16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

निंदनीय कृत्य

महाराष्ट्र के पालघर में बड़ी भीड़ द्वारा तीन लोगों की नृशंस हत्या ने देश को झकझोर कर रख दिया है. मानवता के तमाम आदर्शों को भुलाकर सैकड़ों की भीड़ ने दया की गुहार कर रहे पीड़ितों की एक नहीं सुनी. हत्या पर उतारू उस भीड़ ने पुलिस की भी एक न सुनी

महाराष्ट्र के पालघर में बड़ी भीड़ द्वारा तीन लोगों की नृशंस हत्या ने देश को झकझोर कर रख दिया है. मानवता के तमाम आदर्शों को भुलाकर सैकड़ों की भीड़ ने दया की गुहार कर रहे पीड़ितों की एक नहीं सुनी. हत्या पर उतारू उस भीड़ ने पुलिस की भी एक न सुनी. पिछले कुछ सालों से देश के कई हिस्सों में भीड़ के हाथों बहुत लोग मारे गये हैं और घायल हुए हैं. यह भीड़ हमारे कथित सभ्य समाज का ही हिस्सा है, जिसका दावा है कि यहां संस्कारों और मूल्यों को मान दिया जाता है तथा यहां कानून का शासन चलता है.

यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी कई घटनाओं के होने के बावजूद न तो कानून के आधार पर कोई ठोस कार्रवाई हो सकी है और न ही कोई नया कानून लाने का विचार किया गया है. कहा जाता है कि यह भीड़ कभी बच्चा चोरी के अफवाह का शिकार हो जाती है, तो कभी पशु चोरी का. अफवाहें कई किस्म की हो सकती हैं. लेकिन इस पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि क्या भीड़ इतनी मासूम होती है कि वह अफवाहों का इतना आसान शिकार बना जाती है.

भीड़ का हिस्सा बनकर आपराधिक हमलों को अंजाम देनेवाले ऐसी अफवाहों की जानकारी प्रशासन को क्यों नहीं देते? यह भीड़ संदिग्ध समझकर जिनके ऊपर झपटती है, उन्हें पुलिस के हवाले क्यों नहीं करती? हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि ऐसी हिंसक भीड़ की देशव्यापी मौजूदगी हमारे सामाजिक और सामूहिक सोच-विचार की क्षमता के क्षीण होने की ओर संकेत करती है. प्रशासन और पुलिस की कमजोर पड़ती या लापरवाह होती पकड़ को इंगित करती है. राजनीति और सरकारी तामझाम के लचर और लाचार होने की ख़बर देती है.

बीते कुछ सालों से हो रही ऐसी घटनाओं में अगर समय रहते कड़ी कार्रवाई होती, तो शायद पालघर की हत्यारी भीड़ हमला करने की हिम्मत नहीं कर पाती. पुलिस के ऊपर भी सारा दोष नहीं दिया जा सकता है. भीड़ के शिकार पुलिसवाले भी हुए हैं और उनके ऊपर हमला करनेवालों को राजनीतिक संरक्षण भी मिला है. ऐसा कई और हत्याओं में भी हुआ है. पुलिस को समुचित साधन और अधिकार देने में भी सरकारों की कमजोरी किसी से छुपी नहीं है. न्यायालय भी लंबित मामलों की सुध नहीं लेते और न ही सरकारों को निर्देश देते हैं.

पालघर का दोष केवल हत्यारों का नहीं है, हमारी पूरी व्यवस्था का है. शासन हो, मीडिया हो या नागरिक हों, किसी घटना पर कुछ देर के लिए बेचैनी दिखाते हैं, पर समस्या के ठोस समाधान के लिए और न्याय सुनिश्चित कराने के लिए उचित सक्रियता नहीं दिखाते. यही कारण है कि भीड़ कभी यहां, कभी वहां हत्याएं करती है. पालघर में बड़ी तादाद में गिरफ्तारी हुई है. उम्मीद है कि मामले की पूरी जांच जल्द पूरी कर पुलिस आरोपियों को अदालत के कटघरे तक ले जाने में कामयाब होगी, जहां उन्हें कड़ी सजा मिले.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें