है, एक चिरकुट दूसरे चिरकुट को चिरकुट क्यों कहे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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