दुनियाभर के मुसलमानों द्वारा इस्लाम को शांति के धर्म के रूप में दावा किया जाता है. धार्मिक ग्रंथ भी स्पष्ट रूप से शांति, शिक्षा और मानवता की सेवा करने का आदेश देते हैं. लेकिन इस्लाम के अनुयायियों के आचरण के बारे में आम धारणा दावे के विपरीत है. सार्वजनिक स्थानों पर हमारा व्यवहार, सामाजिक और राजनीतिक कार्य, समाज की अनदेखी और सामान्य शिष्टाचार में कमी हमारे दावों पर सवालिया निशान लगाते हैं.
किसी भी समुदाय, समाज या राष्ट्र के बारे में धारणा उसके सामूहिक चरित्र, आचरण और योगदान के आधार पर बनती है. हर समुदाय या राष्ट्र में अच्छे लोग होते हैं, लेकिन राय बहुमत के व्यवहार और कार्यों के आधार पर बनती है. विचारों को थोड़े समय के लिए विकृत किया जा सकता है, लेकिन अगर लोगों का एक बड़ा वर्ग लंबे समय तक एक राय रखता है, तो यह समय ईमानदारी से आत्मनिरीक्षण करने और खुद को सुधारने का है, न कि उन्हें इस्लामोफोबिया बताकर स्वीकार करने से इनकार करने का.
भारतीय मुसलमानों की बात करें, तो हमें ट्रिपल टैक्स यानी तिहरा कर चुकाना पड़ रहा है- पहला, 700 साल के मुस्लिम शासन की विरासत, जिस पर हम अपना दावा करते हैं, दूसरा, मुस्लिम दुनिया में होनेवाली घटनाएं, सीरिया से लेकर अफगानिस्तान तक और तीसरा, घरेलू सामाजिक-धार्मिक मुद्दे और एक गलत पड़ोसी देश का अस्तित्व. कुल मिलाकर, भारत में बहुसंख्यकों की मुसलमानों के बारे में राय नकारात्मक बनती जा रही है और एक वर्ग तो मुस्लिम विरोधी भावनाओं से पीड़ित हो रहा है.
सभ्यता की उन्नति में मुस्लिम दुनिया के निम्न योगदान के कारण भी हमारी छवि खराब है, चाहे वह आधुनिक विज्ञान हो या प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यवसाय, उद्योग या यहां तक कि सामाजिक सेवाएं. उपभोक्तावादी जीवनशैली, धर्म और राजनीति की अधिकता भरी खुराक एवं परिवर्तनकारी दृष्टिकोण की कमी के परिणामस्वरूप हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में गिरावट जारी है.
आधुनिक शिक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास पर ध्यान न देने, संस्थानों की शक्तियों का लाभ उठाने में विफल रहने और तेजी से विकसित हो रही विश्व आर्थिक व्यवस्था के साथ तालमेल न रखने से समुदाय प्रगति के अधिकतर मापदंडों में पिछड़ रहा है. हालांकि, आत्मनिरीक्षण और कार्यशैली को सही करने के लिए यह सही समय है. भारतीय मुसलमान भाग्यशाली हैं कि वे विशाल सामाजिक विविधता और परिपक्व लोकतंत्र के लाभांश का निरंतर आनंद ले रहे हैं. आज मुस्लिम महिलाओं और युवाओं में नया आत्मविश्वास आया है तथा शिक्षा, सामाजिक कार्यक्रमों एवं सरकारी कल्याणकारी योजनाओं में समुदाय की भागीदारी में सुधार हुआ है.
वर्तमान समय में जो चिंताजनक माहौल हमारे चारों ओर है, उससे छुटकारा पाने के लिए देश को धार्मिक कट्टरता और सभी प्रकार के अतिवाद के खिलाफ उठ खड़े होने और आवाज उठाने का समय आ गया है. धर्मांध तत्वों और ऐसी मानसिकता बनाने में सहयोग करनेवाले लोगों को किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि अगर इन्हें कोई भी रियायत दी गयी, तो ये लोग समाज को चैन से जीने नहीं देंगे.
यह भारत और दुनियाभर के मुसलमानों के लिए भी मूल कारण को समझने और इस्लाम के कट्टर रूपों व सोचों के खिलाफ उठने का समय है. इनमें कुछ धाराएं ऐसी हैं, जिन्हें वैश्विक शक्तियों के इशारे पर बनाया गया है और उन्हें विभिन्न देशों में निर्यात किया गया है. चरमपंथी विचारधारा का पालन करने वाले एक छोटे से वर्ग के लिए मुस्लिम समुदाय ने पर्याप्त कीमत चुकायी है. उसकी धार्मिकता पर भी इससे नकारात्मक असर पड़ा है.
इसके साथ ही समूचा समुदाय आज अन्य समुदायों के सामने सवालों से घिर गया है. ऐसी शिक्षण सामग्री और ऐसे संस्थानों के कामकाज की समीक्षा करने का भी समय है, जो अतिवाद का प्रचार कर रहे हैं तथा कट्टर मानसिकता पैदा कर रहे हैं. अब इसमें किसी तरह की देरी करने या ढीला बर्ताव करने की कोई गुंजाइश नहीं रह गयी है.
भारतीय मुसलमान बहुत ही विविधता भरे बहुसांस्कृतिक समाज में पैदा होने के लिए भाग्यशाली हैं, जो दूसरों के विश्वास और करुणा एवं आवास का सम्मान करने के मूल्यों को सिखाता है. असहिष्णुता या उग्रवाद की इसमें कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. दुर्भाग्य से, देश में सांप्रदायिक माहौल में खतरनाक वृद्धि हो रही है, जो न तो लोकतंत्र के लिए और न ही अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है तथा निश्चित रूप से तेजी से बढ़ती वैश्विक शक्ति के रूप में भारत में इसका कोई स्थान नहीं है.
सत्ताधारी वर्ग को इस गंभीर चुनौती का तत्काल संज्ञान लेना चाहिए. समानता, समावेश और विविधता के उभरते वैश्विक दर्शन तथा बहुसंस्कृतिवाद के मूल्यों और समझ के साथ भारतीय मुस्लिम समुदाय विश्व के मुसलमानों को रास्ता दिखा सकता है एवं अपने लिए समृद्ध लाभांश प्राप्त कर सकता है. समुदाय को आधुनिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि तेजी से उभरते आर्थिक अवसरों का लाभ उठा सके. तथा राष्ट्रीय लोकाचार एवं सामान्य सांस्कृतिक मूल्यों की बेहतर समझ विकसित हो सके, जिससे धारणाओं में सकारात्मक बदलाव होने के साथ-साथ शांति और सामान्य प्रगति के लिए मार्ग प्रशस्त होगा.